कैलिफोर्निया में हुए जनसंहार से चिंतित अमेरिकी अवाम को राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भरोसा दिलाया है कि वे इस्लामिक स्टेट यानी आइएस को नेस्तनाबूद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। राष्ट्र के नाम यह संबोधन उन्होंने ओवल हाउस से प्राइम टाइम में किया। यह तीसरी बार है जब ओबामा ने अपने कार्यकाल में ओवल हाउस से राष्ट्र को संबोधित किया। हालांकि उनके इस वक्तव्य पर अमेरिका के कुछ नेताओं और अधिकारियों की प्रतिक्रिया है कि राष्ट्रपति से जिस सख्ती की उम्मीद की जा रही थी वह नहीं दिखी। वहां के सशस्त्र सेवा अधिकारी का कहना है कि आइएस से निपटने के लिए कठोर रणनीति अपनाने की जरूरत है, जिस पर ओबामा ने कुछ नहीं कहा। फिर अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में संभावित उम्मीदवार माने जा रहे हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि आतंकवाद कट्टरपंथी इस्लाम की हरकत है, लेकिन ओबामा ने इस पर परदा डालने की कोशिश की। मगर हकीकत यह है कि इस तरह उकसाने या फिर पक्षपातपूर्ण तरीके से युद्ध छेड़ कर अमेरिका को शायद कुछ हाथ नहीं लगने वाला।
9/11 के बाद तालिबान के सफाए के लिए जिस तरह अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और नाटो देशों ने भी उसका साथ दिया उससे दुनिया भर में किरकिरी झेलनी पड़ी थी। अल-कायदा से निपटने के लिए अपनाई गई रणनीति में भी उसे कोई स्थायी कामयाबी नहीं मिल पाई। आइएस अब तालिबान और अलकायदा से कहीं ताकतवर संगठन के रूप में उभर चुका है। उसने लगभग पूरे सीरिया पर कब्जा करके इस्लामिक स्टेट की स्थापना कर ली है और चरमपंथी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। इराक पर भी उसकी पकड़ है। पश्चिमी देशों तक में उसकी विचारधारा का प्रभाव लगातार फैल रहा है। ऐसे में आइएस के खिलाफ युद्ध छेड़ना अलग रणनीति की मांग करता है।
अच्छी बात है कि बराक ओबामा ने सीरिया और इराक में आइएस के खिलाफ सीधे सेना उतारने के बजाय स्थानीय लोगों के सहयोग से उसके खात्मे की रणनीति अपनाने पर जोर दिया है। नाटो ने भी सीधे सेना उतारने से इनकार किया है। दरअसल, जिस तरह आइएस ने सीरिया पर कब्जा कर रखा है, उसमें सीधी सैन्य कार्रवाई से आम लोगों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। वैसे ही रोज हजारों लोग देश छोड़ कर भागने पर मजबूर हैं, सैनिक कार्रवाई से अफरा-तफरी बढ़ेगी ही। इसी तरह अमेरिका के विपक्षी दलों की इस दलील को उन्होंने स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि किसी धर्म को लक्ष्य बना कर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। उन्होंने साफ कहा कि हम उन लोगों की धार्मिक परीक्षाएं नहीं ले सकते, जिन्हें अपने देश में प्रवेश की इजाजत देते हैं।
9/11 के बाद के अनुभव अभी भूले नहीं हैं, जब हर मुसलमान संदेह के दायरे में आ गया था। चरमपंथी गतिविधियां चलाने वाले किसी धर्म के समर्थक नहीं, बल्कि भटके हुए सिरफिरे लोग होते हैं। उनकी गलतियों की सजा पूरी कौम को क्यों दी जानी चाहिए! इस मामले में ओबामा ने उचित ही दुनिया भर के मुसलिम नेताओं से अपील की है कि वे आइएस की हरकतों के खिलाफ आवाज उठाएं। अगर ऐसा माहौल बनता है तो निस्संदेह आइएस के प्रभाव में आने वाले युवाओं को सही रास्ते पर लाने में भी काफी मदद मिलेगी। इस तरह उन देशों का भी मन बदलने की सूरत बन सकती है, जिनकी नीतियां आइएस के खिलाफ लड़ाई में बाधा बन रही हैं।