इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि बिहार में कानूनी रूप से शराबबंदी है, फिर भी लोग शराब पीकर मर रहे हैं। राज्य में एक बार फिर में जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत से यह सवाल उठ रहा है कि आमजनों तक शराब पहुंचती कैसे है और जो लोग चोरी-छिपे शराब का कारोबार करते हैं, उन पर आबकारी विभाग शिकंजा क्यों नहीं कसता। अप्रैल 2016 में राज्य में शराब निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत पर पूरी तरह रोक लगा दी गई थी। शराब बेचने और पकड़े जाने पर सजा का भी प्रावधान रखा गया। फिर भी शराब माफिया बेखौफ हैं तो जाहिर है कि शराब की शक्ल में जहर बेचने से उनको कोई नहीं रोक रहा।
अरसे से शराबबंदी के बावजूद घरों तक या हाट-बाजार में शराब पहुंच रही है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? गौरततलब है कि सीवान और सारण जिले के कई गांवों में शराब पीने से छब्बीस से अधिक लोगों की मौत के बाद मातम पसरा है। कई लोगों का अस्पतालों में उपचार चल रहा है। कुछ की आंखों की रोशनी चली गई और चालीस से ज्यादा लोगों की हालत गंभीर है।
मेले में बिक रही शराब की थैली
सवाल है कि कुछ गिरफ्तारियों का दावा कर क्या पुलिस और जिला प्रशासन अपने दायित्व से मुक्त हो सकता है? जहरीली शराब से मौत का तांडव दो दिन पहले शुरू हुआ जब हाट से लोगों ने शराब खरीद कर पी। फिर मंगलवार से बुधवार रात तक लोगों के मरने का सिलसिला जारी रहा। बताया गया कि पीड़ितों ने मेले में बिक रही थैली वाली शराब पी। इतनी बड़ी घटना को रोका जा सकता था, अगर पुलिस-प्रशासन शराबबंदी को लेकर पहले से सजग रहता।
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हालांकि सब कुछ घट जाने के बाद उच्चस्तरीय जांच की बात कही गई है, लेकिन हाट में शराब की थैलियां कैसे बिक रही थीं, इस सवाल का जवाब कौन देगा? राज्य में शराब से लोगों की मौत की यह कोई पहली घटना नहीं है। आए दिन राज्य में शराब पीने से मौत और इसके अलावा भी कुछ नकारात्मक वजहों से बिहार सुर्खियों में रहता है। हर बार सरकार की ओर से सख्त कार्रवाई करने का रटा-रटाया आश्वासन सामने आता है। इस पर सरकार कितनी गंभीर होती है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कुछ समय बाद फिर शराब पीकर लोगों की मौत की खबर सामने आ जाती है।