सुरेशचंद्र रोहरा

जब मैंने बचपन में पहली बार गौरैया देखी तो आश्चर्यचकित हो गया था। ऐसा शायद सभी के बचपन में हुआ होगा। सभी नहीं, तो बहुत सारे लोग जिज्ञासा से भर गए होंगे। तब बहुत छोटा था मैं। उस दिन बड़े भाई ने मेरी जिज्ञासा पर उड़ती हुई और फिर मुंडेर पर जाकर बैठ गई एक नन्ही चिड़िया की ओर इशारा करते हुए बताया था कि यह गौरैया है। उस दिन देखा उस गौरैया का चित्र मेरी आंखो में आज भी चित्रखचित-सा है।

मैं चकित हुआ था कि कोई जीवित प्राणी उड़ भी सकता है। पहली बार उन्होंने अहसास कराया कि हम मनुष्य हैं और हम उड़ नहीं सकते। सचमुच, हमारे आसपास हमारे अपने ही तो हमारे मार्गदर्शक और गुरु होते हैं, जो छोटी-छोटी चीजें, हमें बता कर हमारे ज्ञान की वृद्धि भी करते जाते हैं। मेरे बड़े भाई ने एक गुरु के रूप में जो ज्ञान दिया, वह मैं कभी बिसार नहीं पाया। जब बड़े भाई ने मेरा कौतूहल देख, बताया कि यह गौरैया चिड़िया उड़ सकती है, तो सच में मन ही मन बड़ी टीस उठी थी कि मैं भला क्यों नहीं उड़ सकता, मैं तो इस चिड़िया से कितना बड़ा हूं!

सच यह है कि उस दिन भाई ने मुझे हकीकत से रूबरू कराया और गौरैया चिड़िया से परिचय कराते हुए एक तरह से प्रकृति से परिचय कराया। मैं इसी तरह गौरैया, तीतर बटेर और अन्य पक्षियों की तरफ आकर्षित हुआ। एक वह भी समय था, जब हमारे घर के किसी न किसी कोने में गौरैया अपना घोंसला बना लिया करती थी और आते-जाते उसके परिवार की चहचहाहट एक संगीत की मानिंद आनंद से विभोर कर देती थी। ऐसे ही धीरे-धीरे अन्य पक्षी- शुक, नीलकंठ, चील, बाज आदि से भी परिचय हुआ। आसपास जब कभी कोई जानवर मृत पड़ा होता, तो विशाल पीपल के पेड़ से चील उड़ते हुए आते और उस शव को खाकर अपनी क्षुधा शांत करते। मगर अब ऐसा कहां होता है। जाने कितने वर्ष हो गए, गौरेया दिखाई नहीं देती। चील और बाज जाने कहां खो गए हैं।

यह सच है कि गौरेया शहरों में अब तो ढूंढ़ने पर भी शायद ही दिखाई दे। याद है, बचपन में अक्सर हमारे घर में और आसपास गौरैया उड़ती रहती थी। चहचाहती, बातें करती, ऐसा लगता जैसे हमारे ही बीच की, परिवार की सदस्य है। प्रकृति और मनुष्य का कैसा तादात्म्य था, मगर समय के साथ विज्ञान और शहरीकरण के थपेड़ों ने हमें कहां से कहां पहुंचा दिया है।

हाल ही में एक दिन एक ग्राम कटबित्तला, अपने मित्र गंगाराम के यहां जाना हुआ, तो उनके घर में चहचाहती हुई गौरैया के जोड़े ने अपना ध्यान बड़ी शिद्दत से मेरी ओर आकर्षित किया। पता नहीं वह हमें देख कर, जान-बूझ कर आवाजें निकालने लगीं या आपस में झगड़ रही थीं। उनकी चहचहाहट ने मेरा ध्यान आकर्षित किया और मैं कुछ क्षण अपलक उन्हें देखता रह गया। जैसे ही ध्यान टूटा, तो खयाल आया कि क्यों न इस चहचाहट का वीडियो बना लूं। और जब मित्र लोग यह स्वर संगीत सुनेंगे तो कितना प्रसन्न होंगे।

पता नहीं, क्या बात थी कि दोनों बहुत तेज आवाज में मानो बातें कर रही थीं। मैंने प्रसन्न भाव से कैमरा निकाल लिया और वीडियो बनाना शुरू किया। तो चकित रह गया कि थोड़ी ही देर में दोनों खामोश होकर मेरी और देखने लगीं। मैं चाहता था कि दोनों की चहचाहहट, बातें, उनका नैसर्गिक स्वर संवाद मैं रिकार्ड कर लूं। मगर आश्चर्य, दोनों कैमरे को चलता देख मौन हो गर्इं। दोनों ही मौन मेरी ओर, कैमरे की ओर बड़ी देर तक गुमसुम-सी तकती रहीं। मैं इंतजार करता रहा दोनों का, कि फिर संवाद करें। मगर कैमरा देख कर शायद उनका झगड़ा खत्म हो गया था या पता नहीं दोनों मौन रह कर मुझे अपना फोटो शाट दे रहे थे। मैं निराश हो गया। जिस तरह शहर में झगड़ा करते हुए पति-पत्नी कैमरा देख कर शांत हो जाते हैं, शायद उसी तरह यह गौरैया का जोड़ा भी शांत हो गया। है न आश्चर्य की बात!

हालांकि गौरैया के उस व्यवहार से मैं थोड़ा निराश जरूर हुआ, पर फिर कहीं पढ़ी बातें याद आर्इं कि पशु-पक्षी भी मानवीय गतिविधियों को समझते हैं। खासकर यंत्रों को लेकर वे खासे सतर्क रहते हैं। जब भी मनुष्य उन्हें लक्ष्य करके किसी यंत्र का उपयोग करता है, वे उसे देख कर सतर्क हो जाते हैं। आखिर यंत्रों ने उन्हें कितना नुकसान भी तो पहुंचाया है। गौरैया की पूरी की पूरी प्रजाति ही खतरे में पड़ी गई है यंत्रों की वजह से। रात को बिजली के उजाले, उच्च प्रवाह वाले बिजली के तारों से उठती तरंगों, कल-कारखानों, मोटरवाहनों आदि के शोर की वजह से उनकी दिनचर्या में खलल पड़ा है। इससे उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हुई है। इसलिए मेरे कैमरे को देख कर उनका व्यवहार हैरान करने वाला नहीं था शायद।