इसमें कोई दोराय नहीं कि देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करने के लिए होने वाले चुनाव में सभी वैध मतदाताओं को मतदान का अधिकार होना चाहिए और नियम के मुताबिक अपात्र लोगों को मतदाता सूची से हटाया जाना चाहिए। इस दृष्टि से बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के लिए निर्वाचन आयोग के निर्देश के मायने समझे जा सकते हैं। सवाल है कि अगर इस सूची को दुरुस्त करने के क्रम में किसी मजबूरी या अन्य परिस्थितियों की वजह से वैसे लोग भी मतदान के अधिकार से वंचित हो जाते हैं, जो वास्तव में इसके हकदार हैं, तो इसकी जवाबदेही किस पर होगी।
यह सही है कि समय-समय पर अलग-अलग वजहों से अपात्र हो चुके लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने की जरूरत होती है। लेकिन अब नई परिस्थितियों में जिस तरह चुनाव आयोग ने सूची के पुनरीक्षण की प्रक्रिया की शुरुआत की है, उसमें इस बात की आशंका खड़ी हो गई है कि क्या इसमें बड़ी तादाद में वैसे लोग भी मतदान के लिए अपात्र करार दिए जाएंगे, जिनके पास आयोग की ओर से मांगे गए दस्तावेज किन्हीं वजहों से उपलब्ध नहीं हैं!
बिहार के विपक्षी दलों ने इस पर कई सवाल उठाए हैं
मतदाता सूची को त्रुटियों से रहित बनाने का काम निश्चित तौर पर संवैधानिक रूप से सही है, लेकिन विपक्षी दलों की ओर से इसके औचित्य पर सवाल उठाने के भी अपने आधार हैं। आयोग की ओर से इस सूची में बने रहने के लिए जिन स्वीकार्य दस्तावेजों को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है, बिहार के बहुत सारे लोगों को लिए यह एक बेहद मुश्किल काम होगा।
ऐसे लोगों की भी संख्या अच्छी-खासी होगी, जिनके पास खुद को सही साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं होंगे और अगर वे इन्हें नए सिरे से बनवाने के काम में लगेंगे तो इसके लिए समय की जरूरत होगी। जबकि बिहार में अक्तूबर में ही विधानसभा चुनाव होने हैं और मतदाता सूची को दुरुस्त करने के लिए महज एक माह का समय दिया गया है।
स्वाभाविक ही इस समय के चुनाव पर भी सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में प्रक्रिया पूरी होने के बाद आयोग की ओर से विधानसभा चुनाव के लिए जो अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी, अगर उसमें शामिल होने के पात्र लोग किन्हीं वजहों से छूट गए, तो उनके दावों और आपत्तियों को निपटाने के लिए क्या व्यवस्था की जाएगी?
यह छिपा नहीं है कि बिहार में एक बड़ी आबादी ऐसे गरीब और कम शिक्षित लोगों की है, जिनके पास सरकार की ओर से जारी आधिकारिक दस्तावेज नहीं होंगे। खासतौर पर जन्म पंजीकरण के मामले में काफी पीछे रहने की वजह से बहुत कम लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र हैं। हालांकि हाशिये के समुदायों के ज्यादातर लोगों की पहुंच आधार और राशन कार्ड तक है, जिनकी मांग आमतौर पर हर चीज के लिए की जाती है। मगर यह समझना मुश्किल है कि आखिर किन वजहों से इन्हें स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से बाहर रखा गया है।
निर्वाचन आयोग की ओर से भले ही यह कहा जा रहा है कि ज्यादातर लोगों को ताजा दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं होगी, लेकिन जितनी बड़ी संख्या में लोग इस दायरे में आएंगे, उनके लिए भी निर्धारित दस्तावेज जमा करना आसान नहीं होगा। इसीलिए बहुत सारे लोगों के मतदाता सूची से बाहर होने की आशंका जताई जा रही हैं और विपक्षी दल इस कवायद को समान अवसर के खिलाफ बता रहे हैं। ऐसे में आयोग के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि नए नियमों की वजह से किसी भी वैध मतदाता के मतदान का अधिकार का हनन न हो।
