दिल्ली के चांदनी चौक से विधायक अलका लांबा को पार्टी प्रवक्ता के पद से हटाए जाने और उसके पीछे बताई गई वजह की खबर इसलिए अहम है कि आम आदमी पार्टी का उदय वैकल्पिक राजनीति के दावे के साथ हुआ था। ऐसी पार्टी अपने एक विधायक के खिलाफ सिर्फ इसलिए कार्रवाई करती है कि उसने पार्टी लाइन से अलग कोई बात कह दी, तो सवाल उठने स्वाभाविक हैं। गौरतलब है कि ऐप आधारित बस सेवा योजना में ‘आप’ के नेता और सरकार में मंत्री गोपाल राय पर एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के आरोप लगे थे। विवाद में आने के बाद इस मामले की जांच चल रही है। इस बीच काम का बोझ ज्यादा होने और स्वास्थ्य ठीक न होने का कारण बता कर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
इसी संदर्भ में अलका लांबा ने कहा कि प्रीमियम बस घोटाले में आरोप लगने पर गोपाल राय ने इस्तीफा दिया है, ताकि जांच में कोई बाधा न आए। घोषित तौर पर यह आम आदमी पार्टी की लाइन नहीं थी। इस मसले पर केजरीवाल सरकार ने कहना था कि खराब सेहत के कारण गोपाल राय ने परिवहन विभाग छोड़ा है। जाहिर है, अलका लांबा के बयान के बाद विपक्षी दलों को यह कहने का मौका मिल गया कि घोटाले के आरोप के चलते ही गोपाल राय को पद छोड़ना पड़ा। भ्रष्टाचार-विरोधी मुहिम की पहचान वाली पार्टी के लिए यह इसलिए भी एक असहज स्थिति है कि फिलहाल संसदीय सचिव विधेयक को राष्ट्रपति के लौटा देने के बाद ‘आप’ के इक्कीस विधायकों की सदस्यता पर तलवार लटक रही है। जिस तेजी से पार्टी ने अलका लांबा को प्रवक्ता पद से हटाने का फैसला किया, उससे स्वाभाविक ही यह सवाल उठा कि क्या ‘आप’ के भीतर असहमति के स्वर की जगह नहीं बची है!
हालांकि इस मामले से पहले भी, पार्टी नेतृत्व पर ऐसे आरोप लग चुके हैं कि असहमत आवाजों को दरकिनार कर दिया जाता है या फिर बाहर निकाल दिया जाता है। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के मामले में पार्टी में बड़ा टकराव सामने आया था और आखिरकार इन दोनों नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। सवाल है कि आम आदमी पार्टी ने जो छवि अर्जित की थी और स्वच्छ राजनीति के लिए संघर्ष करने का जो दावा किया था, इतनी जल्दी अपनी वह नीति उसे क्यों बोझ लगने लगी! जो हो, कार्रवाई के बाद अलका लांबा ने कहा कि अगर मुझसे कोई गलती हुई होगी तो मैं उसका पश्चात्ताप करूंगी, ताकि भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी की लड़ाई को कोई नुकसान न पहुंचे। लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई को क्या लोकतांत्रिक फैसला कहा जा सकता है? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से ही आम आदमी पार्टी वजूद में आई और आज भी उसे इसी पृष्ठभूमि से जोड़ कर देखा जाता है। लिहाजा, अगर पार्टी का कोई सदस्य भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में आया तो उस पर परदा डालने के बजाय उसके पाक-साफ होकर निकलने का इंतजार किया जाना चाहिए। अगर किसी सदस्य ने कोई ऐसा बयान दिया जो पार्टी लाइन से इतर है तो उसे किनारे करने से समस्या का हल नहीं होगा।