Racial discrimination against Indians in Australia: यह विचित्र विडंबना है कि जिस दौर में विश्व भर में किसी समाज के विकास को आधुनिकता के आईने में देखने की अपेक्षा की जाती है, उसमें कई बार कुछ घटनाएं इस कसौटी पर बहुस्तरीय नाकामी को रेखांकित करती हैं। ऐसी सामाजिक प्रवृत्तियों का सिरा ढूंढ़ना मुश्किल हो जाता है, जिसमें एक ओर कोई समाज सभ्यता के मानदंडों पर अन्य के मुकाबले अपने श्रेष्ठ होने का दंभ भरे, लेकिन वहीं कुछ लोगों का व्यवहार ऐसा भी हो जो उनके दुराग्रहों और कुंठाओं से भरे होने का सूचक हो।
गौरतलब है कि आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में एक हिंदू मंदिर और दो एशियाई रेस्तरां की दीवारों को नस्लवादी भित्तिचित्रों से विकृत कर दिया गया और नस्ली नफरत फैलाने वाली बातें लिखी गईं। खबर के मुताबिक, स्थानीय पुलिस ने इस घटना की पुष्टि जरूर की और कहा कि हमारे समाज में घृणा आधारित और नस्लवादी व्यवहार के लिए बिल्कुल जगह नहीं है। यानी जिन लोगों ने नस्ली नफरत फैलाने की कोशिश की, उन्हें स्थानीय स्तर पर कोई व्यापक समर्थन नहीं है। इसके बावजूद अक्सर ऐसी घटनाएं होते रहने की खबरें बताती हैं कि वहां ऐसे तत्त्व भी हैं, जो आस्ट्रेलिया की सामाजिक विकास नीतियों में मौजूद कमियों के सूचक हैं।
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भारतीय और एशियाई पहचान के लोगों को लक्ष्य बना कर मेलबर्न में इस तरह नस्लीय दुराग्रहों का प्रदर्शन कोई अकेली घटना नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से आस्ट्रेलिया में ही इसी प्रकृति की कई घटनाएं सामने आईं। इसके अलावा, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका, न्यूजीलैंड और अन्य कुछ देशों में भी भारतीय पहचान के लोगों पर नस्ली हमले हुए, घृणा से भरी टिप्पणियां की गईं और प्रत्यक्ष रूप से अपमानित करने की कोशिश की गई। ऐसे अनेक वाकये हैं, जिनमें किसी व्यक्ति ने बिना किसी कारण के सिर्फ भारतीय पहचान के आधार पर जानलेवा हमला किया।
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सवाल है कि ऐसी आक्रामकता का स्रोत क्या है? आखिर क्या वजह है कि हाल के वर्षों में अलग-अलग देशों में भारतीयों के प्रति इस तरह के हमलों में इजाफा हुआ है? जिस दौर में भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अहम मुद्दों के मामले में अपना मजबूत दखल देता दिख रहा है, उसमें भारतीय लोगों और उनकी आस्था को चोट पहुंचाने की घटनाओं पर बात सिर्फ चिंता जाहिर करने तक क्यों सिमट कर रह जाती है? क्या इसे कूटनीतिक मोर्चे पर एक नाकामी के तौर पर देखा जाएगा कि संबंधित देशों की सरकारें अपने यहां भारतीयों के प्रति नस्लवादी नफरत फैलाने वाले तत्त्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं करतीं और इसीलिए ऐसी घटनाएं होती रहती हैं?
यह समझना मुश्किल है कि जिन देशों को वैश्विक स्तर पर विकसित देशों की श्रेणी में माना जाता है, वहां इस तरह की स्थिति क्यों बनी हुई है, जिसमें कुछ लोग नस्लवादी पूर्वाग्रहों से भरे हुए हैं और किसी अन्य पहचान वाले लोगों या समुदायों को कमतर मान कर उनके साथ अमानवीय तरीके से पेश आते हैं। सवाल है कि प्रतिगामी धारणाओं या मनोग्रंथियों से भरा हुआ कोई व्यक्ति या समाज सभ्य और आधुनिक होने की कसौटी पर खुद को किसी से श्रेष्ठ कैसे मान सकता है।
दरअसल, नस्लवादी दुराग्रहों से भरे हुए कुछ लोग इस पहलू पर विचार करने की भी कोशिश नहीं करते और उनकी हरकतों से उपजे सवालों का जवाब दूसरे लोगों को देना पड़ता है। नस्लीय कुंठाओं में डूबे रहने के नतीजे में किसी व्यक्ति या समूह के भीतर जिस तरह की आक्रामकता और हिंसा का विस्तार होता है, उसका खमियाजा एक साथ कई पक्षों को भुगतना पड़ता है।