डिजिटल प्रौद्योगिकी हमारे जीवन को आसान और कुशल बनाती है। इससे संचार, शिक्षा, बैंकिंग और स्वास्थ्य सहित कई सेवाएं बेहतर हो जाती हैं। निस्संदेह यह तकनीक आज के समय की जरूरत बन गई है। मगर निजी और व्यावसायिक स्तर पर इसका जितना महत्त्व है, बिना व्यापक जानकारी के इसका इस्तेमाल उतना ही खतरनाक साबित हो सकता है। इस आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल अब आपराधिक गतिविधियों में भी धड़ल्ले से होने लगा है। इसी तरह के एक मामले में महाराष्ट्र के अमरावती में उपभोक्ता अदालत से सेवानिवृत्त न्यायाधीश को साइबर जालसाजों ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर उनसे इकतीस लाख रुपए ठग लिए।

हालांकि, इस तरह की यह कोई पहली घटना नहीं है, इससे पहले भी ऐसे कई मामले देश भर में सामने आ चुके हैं। मगर सवाल है कि इन घटनाओं से शासन-प्रशासन और डिजिटल तकनीक से जुड़े लोग क्या सबक ले रहे हैं? क्या इस तरह के अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न स्तरों पर कोई ठोस उपाय किए गए हैं?

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दरअसल, ‘डिजिटल अरेस्ट’ का मतलब है कि जब साइबर जालसाज किसी व्यक्ति को आनलाइन माध्यम से डराते-धमकाते हैं और उसे तब तक एक स्थान पर ही रहने को मजबूर कर देते हैं, जब तक कि वह मुंह मांगी रकम नहीं दे देता। ऐसे में सबसे पहले यह जरूरी है कि डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करने वाले लोग ज्यादा से ज्यादा जागरूक हों। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या सौ करोड़ तक पहुंच गई है। मगर, सवाल है कि इनमें से कितने लोग ऐसे होंगे, जो डिजिटल तकनीक की जटिलताओं और इसके संभावित खतरों को जानते-समझते हैं?

आए दिन सामने आ रहे साइबर अपराधों की तस्वीर से साफ है कि ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम है। अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अगर शिक्षित एवं उच्च पदों पर रहे लोग भी साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं, तो डिजिटल तकनीक के मामले में आम लोगों के साथ क्या स्थिति होगी। सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि किसी नई तकनीक को लेकर जनता के बीच व्यापक जागरूकता लाई जाए। साथ ही, तकनीक के दुरुपयोग को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।