जागरूकता की कमी और व्यवस्थागत लापरवाही का नतीजा एक बार फिर होली के मौके पर सामने आया, जब कई लोग बुरी रह झुलस गए। दिल्ली के पांडव नगर इलाके में कुछ लोग घर की छत पर होली खेलते हुए एक-दूसरे पर रंग और पानी फेंक रहे थे। इसी बीच पास से गुजरते उच्च क्षमता के बिजली के तार पर पानी चला गया और उसमें अचानक विस्फोट हो गया। इसकी चपेट में सात लोग आए और गंभीर रूप से घायल हो गए।
त्योहार पर हादसा, खतरों की अनदेखी
यों यह एक हादसा है, पर इसे बहुस्तरीय लापरवाही का नतीजा माना चाहिए। समझना मुश्किल है कि किसी खुशी के मौके पर लोग संभावित खतरों की अनदेखी क्यों करते हैं। अपनी छतों पर होली खेलते लोगों को क्या यह जानकारी नहीं थी कि वे जिस तरह एक-दूसरे पर पानी फेंक रहे हैं, वह अगर बिजली के तार से छू गया तो उसके क्या नतीजे हो सकते हैं?
विडंबना है कि एक ओर आम लोग जागरूकता की कमी के चलते अक्सर लापरवाही कर बैठते और ऐसे हादसों के शिकार हो जाते हैं, वहीं संबंधित सरकारी महकमों को यह ध्यान रखना जरूरी नहीं लगता कि आम लोगों के लिए किसी सुविधा का विस्तार करते हुए जोखिम के लिहाज से या तो उचित सुरक्षात्मक व्यवस्था की जाए या फिर इंसानी आबादी के लिए खतरनाक साबित होने वाली किसी चीज को लेकर जरूरी कायदे तय किए जाएं। इस व्यवस्थागत कमी के अलावा किसी पर्व-त्योहार के मौके पर आम लोग आए दिन भारी लापरवाही बरतते देखे जाते हैं।
ज्यादा दिन नहीं हुए, जब राजस्थान के कोटा में शिवरात्रि के मौके पर शिव बरात में शामिल लोगों में से किसी का झंडा उच्च क्षमता के तार से छू गया और उसमें चौदह बच्चे झुलस गए। ऐसी घटनाएं अक्सर सामने आती हैं, मगर न तो आम लोग उनसे सबक लेते हैं और न ही प्रशासन की ओर से कोई सुरक्षित इंतजाम किए जाते हैं। सवाल है कि घनी बस्ती में अगर जानलेवा साबित होने वाले उच्च क्षमता के बिजली के तार इंसानी गतिविधियों की पहुंच में गुजर रहे हों, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है?