मौजूदा लोकतांत्रिक स्वरूप में आने तक दुनिया ने वैचारिक पूर्वाग्रहों के कई दुखद दौर देखे हैं। नस्लीय दुराग्रहों पर आधारित नाजीवाद का वक्त उनमें से एक था और उससे पार पाने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी गई, कुर्बानियां दी गईं। इसके बाद आधुनिक विश्व में अगर किसी लोकतांत्रिक ढांचे वाले देश में ऐसी विचारधारा जड़ पकड़ती है और उसके निशाने पर कुछ खास समुदाय आते हैं, तो यह बेहद अफसोस और चिंता की बात है।
आस्ट्रेलिया में पनपा नव-नाजियों का समूह छोटा अवश्य है, लेकिन खतरनाक है
जिन प्रवासियों ने आस्ट्रेलिया के विकास में योगदान दिया, सांस्कृतिक पहचान बनाई, आज उन्हीं को देश के लिए खतरा बता कर कई शहरों में आव्रजन विरोधी रैलियां निकाली जा रही हैं। इनमें खासतौर से आस्ट्रेलियाई-भारतीयों को निशाने पर लिया गया है। इस दौरान जिस तरह की सामग्री बांटी गई, उनमें नस्लवादी विचार तो थे ही, साथ ही इसकी जांच में इससे नव-नाजी समूहों के संबंध का भी पता चला है। हैरानी की बात है कि आधुनिक विश्व में जहां नाजीवाद की छाया से भी दूर रहना जरूरी माना जाता है, वहां कुछ लोग इसके आकर्षण में फंसे दिखते हैं। आस्ट्रेलिया में पनपा नव-नाजियों का समूह छोटा अवश्य है, लेकिन इसका विस्तार इस देश की सामाजिक समरसता को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
नस्लवाद की जटिल परतें तथा गुलामी, उपनिवेश और जातिवाद के ताने-बाने में उलझा भारत
गनीमत यह है कि आस्ट्रेलिया की सरकार ने इस तरह के दुराग्रहों को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की है। मगर पिछले दिनों नफरत पर आधारित कुछ घटनाओं को गंभीरता से लेना होगा। ऐसे माहौल में भारतीयों की सुरक्षा और सहजता से जीने के अधिकार का मसला सबसे अहम है। भारत सरकार को इस मुद्दे पर आस्ट्रेलिया से संवाद बनाए रखना चाहिए, क्योंकि वहां फिलहाल भारतीय मूल के साढ़े आठ लाख लोग रह रहे हैं। आस्ट्रेलिया ने स्वयं आप्रवासन को समायोजित किया है।
इससे न केवल उसके विकास की रफ्तार बढ़ी, बल्कि दुनिया में उसकी बहु-सांस्कृतिक छवि भी बनी है। आस्ट्रेलिया के सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष ने भी नव-नाजियों के रुख को शर्मनाक बताया है और स्पष्ट कर दिया है कि किसी तरह का नस्लवाद सहन नहीं किया जाएगा। उम्मीद है कि आस्ट्रेलिया सरकार की ओर से नव-नाजियों के उभार को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे और भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।