सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी

आमतौर पर जो दिखता है, वह होता नहीं और जो होता है, वह दिखता नहीं। शायद इसीलिए कहा जाता रहा है कि हर चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती। और हमेशा मुस्कराते हुए नजर आने वाला व्यक्ति वास्तव में हंसमुख, खुशमिजाज होने के बजाय शातिर, चालाक और खतरनाक ही नहीं, खलनायक और धोखेबाज भी हो सकता है। अनेक साधु शैतान निकलते ही हैं। अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने की चाह सभी को होती है और इसके लिए हम प्रयास में लगे रहते हैं। दिखावा, दूसरों को आकर्षित करने और उनकी निगाह में खुद को अच्छा साबित करते रहने में हम सब कुछ दांव पर लगा देते हैं और इस तरह अपने आप को भी धोखा देते हैं। पर हम ऐसा करते हैं, क्योंकि यह मानव स्वभाव है। घर से बाहर निकलते समय अच्छे से अच्छे कपड़े पहनना, घर से बाहर आते ही सबसे मुस्करा कर मिलना, विनम्रता से पेश आना और सभी का अभिवादन करना भी खुद को बेहतर दिखाने की कोशिश का हिस्सा है।

दिखावा सिर्फ रहन-सहन और पहनावे में ही नहीं, बोलचाल और व्यवहार में भी दिखाई देता है। जब कोई आता है या किसी से हम मिलते हैं तो अंगरेजी में ‘प्लीज्ड टू मीट यू’ और हिंदी में ‘आपसे मिल कर खुशी हुई’ कहते हैं। भले मन ही मन हम उसे कोस क्यों न रहे हों! कई बार हाथ मिलाते वक्त गरमाहट न हो तो भी चेहरे पर दिखावटी मुस्कान बिखेरने की कोशिश करते हैं। आपने बहुत से लोगों को चेहरे पर नकली मुस्कान लााते हुए देखा होगा। यकीन मानिए, मैंने तो मनसुख नामधारी को कभी मुस्कराते हुए नहीं देखा। बल्कि हमेशा अनमना-सा ही देखा। तो यह भ्रम नामों तक में बना रहता है कि स्वभाव में कुछ और, नाम से उसके बिल्कुल विपरीत। अगर कोई जरूरत से ज्यादा शालीनता और विनम्रता दिखाए तो समझ लीजिए कि वह कोई शातिर काम करने की फिराक में है।

जाहिर है, हर जगह भ्रम ही भ्रम है। पहनावे, बोलचाल, नाम, व्यवहार, रस्म अदायगी और यहां तक कि आपके बारे में व्यक्त की गई राय में भी धोखा छिपा रहता है। आपकी तारीफ में कोई कसीदा पढ़े और सब तालियों के साथ उसका समर्थन करें, पर उसमें भी दिखावा हो सकता है। कभी-कभी तो तारीफ सुन कर हैरानी होती है कि लोग आखिर कितना झूठ बोल सकते हैं! नायक का किरदार निभाने वाले बहुत से अभिनेता वास्तविक जीवन में खलनायक से भी बदतर रहे और खलनायक का किरदार निभाने वाले प्राण जैसे कई अभिनेता वास्तविक जीवन में बेहद शालीन, विनम्र, सौम्य और संजीदा बने रहे। दरअसल, ऊपर से सख्त दिखने वाले अक्सर अंदर से बेहद नरमदिल और भावुक होते हैं।

हालांकि जीवन परस्पर विरोधी तत्त्वों का मिश्रण है। आंसू हैं और मुस्कान भी, गर्मजोशी है और साजिश भी, दोस्ती और दुश्मनी, खुशी और गम, कुर्बानी और खुदगर्जी, नेकनीयती और फरेब भी। तो कोई आपसे कहे कि उसने आप जैसा जिंदादिल, शरीफ, ईमानदार, काबिल और आकर्षक व्यक्तित्व का धनी इंसान नहीं देखा तो आप उसकी बात पर एकबारगी यकीन न करें। वह आपको खुश करने के लिए भी ऐसा कर सकता है। ऐसा न हो कि आप गद्गद हो जाएं और खुद को वैसा ही मानने लगें और बाद में जब आपका स्वप्न भंग हो तो तगड़ा झटका लगे। जिस तरह स्वप्न अलग है और उसकी तामीर अलग, उसी तरह जो बाहर दिखता है, वह असलियत से अलग और भिन्न होता है। कभी-कभी तो उसका एकदम उलटा।

ठीक ही कहा जाता है कि न तो केवल किसी के शब्दों पर जाना चाहिए और न सिर्फ उसकी शक्ल-सूरत पर। दोनों ही स्थितियों में धोखे की पूरी संभावना है। इसलिए अगर कोई आपसे सौजन्यतापूर्वक महज कहने के लिए आने को कहे तो हर बार आप उस पर भरोसा करके और सच मान कर चले ही न जाएं। कई बार कुछ लोग आदतन, औपचारिकतावश और सामाजिक दिखावे के लिए ही अपने परिचितों को आमंत्रित कर लेते हैं। जरूरी नहीं कि जो कहा गया हो, उसका मतलब भी वही हो। अपने ललाट पर बड़ा-सा टीका लगाए पूरे जोर से भजन गाकर और हर मंदिर की गणेश परिक्रमा करके खुद को धार्मिक बताने का पाखंड करने वालों को दिन के उजाले में भी अनेक काले कारनामे करते हुए आपने देखा-सुना होगा। तो बात वही है। जो जैसा होता है, आमतौर पर वैसा दिखता नहीं और जो जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं। यह बात रहन-सहन, रीति-रिवाज, बोल-व्यवहार, पहनावे से लेकर सोच-विचार और मानसिकता पर भी लागू होती है।

 

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta