बिहार में विधानसभा के लिए हुए चुनावों के नतीजे निश्चित तौर पर वहां की जनता का फैसला है, लेकिन हार-जीत के जैसे आंकड़े सामने आए, उसकी उम्मीद कम से कम वहां के विपक्षी दलों को बिल्कुल नहीं रही होगी। दो चरणों में हुए मतदान के बाद शुक्रवार को हुई मतगणना में न केवल सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को भारी जीत मिली, बल्कि ऐसा लगता है कि चुनावी मैदान में मुकाबला एकतरफा था।

हालांकि प्रचार के दौरान विपक्षी महागठबंधन को जैसा समर्थन मिलता दिखा था, उससे यही लगा कि चुनावी मुकाबला एकतरफा साबित नहीं होने वाला है और राजद-कांग्रेस तथा अन्य सहयोगी दलों का महागठबंधन चुनाव में राजग को एक मजबूत चुनौती देने वाला है। मगर अब आए नतीजों से यह साफ है कि बिहार के चुनावी मैदान में मतदाताओं को आकर्षित करने और उनका मत हासिल करने के मामले में सत्ताधारी गठबंधन के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं थी।

दूसरी ओर, विपक्ष की राजनीति और विधानसभा चुनावों में जीत के लिए किए गए प्रयासों के लिहाज से देखें तो ये नतीजे उनके लिए अप्रत्याशित हैं, क्योंकि प्रचार के दौरान सभाओं और रैलियों में उन्हें लोगों का जैसा व्यापक समर्थन मिलता दिखा था, वह शायद वोट में तब्दील नहीं हो सका।

सवाल है कि विपक्ष की राजनीति के महारथी जनता के बीच दिखने वाले समर्थन के बरक्स जमीनी हकीकत का अंदाजा लगाने में नाकाम क्यों हुए! माना जा रहा है कि राज्य के मतदाताओं के सामने अलग-अलग राजनीतिक दलों की ओर से जो कुछ तात्कालिक लाभ के मुद्दे सामने रखे गए, लोगों ने उसी में से चुनाव के लिए अपनी प्राथमिकता तय की। मसलन, एक ओर बिहार सरकार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत चुनाव से ठीक पहले बड़ी संख्या में महिलाओं के खाते में तत्काल दस हजार रुपए भेजने की व्यवस्था की, तो दूसरी ओर, महागठबंधन ने हर परिवार के लिए सरकारी नौकरी सहित कई अन्य वादे किए।

ऐसा लगता है कि राज्य के लोगों की राय पर भविष्य के लिए किए गए वादों के बजाय महिलाओं को तुरंत मिली आर्थिक राहत का मुद्दा ज्यादा भारी पड़ा और उसने चुनाव में मतदान के रुख को तय करने में एक प्रमुख कारक के रूप में काम किया। राजद और उसके सहयोगी दल शायद जनता को यह भरोसा दिला पाने में कामयाब नहीं हो सके कि सरकार बनने पर उनके वादे वास्तव में जमीन पर उतर सकेंगे।

इसके अलावा, बिहार में इस बार मतदान का जैसा आंकड़ा सामने आया, वह भी चौंकाने वाला था। जब दोनों चरणों में लगभग सड़सठ फीसद वोट पड़े, तब स्वाभाविक रूप से ऐसे आकलन सामने आने लगे कि इतना मतदान फीसद आमतौर पर सत्ता विरोधी लहर का संकेत देते हैं। मगर अब जैसे नतीजे सामने आए हैं, उसमें ज्यादा मत पड़ने के साथ जुड़ी सत्ता विरोधी लहर की धारणा एक तरह से खारिज होती दिखी।

अब बिहार के मतदाताओं ने एक बार फिर से राजग सरकार के कामकाज और उससे पैदा उम्मीदों को अपना भारी समर्थन दिया है, वहीं विपक्षी दलों और खासतौर पर राजद के सामने आने वाले दिनों में अपनी पार्टी के मजबूत दखल को बचा पाने तक की चुनौती सामने होगी। मगर उम्मीद की जानी चाहिए कि स्पष्ट बहुमत के साथ बनने वाली सरकार के कामकाज आम जनता के व्यापक हित को ध्यान में रख कर संचालित होंगे और राजनीतिक मोर्चे पर राज्य में लोकतंत्र का जीवन पहले से ज्यादा बेहतर होगा।