महेश परिमल

दुनिया में हर चीज का आदान-प्रदान हो सकता है। हम खुशियां और दुख बांट सकते हैं, पर नींद एक ऐसी चीज है, जिसे कभी नहीं बांट सकते। नींद एक ऐसा अहसास है, जिसमें कोई बंधन नहीं होता। यह कोई संपत्ति भी नहीं है, जिसे जमा करके रखा जाए। आज के जमाने में जिसे अच्छी नींद आती है, उससे अधिक अमीर और सुखी कोई नहीं। जो जागी आंखों में पूरी रात निकाल देते हैं, उन्हें फुटपाथ पर बेसुध सोए लोगों से ईर्ष्या हो सकती है, पर कुछ किया नहीं जा सकता।

कुछ लोग तमाम सुविधाओं के बीच भी सो नहीं पाते, तो कुछ हाथ को तकिया बना कर जमीन पर ही सो जाते हैं। कुछ लोग करवटें बदल-बदल कर थक जाते हैं, फिर भी नींद नहीं आती, तो कुछ बिस्तर पर जाने के तुरंत बाद सो जाते हैं। यह सच है कि नींद बाजार में नहीं मिलती। कई बार अधिक मेहनत करने के बाद भी नींद नहीं आती। झपकी को नींद की छोटी बहन माना जा सकता है। दोपहर के भोजन के बाद हल्की-सी झपकी भी कई घंटों की गहरी नींद के बराबर होती है। अच्छी नींद से शरीर की कई व्याधियां खत्म हो जाती हैं।

नींद का मस्तिष्क से सीधा संबंध है। जन्म लेने के बाद बच्चा पूरी तरह निर्दोष होता है, इसलिए अठारह घंटे तक सो लेता है। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती जाती है, वह गलतियों और बुरे विचारों से घिरने लगता है, तब उसके हिस्से की नींद उसे नहीं मिलती। जिसने कभी किसी का बुरा नहीं किया, उसके घोड़े तो पूरी तरह से बिक चुके होते हैं, यानी वह भरपूर नींद का अधिकारी होता है। नींद का सीधा संबंध हमारी दिनचर्या से है। दिन भर अच्छा सोचो, अच्छा करो, किसी का भी बुरा न करो, किसी को बुरा मत कहो, तो रात में बहुत अच्छी नींद आएगी। पर आजकल ऐसा कौन कर पाता है, इसलिए वह अच्छी और भरपूर नींद से वंचित होता है।

भरपूर नींद के लिए कुछ चुकाना नहीं पड़ता। बस निर्दोष होना होता है। पर निर्दोष होना ही मुश्किल है। अच्छी नींद के लिए जरूरी है कि बिस्तर पर अपने अच्छे विचारों के साथ जाया जाए। अपने तनाव को कमरे के बाहर ही रख दें। तनाव का नींद से छत्तीस का आंकड़ा है। जहां तनाव है, वहां नींद गायब होगी। जहां अच्छी नींद है, वहां तनाव ठहर ही नहीं सकता। एक बार किसी अनजान को कुछ देकर देखिए, पाएंगे कि उस दिन आपको अन्य दिनों की अपेक्षा अच्छी नींद आई। कुछ पाने की खुशी अच्छी नींद दे या न दे, पर कुछ देकर हम अच्छी नींद पा सकते हैं। देना नींद का पहला सबक है। यह देना अच्छे विचार का ही क्यों न हो। किसी को एक हल्की मुस्कान देकर भी अच्छी नींद पाई जा सकती है। नींद शारीरिक से अधिक मानसिक स्थिति को नियंत्रित करती है। मन स्थिर है, तो यह अच्छी और भरपूर नींद के लिए ज्यादा उपयोगी है।

हम नींद को खरीद नहीं सकते, पर उसके लिए गोलियां ले सकते हैं। वह भी डॉक्टर के कहने पर। इसके बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि आपको नींद आएगी। नहीं भी आ सकती है। आएगी, तो वह शरीर को आराम नहीं देगी, बल्कि दूसरी व्याधियों के लिए आपको तैयार कर देगी। आप चाह कर भी अच्छी नींद नहीं ले पाएंगे। बचपन में सुनी लोरियां अगर सोने के दौरान गुनगुनाएं, तो संभव है आपको नींद आ जाए, क्योंकि बचपन के आंगन में विचरने से हमारा बचपन भी लौट आता है। फिर बचपन में नींद के लिए कभी कोई समय निश्चित नहीं होता। कई बार ऐसा होता है कि झोपड़ियों में खर्रांटे गूंजते हैं और महल रात भर जागते रहते हैं। वजह सिर्फ यही कि झोपड़ियों के लोग अपने और परिवार के बीच प्यार से रहते हैं। छोटे से घर में एक परिवार शांति से रह लेता है। पर महलों, अट्टालिकाओं में भीतर जाने के लिए प्यार तरसता रहता है।

प्राकृतिक रूप से नींद से बोझिल आंखें केवल बच्चों की होती हैं, क्योंकि वे निर्दोष होती हैं। अच्छी नींद के बाद जब आंखें खुलती हैं, तब उससे प्यार टपकता है। हमारे आसपास कई निर्दोष आंखें होती हैं, हमें उन्हें पहचानने की कोशिश करनी होती है। ये आंखें या तो बच्चों की होती हैं या फिर बुजुर्गों की। युवाओं की आंखों में निर्दोष होने का भाव कम ही नजर आता है। इसलिए जब कभी अच्छी नींद की ख्वाहिश हो, तो दिन में कुछ अच्छे काम कर ही लो, फिर पास में किसी बच्चे को अपने पास सुला लो, उसकी निर्दोष आंखों को देखते-देखते आपको अच्छी नींद आ ही जाएगी। यह एक छोटा-सा प्रयोग है, इसे एक बार आजमा कर देखो, आप भरपूर नींद के स्वामी होंगे।