पिछले कुछ दशकों में भारत में एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग ऐसा खड़ा हुआ है, जिसकी जरूरतें कई बार बाजार से संचालित होती हैं। भारत में आइफोन-17 की बिक्री शुरू होने के साथ ही बीते शुक्रवार को जैसा माहौल देखा गया, वह देश की अर्थव्यवस्था में दिनोंदिन विकास के दावे के समांतर किसी वस्तु की जरूरत और उसके उपभोग के पहलू पर विचार के तकाजे को रेखांकित करता है। गौरतलब है कि आइफोन-17 की बिक्री शुरू होने की घोषणा के साथ ही दिल्ली और मुंबई सहित कई शहरों में एप्पल के स्टोर के सामने युवाओं की भारी भीड़ जमा हो गई।
उनमें से बहुत सारे लोग वहां रात में ही पहुंच गए थे। मुंबई स्थित स्टोर के सामने लोगों के बीच आपस में मारपीट की भी खबरें आईं। कहा जा सकता है कि बाजार में किसी नई चीज के आने पर उसके प्रति युवाओं के बीच ऐसा आकर्षण और उत्साह सामान्य है। लेकिन जिस दौर में दुनिया भर में रोज खड़ी हो रही नई चुनौतियों और राजनीतिक-सामाजिक स्तर पर जड़ता के समांतर उपजे एक संक्रमणकाल के बीच युवाओं की बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका सामने आ रही है, उसमें आइफोन के नए संस्करण को लेकर ऐसे आकर्षण को कैसे देखा जाएगा।
उच्च शिक्षा की डिग्री के बाद भी भरना पड़ रहा ग्रुप डी का फॉर्म
जिस दिन आइफोन-17 खरीदने के लिए हजारों युवा एप्पल के स्टोर के सामने उमड़ पड़े, उसी दिन यह भी खबर आई कि राजस्थान में करीब चौबीस लाख युवा चपरासी के पद पर नियुक्ति के लिए आयोजित परीक्षा में शामिल थे। इनमें बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की थी, जिनके पास उच्च शिक्षा की डिग्री है। रोजगार के अवसर से संबंधित ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं। बढ़ती बेरोजगारी की चुनौतियों के अलावा भी अमीरी-गरीबी के बीच तेजी से बढ़ती खाई और शिक्षा से लेकर आर्थिक मोर्चे पर देश जिस तरह की जटिलताओं से जूझ रहा है, उसमें यह सवाल स्वाभाविक है कि देश के सक्षम तबकों के युवाओं का सरोकार और उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं।
इसे भी पढ़ें- संपादकीय: अपराधियों पर गोली, लेकिन खौफ अब भी गायब, यूपी में महिला सुरक्षा पर बड़ा सवाल; कैसे होगा अपराध नियंत्रण?
ऐसे दृश्य आम हैं, जिनमें अपने आसपास हो रही किसी त्रासद घटना पर युवाओं के बीच जरूरी संवेदना और सक्रियता का अभाव दिखता है। ऐसे में राष्ट्र और समाज के हित से जुड़े बड़े सवालों पर उनकी ठोस प्रतिक्रिया की बस उम्मीद ही की जा सकती है। हालांकि राजनीतिक अभियानों में युवाओं का एक बड़ा वर्ग अक्सर सक्रिय दिखता है, लेकिन तयशुदा पक्षधरता की अपनी सीमा होती है।
कर्ज या मासिक किस्त का सहारा लेकर फोन खरीद ले रहे लोग
हालांकि यह भी सच है कि एक बड़ी आबादी का कोई हिस्सा अगर बाजार में सक्रिय उपभोक्ता के रूप में दिखता है, तो इसे समूचे समाज का प्रतिनिधि चरित्र नहीं माना जाना चाहिए। मगर जिस आइफोन-17 को लेने के लिए मची होड़ चर्चा का विषय बनी, उसकी कीमत लगभग डेढ़ लाख रुपए है। कई युवाओं ने उसकी पूरी कीमत चुकाई होगी तो बहुत सारे ऐसे भी होंगे, जिन्होंने उसके लिए कर्ज या मासिक किस्त का सहारा लिया होगा।
इसे भी पढ़ें- संपादकीय: राहुल गांधी के आरोप और चुनाव आयोग की जवाबदेही – इस टकराव में जनता का भरोसा न टूट जाए
दरअसल, बाजार कई बार जरूरतों को परिभाषित करता है और इस क्रम में लोग गैरजरूरी चीजें भी अपने लिए अनिवार्य मान कर खरीद लेते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के संदर्भ में इसे एक मजबूत सहायक कारक माना गया है। मगर इस क्रम में ऐसे मौके भी सामने आते हैं, जब इस पहलू पर विचार करने की जरूरत महसूस होती है कि उपभोग आधारित मानसिकता से लैस लोगों और तबकों के बीच जरूरतों और संवेदनाओं में तालमेल की दिशा क्या है और इससे भविष्य के कैसे समाज की रूपरेखा बन रही है।