अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और आज देश की राजनीति में भी एक ऊंचे कद के नेता माने जाते हैं। इस मुकाम के शुरुआती सफर के दौरान केजरीवाल सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे को अपना राजनीतिक गुरु कहते थे। तब के प्रदर्शनों के बीच राजनीतिक और सामाजिक मसलों पर दोनों के जो विचार सामने आए थे, उससे यह साफ था कि उनके आंदोलन की दिशा क्या है।
लेकिन मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश और फिर दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कई मसलों पर जो नीति अख्तियार की, उसकी कई लोगों ने तारीफ की तो बहुत सारे लोगों ने इन नीतियों को कसौटी पर रखने की भी मांग की। इस बीच दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने खासतौर पर शराब के मसले पर जो रवैया अपनाया, वह बहस का केंद्र बना। राजधानी में शराब खरीदने और पीने के मामले में पहले की नीतियों को जिस तरह नरम किया गया, उसने समाज के एक बड़े हिस्से में चिंता पैदा की कि क्या यह शराब को आम करने और इस रास्ते एक बड़े नुकसान की भूमिका नहीं है!
दिल्ली में सामाजिक संगठनों से लेकर विपक्षी दलों की ओर से शराब नीति पर सवाल उठाने के बाद भी आम आदमी पार्टी सरकार अपने रुख से पीछे नहीं हटी। एक तरह से यह उस आंदोलन के विचारों के विरुद्ध था, जिसके गर्भ से ‘आप’ का जन्म हुआ। गौरतलब है कि भ्रष्टाचार विरोध के नाम पर हुए उस आंदोलन में केजरीवाल के सबसे महत्त्वपूर्ण अण्णा हजारे के शराब पर स्पष्ट विचार रहे हैं। इसलिए आज अगर अण्णा हजारे ने केजरीवाल की शराब नीति को लेकर तीखा सवाल उठाया है तो यह स्वाभाविक ही है।
अण्णा ने इस मसले पर साफ लहजे में केजरीवाल को यह कह कर कठघरे में खड़ा किया है कि आपकी शराब नीति दरअसल ‘कथनी और करनी’ में फर्क का उदाहरण है। निश्चित रूप से केजरीवाल के लिए यह एक असहज करने वाली स्थिति है, क्योंकि एक ओर अण्णा उनके आंदोलन के सबसे विश्वसनीय चेहरे रहे, जिन्हें वे अपना राजनीतिक गुरु बताते रहे, वहीं वे अपनी ‘कथनी और करनी’ के एक होने के दावे पर ही बाकी दलों और उनके नेताओं को चुनौती देते रहे।
यह छिपा तथ्य नहीं है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने शराब के मामले में किस हद तक उदार नीति लागू की। सच यह है कि आसान शर्तों पर शराब की दुकानें खोलने से लेकर इसे पीने की उम्र को पच्चीस से घटा कर इक्कीस करके सरकार ने इसके सेवन के दायरे का विस्तार किया। भारत में सामाजिक सशक्तिकरण के जो स्तर रहे हैं, शराब के सेवन को लेकर इसके शौक में डूबे या फिर लती लोगों की जैसी लापरवाही रही है, उसमें दिल्ली सरकार की नीति ने कैसे नतीजे दिए होंगे!
केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार उन्हें लिखे पत्र में अण्णा ने साफ लहजे में कहा कि आपकी पार्टी गलत रास्ते पर चल रही है, आपकी सरकार ने महिलाओं को प्रभावित करने वाली शराब नीति बनाई है और लोगों का जीवन बर्बाद कर रही है। विचित्र यह है कि अरविंद केजरीवाल ने ही अपनी किताब ‘स्वराज’ में लिखा था कि ‘शराब की दुकान खोलने का लाइसेंस तभी दिया जाना चाहिए जब ग्राम सभा में मौजूद नब्बे फीसद महिलाओं की मंजूरी हो।’
इस कसौटी पर वे कहां खड़े हैं? अण्णा हजारे ने पत्र में इस संदर्भ का भी जिक्र किया है। अब अरविंद केजरीवाल भले यह कहें कि भाजपा अण्णा हजारे के कंधे पर रख कर बंदूक चला रही है, लेकिन अण्णा की यह चिट्ठी उनके अपने ही घोषित विचारों और आदर्शों के बरक्स उनकी आज की नीतियों के सामने एक आईना है, जिस पर उन्हें विचार करना चाहिए।