अरुणेंद्र नाथ वर्मा
पिछले दिनों पराग अग्रवाल को ट्विटर का मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किए जाने की घोषणा से पूरे भारत में एक खुशी की लहर दौड़ गई थी। सूचना प्रौद्योगिकी के चमत्कार से सिमट कर एक आंगन जैसे बन गए विश्व के ऊपर तना विशाल वितान जिन प्रमुख स्तंभों की प्रतिभा के सहारे टिका है, उनमें से लगभग सभी भारतीय हैं या भारतीय मूल के प्रवासी हैं। गूगल, माइक्रोसाफ्ट, फेसबुक, ट्विटर, एडोबी और आईबीएम जैसी चमत्कारी संस्थाओं को जन्म देने वाले मूलत: अमेरिकी या अन्य गैर-भारतीय नागरिक थे।
मगर जब इन अनुसंधान कर्ताओं की अनोखी सूझबूझ से किसी गैराज या फ्लैट के कमरे में जन्मी नन्ही संस्थाओं ने बढ़ते-बढ़ते वैश्विक स्तर का विराट रूप धारण कर लिया, तो उनके मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की सूची में गूगल के सुंदर पिचाई, माइक्रोसाफ्ट के सत्य नाडेला, आईबीएम के अरविंद कृष्णा, एडोबी के शांतनु नारायण के बाद अब ट्विटर के पराग अग्रवाल का नाम भी शामिल हो गया। भारत में बहुत से लोग भारतीय प्रतिभाओं के विदेश पलायन पर दुख और चिंता प्रकट करके इसे प्रतिभा पलायन की संज्ञा देते हैं। लेकिन यह चिंता निराधार है।
भारत में विशेषज्ञों की कोई कमी नहीं है। हम भारतीय तो जन्मजात सर्वज्ञ होते हैं। विशेषज्ञ बनने के लिए जितनी प्रतिभा चाहिए, वह हम सबमें है। बस उसे चमकाने के लिए जितनी मेहनत की जरूरत होती है, वह सबके बस की बात नहीं। जो थोड़े से लोग सूचना प्रौद्यगिकी जैसे सीमित क्षेत्रों में पसीना बहा कर विशेषज्ञता प्राप्त कर लेते हैं, वही विदेशों में जाकर प्रतिभा पलायन का पाप करते हैं। अन्य सभी जन्मजात सर्वज्ञ देश में रह कर अपना असीम ज्ञान सबको मुफ्त में बांट कर कर्ण और हर्षवर्धन जैसे दानवीरों की गरिमामयी परंपरा को जीवित रखते हैं।
इस बात की सच्चाई आप कई स्तरों पर जांच सकते हैं। कभी राह चलते हुए अपनी कार या बाइक रोक कर किसी से कहीं पहुंचने का रास्ता पूछ लीजिए। वह जगह केवल आपकी कल्पना में हो, तब भी कोई माई का लाल यह कबूलने वाला नहीं मिलेगा कि उसे नहीं पता। अटकल ही सही, कोई न कोई रास्ता वह बताएगा जरूर। ‘नहीं मालूम’ कहने का रिवाज सर्वज्ञों के इस देश में कतई नहीं है। अपनी मित्र मंडली में हों या रेल आदि से सफर करते हुए अपरिचितों के बीच बैठे हुए हों, जरा बता कर देखिए कि आपको अजीर्ण या घुटने में दर्द है। (चाहें तो कैंसर तक बता सकते हैं)।
आपको तुरंत महसूस होगा कि आपके इर्द-गिर्द बैठे लोगों में से कोई हकीम लुकमान है और कोई महर्षि चरक या सुश्रुत का अवतार है। आधुनिक इलाज बताने वाले स्वयं डाक्टर होने का दावा भले न करें, लेकिन उनके परिचित गंभीर बीमारियों का इलाज जिन दवाओं से करके ठीक हो चुके हैं उन सबके नाम वे आपको जरूर बताएंगे। स्वस्थ रहने के लिए करौंदे, ककड़ी, करेले या कद्दू को किस समय और किस रूप में खाना चाहिए, जानना हो तो वाट्सऐप के घाट पर जुटी हुई संतों की भीड़ में घुस कर देखिए, आयुर्वेद की सनातन निर्मल धार वहां दिन-रात प्रवाहित होती दिखेगी।
स्वयं सर्वज्ञ न होने के दुख ने मुझे कभी इतना व्यथित नहीं किया, जितना पिछले दिनों पूरे देश को दारुण दुख पहुंचाने वाली उस निर्मम और दुर्भाग्यपूर्ण हेलिकाप्टर दुर्घटना के बाद हुआ, जिसमे देश ने अपने सीडीएस जनरल बिपिन रावत को खो दिया। टीवी चैनलों पर वायुसेना अध्यक्ष से लेकर तमाम अन्य अनुभवी वायुसैनिक बार-बार दुहराते रहे कि, दुर्घटना गस्त होने वाला एमआई17 हेलिकाप्टर रूस में बना और हाल में ही भारतीय वायुसेना में आयातित एक आधुनिकतम हेलिकाप्टर था, उसके चालक विंग कमांडर चौहान 109 एचयू के कमान अधिकारी और बहुत अनुभवी वायुयान चालक थे।
यान की नियमानुसार उड़ान से पहले पूरी जांच की गई थी और गंतव्य वेलिंगटन में मौसम साफ था। नीलगिरी पर्वत के उस इलाके में थोड़ी धुंध या कम ऊंचाई वाले बादल को ऐसा मौसम नहीं कहा जा सकता था, जिसमें उस हेलिकाप्टर की उड़ान निषिद्ध हो। सीडीएस के पद की प्रतिष्ठा के अनुसार ही सुलूर के वायुसेना हवाई अड्डे पर सुरक्षात्मक प्रबंधों के चलते प्रथम दृष्ट्या षड्यंत्रकारी तोड़फोड़ की संभावना भी नहीं थी। चूंकि दुर्घटनाग्रस्त विमान का ब्लैक बाक्स मिल गया था, इसलिए एयरमार्शल जैसी ऊंची रैंक के एक अधिकारी की अध्यक्षता में गठित जांच अदालत की रपट मिलने से पहले कोई अटकल लगाना अनुचित होगा।
मगर देश के अनगिनत सर्वज्ञों के ऊपर विशेषज्ञों की इस सलाह का कोई असर नहीं। इन सर्वज्ञों की कल्पनाशीलता की दाद तो तब देनी पड़ी जब एक ने बहुत रहस्य बताने वाली आवाज में फुसफुसा कर कहा, ‘हमारे एक चाचा का हिंडन हवाई अड्डे की हवाई पट्टी की घास छीलने का ठेका है। रोज ऐसे हेलिकाप्टरों को उड़ते देख कर अब वे उनके बारे में सब कुछ जानते हैं। उनसे पूछ कर आपको इस दुर्घटना का असली कारण बताऊंगा। तब तक आप और किसी पर यकीन मत करिएगा।’