सरकारी कर्मचारियों के लिए एक नियत अंतराल पर वेतन आयोग गठित होता रहा है। आयोग की सिफारिशों के मुताबिक वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी भी की जाती रही है, ताकि उन्हें बदली हुई परिस्थितियों के अनुरूप बनाया जा सके। इस हिसाब से सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में नई बात क्या हो सकती थी! पर पहली बार किसी वेतन आयोग ने कुछ नए सुझाव भी दिए हैं। मसलन, सातवें आयोग ने कहा है कि कर्मचारियों को कार्य-प्रदर्शन के आधार पर पुरस्कृत किया जाए। इसका तरीका वेतन-वृद्धि या कुछ और भी हो सकता है। इसी तरह केंद्रीय कर्मियों के लिए समान रैंक समान पेंशन की पैरवी आयोग ने की है। इसमें केंद्रीय अर्धसैनिक बल भी आएंगे। न्यायमूर्ति अशोक कुमार माथुर की अध्यक्षता वाले सातवें वेतन आयोग की राय एक मसले पर बंटी रही। केंद्र की नौकरशाही में प्रशासनिक सेवा के अफसरों को पुलिस अधिकारियों और वन अधिकारियों से तरजीह मिलती रही है। अध्यक्ष न्यायमूर्ति माथुर समेत कुछ सदस्य इस वरीयता के फर्क को समाप्त करने के पक्ष में थे, पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई। अब जब तक सरकार रिपोर्ट पर अपना अंतिम निर्णय नहीं सुना देती, इस मसले के पक्ष और विपक्ष में दलीलों का सिलसिला चलता रहेगा।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें पहली जनवरी 2016 से लागू होंगी। इन सिफारिशों के मुताबिक केंद्रीय कर्मियों के वेतन-भत्ते और पेंशनयाफ्ता लोगों के पेंशन में औसतन चौबीस फीसद की बढ़ोतरी होगी। वेतन में सोलह फीसद बढ़ोतरी की सिफारिश की गई है, भत्तों में तिरसठ फीसद की। केंद्र सरकार में न्यूनतम वेतन अठारह हजार रुपए होगा और अधिकतम वेतन सवा दो लाख रुपए। ग्रेच्युटी सीमा दस लाख रुपए से बढ़ा कर बीस लाख रुपए कर दी गई है। आयोग ने आवास भत्ते का फार्मूला बदलने, तीन फीसद सालाना वेतन वृद्धि और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवान की ड्यूटी के दौरान मौत होने पर सेना की तरह उसे भी शहीद का दर्जा देने का सुझाव दिया है।
सिफारिशों के चलते सरकार पर करीब एक लाख करोड़ रुपए सालाना का बोझ पड़ेगा। इससे राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है। पहले के आयोगों के अनुभव ऐसे ही थे। छठे वेतन आयोग का तो राजकोषीय स्थिति पर कुछ ज्यादा ही असर पड़ा, क्योंकि तब बढ़ोतरी भी ज्यादा हुई और सिफारिशें पीछे की तारीख से लागू हुई थीं जिससे सरकार को बकाए के तौर पर भी काफी भुगतान करना पड़ा था। इस बार बकाए का कोई झमेला नहीं है। फिर भी राजकोषीय घाटे को पूर्व निश्चित सीमा में लाने की सरकार की योजना फिलहाल खटाई में पड़ सकती है।
आम बजट में राजकोषीय घाटे को 2015-16 में जीडीपी के 3.9 फीसद तक और 2017-18 तक तीन फीसद तक लाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन अगले दो साल सरकार को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के असर से जूझना पड़ेगा। इन सिफारिशों के चलते महंगाई का ग्राफ भी कुछ ऊपर जा सकता है। मगर केंद्रीय कर्मियों के खर्च और निवेश में बढ़ोतरी से बाजार में गतिशीलता आने की भी उम्मीद की जा रही है। सातवें वेतन आयोग के लाभार्थी अपनी बढ़ी हुई आय वाहन, आवास जैसे मदों में लगाना चाहेंगे। लेकिन केंद्रीय कर्मचारी हमारे देश की आबादी का एक बहुत छोटा हिस्सा हैं। उनकी आमदनी में इजाफे से अर्थव्यवस्था को बहुत बड़े पैमाने पर गति नहीं मिल सकती, न वह दीर्घकाल तक टिकाऊ रह सकती है। यह तो तभी हो सकता है जब उन लोगों की भी आय बढ़े, जो हमारे देश की आबादी का विशाल हिस्सा हैं, पर जो क्रयशक्ति के लिहाज से हाशिये पर रहे हैं।