पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर हाल में हुई हिंसक झड़पों से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। वैसे दोनों ओर संघर्ष के मोर्चे इस तरह खुलने की यह पहली घटना नहीं है। वर्ष 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान का शासन कायम होने के बाद भी यह सिलसिला जारी है। गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तान पहले जिस तालिबान का हितैषी कहलाता था, आज वह उनके खिलाफ ही खड़ा हो गया है।
इसका कारण यह है कि पाकिस्तान अपने इलाके में हो रहे आतंकी हमलों के लिए तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) को जिम्मेदार मानता है और यह आरोप लगाता रहा है कि उसे अफगानिस्तान की मौजूदा तालिबान सरकार का संरक्षण प्राप्त है। दोनों देशों के सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष की यह घटना ऐसे समय में हुई, जब अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी भारत दौरे पर आए। ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान को अफगानिस्तान का भारत के साथ मेलजोल बढ़ाना रास नहीं आ रहा है?
1893 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान खींची गई थी ‘डूरंड रेखा’
दरअसल, पाकिस्तान के गठन के बाद से ही अफगानिस्तान के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं रहे हैं। वर्ष 1949 में आजाद पश्तूनिस्तान बनाने के मुद्दे पर पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की आदिवासी बस्तियों पर हमले किए थे। इसके बाद दोनों देशों के बीच सीमा पर हिंसक झड़पों का सिलसिला शुरू हो गया। पाकिस्तान का दावा है कि जब से अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आई है, टीटीपी ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। उधर, अफगानिस्तान का आरोप है कि पाकिस्तान के सुरक्षाबल बिना कारण उसके सीमा क्षेत्र में हवाई हमले कर रहे हैं।
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दोनों देशों के आपसी विवाद की एक वजह सीमा पर 1893 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान खींची गई ‘डूरंड रेखा’ भी है, जिसे पाकिस्तान मान्यता देता है, लेकिन अफगानिस्तान इसे अस्वीकार करता रहा है। गौरतलब है कि पाकिस्तान जिस तरह से भारतीय सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ कराता है, उसी तरह के आरोप अब वह अफगानिस्तान पर लगा रहा है। बहरहाल, आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच तनाव कम होगा या संघर्ष तेज होगा, यह देखने वाली बात होगी।