विदेशी मुद्रा भंडार और डालर के मुकाबले रुपए की कीमत में गिरावट आर्थिक विकास की दृष्टि से गंभीर चिंता का विषय है। डालर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर लंबे समय से नीचे का रुख किए हुए है। अब विदेशी मुद्रा भंडार भी तेजी से घटना शुरू हो गया है। बीते सप्ताह शुक्रवार को इसमें 8.48 अरब डालर की कमी दर्ज की गई। यह 2008 की मंदी के बाद अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। इसके पिछले हफ्ते भी 1.99 अरब डालर की गिरावट दर्ज हुई थी। सितंबर में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ कर 704.88 अरब अमेरिकी डालर के अपने सर्वाधिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था। मगर उसके बाद इसमें लगातार कमी दर्ज हो रही है। अब विदेशी मुद्रा भंडार गिर कर 644.87 अरब अमेरिकी डालर पर पहुंच गया है।
हालांकि यह स्तर अभी चिंताजनक नहीं माना जा सकता, मगर जिस तरह निरंतर इसमें गिरावट दर्ज हो रही है, वह अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। विदेशी मुद्रा भंडार गिरने का अर्थ है कि अपेक्षित विदेशी निवेश नहीं आ पा रहा। इसकी वजह भी साफ है। अमेरिकी डालर लगातार मजबूत हो रहा है, जिसके चलते विदेशी निवेशक भारत से अपना पैसा निकाल कर लगाने लगे हैं।
दुनिया के कारोबार में डॉलर की अहम भूमिका
दुनिया के कारोबार में डालर की स्थिति अहम भूमिका निभाती है। डालर कमजोर होता है, तो विदेशी निवेशक दूसरे देशों का रुख करने लगते हैं। मगर जैसे ही डालर मजबूत होने लगता है, वे अमेरिकी बाजार का रुख कर लेते हैं। कोरोना के बाद मंदी की मार झेल रहे अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने अपने यहां ब्याज दरों में बदलाव किए। इससे निवेशकों को वहां निवेश करने के लिए आकर्षित करने में मदद मिली। फिर, डोनाल्ड ट्रंप के दुबारा राष्ट्रपति चुने जाने और आर्थिक नीतियों को लेकर उनके बयानों से निवेशकों में विश्वास जगा है कि निवेश की दृष्टि से अमेरिका ज्यादा फायदेमंद जगह है। इसका असर भारत के मुद्रा भंडार पर भी पड़ा है।
बेकाबू होती जा रही महंगाई, बनती जा रही गंभीर समस्या, लगातार कम हो रही रुपए की कीमत
मगर केवल यही कारण प्रमुख नहीं है। सबसे अहम बात है कि हमारा व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। निर्यात पर जोर देने के बावजूद इसमें बेहतरी के संकेत नजर नहीं आ रहे। आयात लगातार बढ़ रहा है। इसका सीधा असर घरेलू उत्पादन और बाजार पर पड़ रहा है। यह अकारण नहीं है कि पिछली कुछ तिमाहियों से विनिर्माण क्षेत्र हिचकोले खाता नजर आ रहा है। सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में औद्योगिक उत्पाद गिरा है। जब तक इस क्षेत्र में मजबूती नहीं आएगी, तब तक रुपए की कीमत और विदेशी मुद्रा भंडार में बेहतरी की उम्मीद धुंधली बनी रहेगी।
विदेशी निवेशकों का उत्साह भी कम
रुपए की कीमत गिरने से विदेशी निवेशकों का उत्साह भी कम होता है। कोई भी निवेशक ऐसी जगह अपना पैसा नहीं लगाना चाहता, जहां उसे मुनाफा न हो। फिर तमाम कोशिशों के बावजूद महंगाई अपने उच्च स्तर पर बनी हुई है, जिसके चलते भारतीय बाजार में चमक नहीं लौट पा रही। इसका बड़ा कारण प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी न हो पाना है।
पिछले कई सालों से लोगों की आय यथावत बनी हुई है, जबकि उसकी तुलना में महंगाई काफी बढ़ चुकी है। जाहिर है, इसके चलते उपभोक्ता व्यय घटा है। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक ही सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की दर नीचे गई है। जब तक मानव विकास के मोर्चे पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक तदर्थ उपायों से अर्थव्यवस्था में बेहतरी लाने की कोशिशें नाकाम ही साबित होंगी।