सरकार की ओर से समाज के विभिन्न वर्गों के लिए नई-नई योजनाएं लागू की जाती हैं, मगर इनका लाभ पात्र लोगों तक पहुंच पाता है या नहीं, इस पर शायद ही कोई ध्यान दिया जाता है। इससे न केवल सरकारी धन का बेजा इस्तेमाल होता है, बल्कि वे लोग भी लाभ से वंचित रह जाते हैं, जिन्हें केंद्र में रखकर योजना तैयार की जाती है। यही वजह है कि सरकार की कई महत्त्वाकांक्षी योजनाएं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती हैं। संबंधित अधिकारियों की लापरवाही और निगरानी तंत्र का अभाव इसकी बड़ी वजह है।
किसानों की आर्थिक मदद के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का भी यही हाल है। इसके तहत किसान परिवार का एक सदस्य ही लाभ ले सकता है। मगर केंद्रीय कृषि मंत्रालय की सत्यापन जांच में पाया गया कि बड़ी संख्या में पति और पत्नी दोनों ही इस योजना के लाभार्थी बने हुए हैं। सवाल है कि इस तरह की योजनाओं में आर्थिक सहायता से पहले पात्रता की जांच करने की जरूरत क्यों महसूस नहीं की जाती?
अधिकारियों ने भी सही जानकारी जुटाने की नहीं समझी जरूरत
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि केंद्र सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है। इसमें हर वर्ष तीन किस्तों में किसान परिवार के एक सदस्य को दो-दो हजार रुपए की राशि देने का प्रावधान है। इस रकम को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिए सीधे बैंक खाते में जमा किया जाता है। अगर यह नियम है, तो यह कैसे संभव हुआ कि एक ही घर से दो लोगों को राशि हस्तांतरित की जाती रही। जिन अधिकारियों के माध्यम से राशि जारी की जा रही थी, न तो उन्होंने और न ही संबंधित बैंक प्रबंधन ने कभी इस पर गौर करने की जरूरत महसूस की।
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इस योजना के अंतर्गत उन्नीस लाख से अधिक किसानों के सत्यापन से पता चला है कि इनमें 17.87 लाख पति-पत्नी ही लाभार्थी थे। इस हिसाब से करीब चौरानवे फीसद दंपति इस योजना का लाभ ले रहे थे। यह पहली बार नहीं है, जब किसी अहम योजना के क्रियान्वयन में इस तरह की लापरवाही सामने आई है। ऐसे में शासन-प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की योजनाओं की नियमित निगरानी हो, ताकि पात्र लोगों को इनका लाभ मिल सके।