मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और उससे सटे जिले विदिशा में देसी पटाखा ‘कार्बाइड गन’ के कारण कई बच्चों की आंखों की रोशनी चली गई और इस तरह दीप उत्सव पर खुशी मनाने का मौका कई परिवारों के लिए दुखद बन कर आया। इस घटना में जख्मी होने के डेढ़ सौ से अधिक मामले सामने आए। सौ से अधिक लोग अब भी अस्पतालों में भर्ती हैं। विदिशा में पचास लोगों का इलाज चल रहा है। यह निराशाजनक ही है कि पारंपरिक पटाखों को लेकर कोई सचेत नहीं है, न प्रशासन और न नागरिक।
सवाल है कि पीवीसी पाइपों में विस्फोटक पदार्थ भर कर ‘कार्बाइड गन’ बनाने की किसे सूझी और ऐसा करने को लेकर किस स्तर पर लापरवाही बरती गई। गौरतलब है कि गैस लाइटर, प्लास्टिक पाइप और कैल्शियम कार्बाइड से बनाई गई यह देसी ‘गन’ दिवाली पर खूब बिकी। इस पटाखे को खिलौने की तरह सोशल मीडिया पर प्रचारित किया गया था। नतीजतन, बिना किसी रोकटोक के बड़ी संख्या में इसकी बिक्री हुई। जबकि सुरक्षा की दृष्टि से ये बेहद खतरनाक थे।
भोपाल में हुई घटना के बाद चिकित्सकों ने कहा कि कार्बाइड गन में बनने वाली एसिटिलीन गैस आंख की कार्निया को नब्बे फीसद तक जला देती है। लिहाजा, पारंपरिक पटाखों पर सख्त पाबंदी लगाने की जरूरत है। इनसे प्राय: झुलसने का खतरा होता है। कार्बाइड गन इसका उदाहरण है। इसमें पीवीसी पाइप फटने से प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े छर्रे की तरह शरीर को जख्मी कर देते हैं।
पिछले दिनों इसी कारण लोगों के चेहरे झुलस गए। दुखद है कि जिन बच्चों की आंखों की रोशनी बुझ गई, उनके अभिभावकों ने इसके उपयोग को लेकर एहतियात बरतना जरूरी नहीं समझा। पटाखों को लेकर शीर्ष न्यायालय ने बार-बार सख्ती दिखाई है। फिर भी इसे न तो शासन और न ही आम लोगों की ओर से गंभीरता से लिया जा रहा है। पटाखे न केवल पर्यावरण, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा और शांति पर भी प्रभाव डालते हैं। जरूरत इस बात की है कि पूरे देश में पटाखों को लेकर एक ठोस नीति हो और किसी भी दशा में इसके उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।
