जम्मू-कश्मीर के पुंछ में हुए आतंकी हमले में सेना के चार जवानों की शहादत और तीन के घायल होने की घटना से एक बार फिर यही रेखांकित हुआ है कि सख्ती के तमाम दावों के बावजूद आतंकवादियों को पूरी तरह रोक पाने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है। इससे इतर ऐसे हमलों में एक नई प्रवृत्ति यह भी देखने में आ रही है कि आतंकी अब मुख्य रूप से सेना और अर्धसैनिक बलों को निशाना बना रहे हैं।

जाहिर है, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद ने नए सिरे से एक जटिल शक्ल अख्तियार कर ली है और यह गहरी चिंता का विषय है। गौरतलब है कि आतंकियों ने घात लगा कर सेना के दो वाहनों पर हमला किया, जो जवानों को लेकर सुरनकोट और बफलियाज जा रहे थे। वहां सुरक्षाबलों ने एक खुफिया सूचना के आधार पर आतंकियों के खिलाफ घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू किया था। हालांकि इस दौरान सेना के जवानों की ओर से भी मजबूती से जवाब दिया गया, मगर इस मुठभेड़ में चार जवान शहीद हो गए और तीन अन्य घायल हो गए।

यह सही है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर काबू पाने के लिए अनेक सख्त कदम उठाए गए, इसका असर भी देखने में आया कि आतंकी संगठनों की सक्रिय गतिविधियों कमी आई। मगर यह भी तथ्य है कि इस बीच आतंकी हमलों की प्रकृति में बदलाव देखा गया और निशाने पर सार्वजनिक स्थान और आम लोगों के बजाय अब सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों को रखा जाने लगा है।

कहा जा सकता है कि सरकार की ओर से आतंकी संगठनों की गतिविधियों की पहले की प्रवृत्ति के मद्देनजर जो रणनीति बनाई गई थी और उसकी वजह से अनेक आतंकवादियों को मार गिराने और आतंकी वारदात पर काबू पाने में कामयाबी मिलने लगी थी, शायद उसे ही देखते हुए आतंकी संगठनों ने अब ऐसे हमलों के लिए अलग तौर-तरीके अपनाने शुरू किए हैं। साफ है कि इस नई चुनौती का सामना करने के लिए उस क्षेत्र में पसरे आतंकवाद के खिलाफ उसी के मुताबिक सेना और अर्धसैनिक बलों को भी नई रणनीति पर काम करने की जरूरत है।

गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से ऐसी कई घटनाओं की तरह पुंछ में हुए ताजा हमले की भी जिम्मेदारी लश्करे-तैयबा की एक शाखा पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट यानी पीएएफएफ ने ली है। आतंकवाद के दायरे में इस नए चेहरे को भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला, अपने संगठन में भर्ती के लिए युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए भी जाना जाता है।

जाहिर है कि आतंकवाद का सामना करने के लिए सरकार की कोशिशों के बरक्स आतंकी संगठनों ने भी अपने तरीके में बदलाव किया है और इसी मुताबिक सेना या अर्धसैनिक बलों को भी सभी संभव विकल्प आजमाने के साथ-साथ सबसे ज्यादा ध्यान अपने खुफिया तंत्र पर देने की जरूरत है। पाकिस्तान स्थित ठिकानों से संचालित होने वाले ऐसे आतंकवादी संगठन आमतौर पर अपने हमलों को अंजाम देने के लिए स्थानीय आबादी का सहारा लेते हैं।

इसलिए इसी मुताबिक सेना और सुरक्षा बलों को अपने अभियान को जारी रखना होगा। हालांकि अपने दायरे में सेना या अर्धसैनिक बलों की ओर से कोई कमी नहीं की जाती है, मगर पुंछ में हुए हमले में जवानों की शहादत और पीएएफएफ की ओर से इसकी जिम्मेदारी लेने की घटना ने आतंकवादियों से निपटने के लिए नई रणनीति की जरूरत रेखांकित की है।