राकेश सोहम्
पिछले वर्ष मित्र की मां एक दुर्घटना की शिकार हो गर्इं। गैस सिलेंडर में रेगुलेटर ठीक से नहीं लगाया गया था। गैस चूल्हा जलाते ही रेगुलेटर के पास से आग भड़क गई। पैरों के पास साड़ी ने आग पकड़ ली और दोनों पैर झुलस गए। अमूमन गैस के उपयोग के सिलसिले में चेतावनी और सावधानियों का उल्लेख न केवल सिलेंडर पर होता है, बल्कि समय-समय पर टीवी और अखबारों के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जाता है, लेकिन बहुत सारे लोग इसकी अनदेखी कर देते हैं। मित्र के घर गैस सिलेंडर में आग लगने के वक्त पारिवारिक सदस्यों की चैतन्यता से दुर्घटना टल गई, मगर उनकी माता जी घायल हो गईं। उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा और लंबी गहन चिकित्सा के बाद वे स्वस्थ हो सकीं।
उस दौरान मेरा भी चिकित्सालय जाना हुआ। जलने के कारण दुर्घटना का शिकार हुए अनेक मरीजों को देख कर जी हिल गया। जिस दिन में पहुंचा था, तब लगभग अस्सी प्रतिशत मरीज ऐसे थे जो दीपावली के अवसर पर आग से दुर्घटनाओं के शिकार हुए थे। कई मरीज जलन के कष्ट को सह नहीं सके और असमय मौत का शिकार हो गए। चिकित्सकों मानना है कि लगभग अट्ठानवे फीसद मामलों के मूल में व्यक्ति की लापरवाही ही एकमात्र कारण होती है। दीपावली के बाद हाथ झुलस जाने के प्रकरण अधिक आते हैं। लोग पटाखों को जलाने में लापरवाही करते हुए झुलस जाते हैं!
आज बेतहाशा भागती दुनिया में दुर्घटनाएं आम हो गईं हैं। आज के समाचार पत्र ‘लापरवाही से वाहन चलाने से हुई दुर्घटना’, ‘नशे में धुत ड्राइवर ने राहगीर को कुचला’, ‘तेज रफ्तार कार पेड़ से भिड़ी’, ‘गलत दिशा से दौड़ती कार झोपड़ी में घुसी’ और ‘दौड़ लगाते मोटर साइकिल सवार आपस में भिड़े’ जैसे शीर्षकों से भरे होते हैं। कितने ही लोग इन दुर्घटनाओं में काल-कलवित हो जाते हैं। लोग इन समाचारों को देखते हैं और पन्ने पलट देते हैं। अगले दिन फिर उन्हीं स्थापित शीर्षकों के नीचे बदलते स्थानों और नामों के साथ समाचार छपते हैं और पाठक अनदेखा करता हुआ आगे बढ़ जाता है। ऐसी खबरों को देखते हुए भी नहीं देखने का भाव पनप रहा होता है। यानी वे ऐसी घटनाओं के आदि और अभ्यस्त हो चुके हैं।
घटनाओं को जानने के दो तरीके हैं। उन्हें देखना और उन पर दृष्टि डालना। देखना दरअसल दृष्टि डालना भर नहीं है या दृष्टि का संबंध केवल देखने से नहीं है। लोग नित्य नई घटनाओं पर नजर रखते हैं। वे राजनीतिक उथल-पुथल की खबरों को तो विस्तार से पढ़ते हैं, ताकि चार लोगों के बीच विमर्श में शामिल होना पड़े तो उसमें वे कहीं पिछड़ न जाएं। इससे ज्ञान भी परिमार्जित होता है। लेकिन हादसों की खबरों की परतों पर दृष्टि डालने और उससे सबक लेकर सावधानी को आदत में शुमार करने की कोशिश नहीं होती। अंतरराष्ट्रीय पटल की घटनाओं-दुर्घटनाओं को सहेजा जाता है, मगर रोजमर्रा की दुर्घटनाओं को दरकिनार कर दिया जाता है। दृष्टि अभाव होने से लोग चेतना शून्य बने रहते हैं।
विज्ञान के अनुसार, चालक की दृष्टि वाहन की गति की व्युत्क्रमानुपाती होती है। जिस अनुपात में वाहन की गति बढ़ती है, उसी अनुपात में चालक की दृष्टि संकीर्ण होती जाती है। चालाक के आसपास का वातावरण तिरोहित होने लगता है। वातावरण के प्रति सजगता घटने लगती है। लगभग पूरी तंद्रा गति पर आकर ठहर जाती है। वाहन की द्रुतगति से चालक की चपलता सामंजस्य नहीं बिठा पाती। अचानक आए अवरोध से बचाव के लिए समय कम पड़ जाता है, चपलता जवाब दे जाती है, निर्णय गलत हो जाता है और गंभीर से लेकर वीभत्स दुर्घटनाएं हो जातीं हैं।
न जाने कितने ही द्रुतगति से भागते वाहन सामने मंथर गति से चलने वाले या रुके हुए वाहनों के पीछे से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त होते हैं। जाड़े के दिनों में छाई धुंध के दिनों में तो कोहरे या धुंध को कारण ठहरा कर संतोष कर लिया जाता है, लेकिन ऐसे हादसे साफ दिनों में भी होते रहते हैं, जब चालक आसपास के वातावरण से बेखबर रफ्तार की वजह से किसी वाहन से टकरा जाता है।
ऐसे चालकों को दूसरों की जान की तो परवाह नहीं ही होती है, अपनी जान भी वे जोखिम में डाल कर चलते हैं। इसके अलावा, हेलमेट की उपयोगिता एवं अनिवार्यता कौन नहीं जानता! फिर भी इसके प्रयोग के प्रति अनदेखी से लोगों को जान गंवानी पड़ती है। आमने-सामने से दो मोटरसाइकिल सवार भिड़ने के समाचार आम हैं। क्या बूढ़े और क्या जवान, क्या युवक और क्या युवतियां, सभी दुर्घटनाओं के समाचारों को देखते और पढ़ते हैं ।
लेकिन उनकी दृष्टि विकसित नहीं होती। दुर्घटनाओं से सबक नहीं लेते। बार-बार वही गलतियां दोहराते हैं और दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। ऐसा लगता है कि चेतना शून्यता बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में प्रसिद्ध अभिनेता राजकपूर की कालजयी फिल्म का एक गाना बड़ा मुफीद लगता है- ‘ए भाई, जरा देख के चलो… आगे ही नहीं, पीछे भी… दाएं ही नहीं, बाएं भी… ऊपर ही नहीं, नीचे भी… ए भाई…’।
यह गाना कहीं न कहीं इस ओर इशारा करता है कि व्यक्ति को दृष्टि विकसित करना चाहिए। चैतन्य रहना चाहिए। दुर्घटनाओं से सबक लेना चाहिए। जीवन में सावधानी की महती आवश्यक है। वरना दुर्घटनाओं का शिकार हो जाने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।