बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार को एक विकासपरक सोच वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। खासतौर पर महिलाओं के हित में उनकी सरकार के कुछ काम महत्त्वपूर्ण रहे हैं। मगर पिछले कुछ समय से उनकी जुबान जिस कदर फिसल या लड़खड़ा रही है, उससे हैरानी होती है कि क्या ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्हें भारतीय राजनीति में एक शालीन और महिलाओं के हितचिंतक राजनेता के रूप में देखा जाता रहा है!
महिला विधायक के बारे में सीएम की टिप्पणी चौंकाने वाला था
बुधवार को बिहार विधानसभा में राज्य के संशोधित आरक्षण कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को लेकर चल रहे विपक्ष के हंगामे के बीच राष्ट्रीय जनता दल की महिला विधायक रेखा देवी को उन्होंने कह दिया कि ‘अरे महिला हो, कुछ जानती नहीं हो’! एकबारगी इस तरह का बयान चौंकाने वाला लगता है कि सरकार के मुखिया रहते हुए नीतीश कुमार ने महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए जिस तरह कई अहम फैसले लिए, उसके बरक्स वे अपने विचार अभिव्यक्त करने वाली एक महिला विधायक को चुप कराने की मंशा से अपमानजनक तरीके से भी संबोधित कर सकते हैं!
राज्य और देश की राजनीति में लंबा वक्त देने, एक परिपक्व और सौम्य व्यक्तित्व माने जाने और महिलाओं के हित में कई कदम उठाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह क्यों लगता है कि कोई महिला विधायक इसलिए कुछ नहीं जानती है, क्योंकि वह महिला है! हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है कि नीतीश कुमार के मुंह से महिलाओं को अपमानित करने वाली इस तरह की भाषा का प्रयोग सुना गया। इससे पहले विधानसभा में ही अपने वक्तव्य में जनसंख्या नियंत्रण के मसले पर बोलते हुए वे नाहक ही आपत्तिजनक और अवांछित भाषा का इस्तेमाल कर चुके हैं।
इसके अलावा, चुनाव और राजनीतिक अभियानों में भी वे अपने प्रतिद्वंद्वी नेता और उनके परिवार के बारे में दुराग्रहपूर्ण बातें बोल चुके हैं। अफसोसनाक यह भी है कि इस तरह की बातें उन्होंने किसी निजी दायरे की बातचीत में नहीं की, बल्कि सार्वजनिक मंचों पर अपने संबोधनों में की। ऐसा बोलते हुए उन्हें शायद एक पल के लिए भी नहीं महसूस हुआ कि उनके ऐसे बोल का संदेश आम जनता और खासकर महिलाओं के बीच कैसा जाएगा और खुद उनके व्यक्तित्व को किस नजरिए से देखा जाएगा!
विडंबना यह है कि हाल के महीनों में नीतीश कुमार के कई बार नाहक ही आपा खोने, कुछ बयानों और हावभाव ने राजनीतिक गलियारों और आम लोगों के बीच गैरजरूरी चर्चाओं को जन्म दिया! इसमें कोई दो राय नहीं कि उनकी सरकार ने तंत्र में भागीदारी बढ़ाने के लिए बिहार में महिलाओं के लिए पचास फीसद तक आरक्षण की व्यवस्था की, स्कूली शिक्षा में लड़कियों को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए। बिहार में शराबबंदी के पीछे भी उनका मकसद महिलाओं को सामाजिक-पारिवारिक जटिलताओं और हिंसा से बचाना था।
मगर जनकल्याण के सिद्धांतों में विश्वास रखने वाले किसी भी नेता और सरकार का दायित्व होता है कि वह समाज में वंचित तबकों के हित में सोचे और काम करे। अगर नीतीश कुमार ने महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए कुछ किया है, तो इसे उनके दायित्व के तौर पर देखा जाना चाहिए। निश्चित रूप से महिलाओं के हक में लिए गए उनकी सरकार के फैसलों को वाजिब अहमियत मिलनी चाहिए, लेकिन अपने ऐसे कामों की गरिमा को कायम रखना खुद उन पर निर्भर करता है।