सरकार के तमाम दावों के बावजूद देश में स्वास्थ्य सेवाओं की सेहत लगातार बिगड़ रही है, तो आखिर इसकी वजह क्या है। प्रति वर्ष बजट में स्वास्थ्य के लिए जो राशि तय होती है, वह इतनी नहीं जिससे सभी नागरिकों को चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हो सकें। सच्चाई यही है कि गंभीर बीमारी का इलाज कराने के क्रम में आम आदमी की सारी जमा-पूंजी खत्म हो जाती है। इसी वजह से कई परिवार तो गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। यह दुखद ही है कि आजादी के बाद से अब तक हम शहरों और गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं का मजबूत ढांचा नहीं बना पाए हैं।

आज भी सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में आधुनिक उपकरणों और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इसका नतीजा अंतत: मरीजों को भुगतना पड़ता है। बीते दिनों बलिया में मोबाइल फोन की रोशनी में चार महिलाओं का प्रसव कराया गया। यह सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की बदहाली की एक और बानगी है।

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कई अस्पतालों में जेनरेटर और डीजल के अभाव का बहाना बनाया जाता है, लेकिन वहां इसकी सुविधा उपलब्ध होने पर भी यह नौबत क्यों आई, यह जांच का विषय है। इसी जिले में पिछले दिनों जिलाधिकारी के औचक निरीक्षण के दौरान सरकारी अस्पताल में अव्यवस्था उजागर हुई। हकीकत है कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली आज भी कायम है।

आबादी के लिहाज से सरकारी अस्पतालों की संख्या काफी कम है। गांवों के मरीज उपचार के लिए शहरों की तरफ भागते हैं, जहां निजी अस्पतालों में अपनी थोड़ी बहुत बचत भी गंवा बैठते हैं। यह एक बड़ा सवाल है कि सेहत की देखभाल पर आम आदमी का खर्च कम क्यों नहीं हो रहा? यह सरकार के लिए भी एक चुनौती है। फिलहाल इस पर जोर देने की जरूरत है कि मरीजों का सुरक्षित उपचार हो और वे स्वस्थ होकर अपने घर लौटें।

बलिया की घटना से पहले भी टार्च की रोशनी में इलाज और आपरेशन किए जाने की खबरें आती रही हैं। उपचार में देरी और गलत निदान की वजह से मरीजों की मौत हो जाती है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। मसला अब बुनियादी सुविधाओं का भी है। स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही और बदहाली पर सवाल उठते हैं, तो यह गलत नही हैं।