आज जब विश्व में एआइ यानी कृत्रिम मेधा को लेकर उत्साह का वातावरण है, प्रधानमंत्री ने भी पेरिस में आयोजित एक सम्मेलन में एआइ के प्रति सकारात्मक पक्ष रख कर भारत का रुख स्पष्ट कर दिया है। इसमें कोई दो मत नहीं कि कृत्रिम मेधा के नियमन और नवाचार के बीच संतुलन कायम रखते हुए हमें आगे बढ़ना होगा। इस क्षेत्र में पूरी दुनिया के साथ कदमताल करते हुए भारत ने न केवल एआइ को अपनाया, बल्कि वह डेटा गोपनीयता को कानूनी जामा पहनाने वाले अग्रणी देशों में है। इस दिशा में उसने कई पहल की है।

नीति आयोग ने इसे बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय रणनीति भी तैयार की है। तमाम पूर्वाग्रहों को दरकिनार कर भारत जिस तरह इस दिशा में आगे बढ़ रहा है, यह जरूरी भी था, क्योंकि न केवल अर्थव्यवस्था और सुरक्षा, बल्कि कृषि, चिकित्सा एवं शिक्षा के क्षेत्र में एआइ की बड़ी भूमिका होगी। भविष्य में भारतीय समाज का परिदृश्य भी बदलेगा। प्रधानमंत्री ने सही कहा कि एआइ से लोगों की जिंदगी बदलेगी। भारत ने इस अवसर पर प्रौद्योगिकी के लोकतंत्रीकरण का मुद्दा भी उठाया है, जो परस्पर विश्वास और पारदर्शिता के लिए आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अविश्वास की भावना बनी रहेगी।

एआइ के बढ़ते इस्तेमाल से सृजित होती जाएंगी नई नौकरियां

भारत में कृत्रिम मेधा के इस्तेमाल के शुरूआती दौर में ठीक उसी तरह शंकाएं थीं, जिस तरह करीब चार दशक पहले कंप्यूटर आने और उसका उपयोग शुरू होते समय व्यक्त की गई थीं। मगर कंपयूटर से काम आसान हो गया। एआइ से भी कामकाज का तरीका बदलेगा। कई जटिल कार्य सरलता और तेजी से होंगे। प्रधानमंत्री का कथन उचित ही है कि प्रौद्योगिकी से काम खत्म नहीं होता, उसकी प्रकृति बदल जाती है। इस लिहाज से देखें, तो एआइ के बढ़ते इस्तेमाल के साथ नई नौकरियां सृजित होती जाएंगी। युवाओं को अनेक अवसर मिलेंगे।

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वक्त आ गया है कि लोग और खासकर युवा एआइ दक्ष बनें, ताकि भविष्य में होने वाले बदलाव के लिए स्वयं को तैयार कर सकें। तभी देश भी एआइ सक्षम बनेगा। वह नवाचार की ओर भी बढ़ेगा। पारंपरिक तथा गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में कम पूंजी और श्रम से भारत भी विश्व पटल पर नई इबारत लिखेगा।