तमाम कड़े नियम-कानून के बावजूद महिलाओं पर तेजाब से हमला करने की घटनाएं आज भी सामने आ रही हैं। सच यह है कि अगर अब तक सामने आई घटनाओं में पर्याप्त कानूनी सख्ती बरती गई होती, तो इस तरह की वारदात पर लगाम लग सकती थी। देश की राजधानी में बीते रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा पर तेजाब से हमले की पृष्ठभूमि कोई एक दिन में नहीं बनी थी। आरोपी उसका जानकार था और वह काफी समय से उसका पीछा कर रहा था। एक महीने पहले आरोपी ने छात्रा का रास्ता रोका था, तो उनके बीच काफी कहासुनी हुई थी।

इस विवाद की जड़ को समझना कोई मुश्किल नहीं है। जाहिर है कि आरोपी युवक किसी हताशा अथवा कुंठा का शिकार था और उसने साथियों के साथ मिल कर घटना को अंजाम दिया। गौरतलब है कि पिछले एक दशक में महिलाओं पर तेजाब हमले की जितनी भी घटनाएं हुई हैं, उनमें अधिकतर आरोपी पीड़ित महिला के जानकार थे या फिर हीनताबोध से उपजी कुंठा के शिकार।

लड़कियों की इच्छा की भी करनी चाहिए कद्र

इस तरह की घटनाओं में सबसे पहला सवाल यही होना चाहिए कि आखिर किन वजहों से आपराधिक कुंठा का शिकार कोई युवक किसी महिला पर तेजाब फेंकते हुए पूरी तरह बेखौफ रहता है। क्या यह कानून-व्यवस्था और उसका असर शून्य होने का सबूत नहीं है कि अपराधी बिना किसी भय के जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं? कुछ सवाल समाज से भी पूछे जाने चाहिए कि परिवारों में पालन-पोषण के दौरान खासतौर पर लड़कों के भीतर ऐसे मूल्य कौन तैयार करेगा कि उसे महिलाओं या लड़कियों की इच्छा की भी कद्र करनी चाहिए। जबरन किसी से दोस्ती नहीं की जा सकती।

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अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो यह उसके भीतर आपराधिक मानसिकता घर कर जाने का सबूत है। शीर्ष अदालत ने वर्ष 2013 में ही तेजाब की खुली बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था, तो यह लोगों को कैसे उपलब्ध हो रहा है? विडंबना यह है कि ऐसे मामलों में कानूनी कार्रवाई को लेकर हीलाहवाली होने की वजह से अपराधी मानस वाले युवकों के भीतर दुस्साहस बढ़ता है, जिसका खमियाजा वैसी लड़कियों या महिलाओं को उठाना पड़ता है, जो अपनी पढ़ाई या नौकरी करने घर की दहलीज से बाहर निकलती हैं।