पाकिस्तान में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से वहां के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अपनी रिहाई की उम्मीद जगी थी, मगर उसके बाद एक अन्य मामले में जिस तत्परता से उन्हें हिरासत में लिया गया, उससे यही लगता है कि फिलहाल उनके लिए राहत दूर है। दरअसल, तोशाखाना मामले में गड़बड़ी के आरोप में वे अटक जेल में बंद थे, लेकिन मंगलवार को अदालत ने एक संक्षिप्त फैसले के तहत इस मामले में इमरान खान की सजा पर रोक लगा दी और उन्हें जमानत देने का भी आदेश दिया।

गौरतलब है कि इस्लामाबाद की एक जिला अदालत ने तोशाखाना मामले में इमरान खान को दोषी करार दिया था और तीन साल की जेल के साथ एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। पर इसी मामले में इस्लामाबाद हाई कोर्ट का फैसला आने के बावजूद यह आशंका पहले से बनी हुई थी कि इमरान की रिहाई हो पाएगी या नहीं।

इसी के मद्देनजर पाकिस्तान तहरीके-इंसाफ पार्टी की ओर से इमरान को फिर से गिरफ्तार न करने के अनुरोध वाली याचिका भी अदालत में दाखिल की गई थी। मगर इमरान को उसके तत्काल बाद वहीं की एक विशेष अदालत के एक आदेश पर उन्हें फिर हिरासत में ले लिया गया।

जाहिर है, सत्ता से बाहर होने के बाद से इमरान खान को जो मुश्किलें पेश आ रही थीं, उन पर कानूनी तौर पर शिकंजा कसा जा रहा था, उसमें फिलहाल उन्हें कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। इस समूचे प्रसंग में जिस स्तर पर खींचतान चल रही है, उससे साफ है कि इमरान खान के सामने अभी चुनौतियां जटिल हैं।

दरअसल, राजनीति के मैदान में होने वाले टकराव के बरक्स कानूनी कसौटी पर होने वाली लड़ाइयों में गेंद आमतौर पर सरकारों के हाथ में होती है। किस आरोप पर सख्ती से शिकंजा कसना है और किस पर कार्रवाई का रुख नरम रखना है, यह सरकार तय करती है। लेकिन मामला जब अदालत में पहुंचता है तब वहां होने वाले फैसले पर अमल के साथ एक स्पष्टीकरण या सही होने का भाव जुड़ा होता है। पाकिस्तान में इमरान खान के साथ चल रही खींचतान शायद इसी बिसात पर चलती दिख रही है।

हालांकि यह कहना मुश्किल है कि पाकिस्तान में सरकार के रुख में सेना कितनी हावी है और किस निर्देश में सेना का हस्तक्षेप नहीं है। अनेक मौकों पर यह सामने आता रहा है कि पाकिस्तान में सरकार के कामकाज में सेना का दखल जरूरत से ज्यादा है। बल्कि यह भी माना जाता है कि वहां अगर सरकार सेना के प्रभाव को दरकिनार कर अपनी मर्जी से कोई काम करने लगती है, राष्ट्रीय महत्त्व के फैसले करना शुरू करती है तो उसका लंबे वक्त तक टिकना मुश्किल हो जाता है।

हाल ही में पाकिस्तान के ही पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने यह स्वीकार किया था कि उनकी सरकार शक्तिशाली सेना के समर्थन के बिना नहीं चल सकती। उनके बयान ने एक तरह से इस बात की पुष्टि की थी कि पाकिस्तान के राजनीति परिदृश्य में सेना हावी रही है। यों सत्ता में आने के बाद शुरुआती दिनों में इमरान खान खुद भी सैन्य प्रतिष्ठान की पसंद रहे, लेकिन सरकार से बाहर होने के एक साल के भीतर ही वे सेना की निगाह में दुश्मन बन गए। यही वजह है कि पाकिस्तान में इमरान खान को जेल में बंद किए जाने या रिहाई को लेकर जो जद्दोजहद चल रही है, उसे सियासी बिसात पर सेना और सरकार के समीकरण के आलोक में भी देखा जा रहा है।