वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में एक छात्रा से छेड़छाड़ की जैसी घटना सामने आई, उससे एक बार फिर यही साफ हुआ है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर सरकार और पुलिस किस स्तर तक लापरवाही बरत रही है। आए दिन राज्य सरकार दावे करती है कि वहां अपराधियों के हौसले पस्त पड़ गए हैं और उत्तर प्रदेश में अब अपराध पर लगाम लग चुकी है।
मगर हकीकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बीएचयू में रात में बाकायदा बाहर से अपराधी तत्त्व न केवल घुसते, बल्कि काफी देर तक छात्राओं से बदसलूकी करते और फरार भी हो जाते हैं। घटना के ब्योरे से पता चलता है कि जो तीन युवक मोटरसाइकिल से परिसर में घुसे, उन्हें रोकने-टोकने या पूछताछ करने वाला कोई नहीं था। उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ टहल रही छात्रा को हथियार के बल पर काबू में किया।
उसके दोस्त से मारपीट की और छात्रा को अलग ले जाकर उत्पीड़ित किया। छात्रा किसी तरह जान बचा कर एक प्राध्यापक के घर में घुस गई, तब जाकर कहीं उसे मदद मिल सकी। यह स्थिति आम इलाकों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित माने जाने वाले विश्वविद्यालय परिसर के भीतर की है, जहां अपराधियों ने बेलगाम होकर अपनी हरकत को अंजाम दिया।
यह उस उत्तर प्रदेश और वहां किसी सबसे व्यवस्थित और सुरक्षित क्षेत्र के तौर पर प्रचारित परिसर की हालत है, जहां राज्य को अपराध-मुक्त बना देने के प्रचार के बरक्स जमीनी हकीकत कुछ और दिखती है। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय में 2017 में इसी तरह की घटना हुई थी, जिसमें एक छात्रा से कुछ मोटरसाइकिल सवारों ने बुरी तरह छेड़छाड़ की थी।
उस समय भी घटना के खिलाफ विद्यार्थियों ने व्यापक प्रदर्शन किया था, लेकिन पुलिस ने उन पर लाठियां बरसाई थी। तब भी यह आश्वासन दिया था कि ऐसी वारदात पर लगाम लगाने के लिए सीसीटीवी लगाने से लेकर अन्य सुरक्षा इंतजाम किए जाएंगे। ताजा घटना के बाद भी जब विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं के बीच व्यापक गुस्सा पैदा हो गया और उन्होंने आरोपियों को गिरफ्तार करने और सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने की मांग की, तब फिर से वैसे ही आश्वासन दोहराए गए कि सुरक्षा व्यवस्था सख्त की जाएगी।
सवाल है कि अपने दावों को लेकर राज्य सरकार कितना गंभीर है कि बुधवार को हुई घटना के बाद भी महज सीसीटीवी लगवाने का आश्वासन अब तक जारी है। पिछले वर्षों में कई घटनाओं के बावजूद अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल क्यों नहीं हुई? होना यह चाहिए था कि अगर राज्य को अपराध-मुक्त बनाने की सरकार की बात सही है तो आपराधिक तत्त्वों के भीतर पकड़े जाने और सख्त कार्रवाई का खौफ होता और वे अपराध करने से पहले सोचते।
मगर जिस तरह परिसर में घुस कर उन्होंने वारदात को अंजाम दिया, उससे यही लगता है कि उनके भीतर कानून का कोई डर नहीं था। इस हकीकत के होते आम जनता कैसे यह मान ले कि राज्य में अपराध पर नकेल कस दी गई है और लोग सुरक्षित हैं? छात्राओं से छेड़छाड़ या यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर रोक लगाने और परिसर में पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के लिए आखिर कितनी ऐसी घटनाओं का इंतजार किया जाएगा! जबकि ऐसी किसी पहली घटना के बाद ही सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को हर स्तर पर ऐसे सुरक्षा इंतजाम सुनिश्चित करने चाहिए थे, ताकि भविष्य में किसी अन्य छात्रा के साथ वैसा न होने पाए।