इस बार के बजट से जिस तरह की उम्मीदें जताई जा रही थीं, उसके समांतर कई स्तर पर आम लोगों के लिए राहत की घोषणाएं हुईं। हालांकि मुख्य रूप से इस बजट को मध्यवर्ग का खयाल रखने और इसी तबके के लिहाज से ज्यादा अनुकूल साबित होने के तौर पर देखा जाएगा। कुछ राज्यों में भावी विधानसभा चुनावों की आहट और उसका असर कई घोषणाओं पर साफ दिखता है और इसी वजह से विपक्ष ने इस पर चुनावी बजट होने का आरोप लगाया है। वहीं इसे सुधारवादी बजट भी बताया जा रहा है।

सबसे ज्यादा सुर्खियां बजट में किए गए इस प्रावधान को मिली हैं कि अब जिन लोगों की आय सालाना बारह लाख रुपए तक है, उन्हें अब कोई आयकर नहीं देना पड़ेगा। मगर यह देखने की बात होगी कि कर-निर्धारण के लिए जो नए पैमाने तय किए जाएंगे, उसमें राहत के दायरे में कितने लोग आ पाएंगे। गौरतलब है कि इससे पहले सात लाख रुपए तक की वार्षिक आमदनी वालों के लिए आयकर से छूट की व्यवस्था थी।

लंबे समय बाद मध्यवर्ग को राहत

माना जा रहा है कि बहुत लंबे समय के बाद मध्यवर्ग को इतनी बड़ी राहत दी गई है। इसके अलावा, टीडीएस की सीमा दस लाख रुपए और आयकर रिटर्न भरने में चार वर्ष तक का समय जैसे कुछ अन्य उपायों से उम्मीद जगी है कि ये भारतीय बाजारों में छाई सुस्ती को दूर करने में मददगार साबित होंगे। मोबाइल सहित कुछ इलेक्ट्रोनिक सामान, इलेक्ट्रिक कारें और टीवी आदि का सस्ता होना मध्य वर्ग को राहत देने में सहायक तत्त्व का काम कर सकता है। दरअसल, पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ती महंगाई के बीच आर्थिक मोर्चे पर आय और खर्च में संतुलन मुश्किल हो रहा था। वहीं आर्थिक वृद्धि में गिरावट चिंता की एक बड़ी वजह बन रही थी।

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अब अगर बचत की वजह से क्रयशक्ति में इजाफा होता है तो इसका सीधा असर लोगों की खरीदारी और बाजार पर पड़ेगा। किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड पर मिलने वाले ऋण, दलहन-तिलहन और खाद के उत्पादन, मखाना बोर्ड आदि के संबंध की गई घोषणाओं को किसानों के लिए फायदेमंद माना जा रहा है। मगर इसका आकलन इस पर निर्भर होगा कि इनसे फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और कर्जमाफी जैसी किसानों की कुछ मुख्य मांगें और उनकी समस्याओं का निपटारा कैसे संभव होगा। वहीं मनरेगा के बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं करने को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रति उदासीनता के तौर पर देखा जा रहा है।

मेडिकल क्षेत्र, दवाओं में मिलेगी राहत

पहली बार उद्यमी बनने वाली महिलाओं के अलावा अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं के लिए भी विशेष ऋण योजना की घोषणा हुई है। जीवन रक्षक दवाओं से कस्टम ड्यूटी हटाने, मेडिकल सीटें बढ़ाने और जिला अस्पतालों में कैंसर केंद्र खोलने की योजनाओं से स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की उम्मीद की जा रही है। इसी तरह, शिक्षा क्षेत्र में पिछले साल के मुकाबले 6.65 की बढ़ोतरी भी अहम है। मगर रेलवे के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई।

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यह देखने की बात होगी कि इन सब उपायों का असर रोजगार क्षेत्र पर क्या पड़ता है, क्योंकि बीते कुछ सालों में युवा आबादी के सामने बेरोजगारी की बढ़ती समस्या एक बड़ी चुनौती बनती गई है। बहरहाल, बजट में बिहार के प्रति जिस तरह की उदारता दिखाई गई है, उससे विपक्ष को यह कहने का मौका मिला है कि अगर यह चुनावी बजट नहीं है, तो अन्य राज्यों के लिए भी समान नजरिया क्यों नहीं अपनाया गया। हालांकि सरकार स्वाभाविक रूप से इस बजट को सभी के लिए उम्मीदों पर खरा उतरने के रूप में ही पेश कर रही है।