दुनिया फिलहाल जिस संवेदनशील दौर से गुजर रही है और भारत के सामने अपने कुछ पड़ोसी देशों के अस्थिर रुख की चुनौतियां खड़ी रहती हैं, वैसे में सुरक्षा का हर मोर्चा हर वक्त पूरी तरह चौकस और दुरुस्त रहना एक अनिवार्य तकाजा है। निश्चित रूप से देश की सरकार ने इस संबंध में कोताही नहीं बरतती होगी। लेकिन यह ऐसा मसला है, जिसमें हमेशा ज्यादा बेहतर करने की जरूरत होती है, कमियों पर ध्यान देना जरूरी होता है।
इस लिहाज से देखें तो देश के वायुसेना प्रमुख एअर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने गुरुवार को महत्त्वपूर्ण रक्षा परियोजनाओं के तहत संसाधनों की खरीद और आपूर्ति को लेकर जो सवाल उठाए हैं, उन पर गौर किया जाना बेहद जरूरी है। उन्होंने रक्षा सौदों में आपूर्ति में देरी पर चिंता जाहिर करते हुए घरेलू रक्षा क्षेत्र पर गंभीरता से विचार करने के लिए जिन बातों की ओर ध्यान दिलाया है, उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। वायुसेना प्रमुख ने साफ शब्दों में कहा कि इस क्षेत्र में कई परियोजनाओं के वादे तो किए गए, लेकिन निर्धारित समय में एक भी परियोजना पूरी नहीं हो सकी। जबकि बढ़ती चुनौतियों और संवेदनशीलता के मद्देनजर देखें तो समय सीमा सबसे अहम मुद्दा होना चाहिए।
सरकार को चुनौतियों की पहचान कर हल के लिए पहल करनी चाहिए
सवाल है कि जिस मसले पर सरकार को अपनी ओर से चुनौतियों की पहचान और उसका हल निकालने की पहल करनी चाहिए, उसकी फिक्र वायुसेना प्रमुख को जाहिर करने की जरूरत क्यों पड़ी। यह छिपा नहीं है कि समूची दुनिया में अलग-अलग देशों के बीच समीकरण किस तेजी से बदल रहे हैं। कारणों पर बहस हो सकती है, लेकिन यह जगजाहिर है कि अचानक पैदा हुई परिस्थितियों में किसी देश के सामने टकराव से लेकर युद्ध तक के हालात में सुरक्षा संबंधी गंभीर चुनौती खड़ी हो सकती है।
ऐसे में अगर सैन्य बलों की ओर से परियोजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने पर चिंता जाहिर की जाती है, तो यह सरकार के लिए तत्काल विचार करने और कमियों पर गौर करने का मामला होना चाहिए। वायुसेना प्रमुख की यह बात बेहद अहम है कि युद्ध का चरित्र बदल रहा है तो हर दिन हम नई तकनीकें देख रहे हैं। जाहिर है, इसी मुताबिक खुद को तैयार रखने की जरूरत है।
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भारत ने कई मौकों पर इस तरह की चुनौतियों को बेहद करीब से देखा और इसका सामना किया है, जिसमें पाकिस्तान या चीन जैसे पड़ोसी नाहक ही टकराव जैसे हालात पैदा करते रहते हैं। हालत यह है कि पाकिस्तान को किसी भी समय संघर्ष विराम का उल्लंघन करने में हिचक नहीं होती, तो चीन की गतिविधियां भी भारत के लिए चिंता का कारण रही हैं। ऐसे में सीमा पर कब कैसी परिस्थितियां पैदा हो जाएं, यह तय कर पाना मुश्किल है।
ऐसे में अगर लड़ाकू विमानों की खरीद का सौदा तय हो जाए, लेकिन उसकी आपूर्ति और तैनाती के समय को लेकर सजगता नहीं बरती जाए, तो इसके क्या नतीजे हो सकते हैं? पिछले कुछ वर्षों के दौरान युद्ध और तकनीकी के मोर्चे पर दुनिया भर में जिस तरह के बदलाव आए हैं, उसमें जरूरत इस बात की है कि सेना को सभी और नए जरूरी साजो-सामान से लैस किया जाए।
रक्षा परियोजनाओं के तहत अगर किसी संदर्भ में वादे किए जाते हैं, तो उन्हें समय पर पूरा करने को लेकर भी उतनी ही सजगता होनी चाहिए। रक्षा क्षेत्र में तकनीकी और संसाधनों के विकास के मामले में आत्मनिर्भरता सबसे बेहतर समाधान है, लेकिन तात्कालिक जरूरतों को तुरंत पूरा करने के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
