दिल्ली में जंगपुरा इलाके के एक आभूषण की दुकान में बीस करोड़ रुपए से ज्यादा की कीमत के गहनों और नगदी की चोरी को आम आपराधिक घटनाओं में शुमार किया जा सकता है, लेकिन इस घटना से फिर यह साफ होता है कि यहां कानून-व्यवस्था के मामले में सर्वोच्च मानकों के लागू होने की हकीकत क्या है।
इस समूचे मामले का जो ब्योरा सामने आ सका है, उससे यह जाहिर है कि इतनी बड़ी चोरी को पुख्ता योजना बना कर अंजाम दिया गया। शुरुआती आकलनों के मुताबिक, दुकान में कई स्तरों की सुरक्षा व्यवस्था को पार कर चोर बड़े पैमाने पर सोने और हीरे के आभूषण उठा ले गए। इमारत में घुसने और बिजली आपूर्ति बाधित करने से लेकर स्ट्रांग रूम में घुसने के लिए सेंध मारने और भीतर जाकर बेहद मजबूत ‘लाकर’ को तोड़ कर गहने चुरा ले जाने का ब्योरा किसी कहानी की तरह है।
लेकिन चोरों ने जिस तरह सुनियोजित तरीके से इसे हकीकत में तब्दील किया, उसमें किसी की मिलीभगत से लेकर घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन करने के संकेत मिलते हैं। सवाल है कि आभूषण की दुकान की अपने स्तर पर तय की गई सुरक्षा व्यवस्था के अलावा समूचे सरकारी तंत्र के कामकाज और उसकी उपस्थिति का क्या असर था कि चोरों को इतने बड़े कांड को सफाई से अंजाम देने में कोई बाधा पेश नहीं आई।
घटना के बाद कार्रवाई के नाम पर पुलिस ने फोरेंसिक जांच के लिए इमारत के आसपास की छतों से नमूना एकत्र करने, लोगों से पूछताछ और अंगुलियों के निशान लेने की प्रक्रिया पूरी की, लेकिन हालत यह है कि वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के जरिए भी इसमें लिप्त लोगों की पहचान आसानी से नहीं हो सकी।
इस वारदात के क्रम में जो स्थितियां सामने आईं हैं, उसे देख कर यह समझना मुश्किल हो जाता है कि दिल्ली में हाल ही में जी20 सम्मेलन का पूरी कामयाबी से आयोजन किया गया। उस दौरान समूची दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था का स्तर ऐसा था जिसमें बड़े से लेकर छोटे स्तर के किसी भी अपराध के बारे में सोचना तक मुमकिन नहीं था।
सवाल है कि क्या सुरक्षा व्यवस्था के उस उच्च स्तर का इंतजाम सिर्फ तात्कालिक था और क्या बाकी दिनों में सब कुछ अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है? आखिर यहां कानून-व्यवस्था को लागू करने वाली एजंसियों के कामकाज की शैली ऐसी क्यों है कि सामान्य दिनों में अपराधियों पर इसकी मौजूदगी का कोई खास असर नहीं दिखता?
देश की राजधानी होने के नाते यह उम्मीद की जाती है कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था दूसरे राज्यों और इलाकों से बेहतर होगी और यहां अपराध की दर काबू में होनी चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि कुछ खास मौकों पर उच्च स्तरीय सुरक्षा और चौकसी का शानदार उदाहरण पेश करने वाली दिल्ली में सरकार सामान्य से लेकर गंभीर वारदात और महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों को भी रोकने के मामले में लाचार नजर आती है।
खुद दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, इस वर्ष शुरुआती छह महीनों में राजधानी के विभिन्न इलाकों से उन्नीस हजार से ज्यादा वाहन चोरी हो चुके हैं। हर रोज सौ से ज्यादा वाहनों की चोरी की वारदात को नहीं रोक पाने के लिए कौन जिम्मेदार है? इससे चोरी के बाकी मामलों और अन्य अपराधों के बदस्तूर जारी रहने की स्थितियों और उनके कारणों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सच यह है कि दिल्ली सरकार सीसीटीवी कैमरे लगाने से लेकर अन्य तमाम इंतजाम करके अपराधियों से जनता को बचाने और सुरक्षा मुहैया कराने का वादा और दावा करने में तो सबसे आगे रहती है, लेकिन इसे जमीन पर उतारने को लेकर पूरी तरह चाकचौबंद व्यवस्था करने को लेकर गंभीर नहीं होती।