अजेय कुमार

बेटे ने जब अपनी विदेशी मुसलिम मित्र से शादी करने का प्रस्ताव रखा तो मुझे शक था कि मेरे सगे-संबंधियों में इसका विरोध होगा। लेकिन आश्चर्य हुआ कि किसी ने कम से कम मेरे सामने इस पर कोई एतराज नहीं किया। मेरा एक मित्र बाद में अमेरिका में बस गया था। बेटे की शादी की तारीख से कुछ दिन पहले उसका फोन आया और उसने पूछा कि लड़की कहीं पाकिस्तान की तो नहीं! जब मैंने उसे बताया कि वह पाकिस्तान की नहीं, तुर्की की है तो उसने संतोष व्यक्त किया। उसके इस व्यवहार से मैं आहत इसलिए हुआ कि वह एक जमाने में मेरे साथ वैचारिक स्तर पर जुड़ा था और सफदर हाशमी की हत्या के बाद हम साथ-साथ कई विरोध-प्रदर्शनों में शामिल हुए थे।

पिछले माह मैं जब अमेरिका गया तो उस मित्र से मिला। वहां साथ घूमते हुए मेडीसन स्क्वॉयर पर उसने याद दिलाया कि नरेंद्र मोदी यहां भारतीयों को संबोधित कर चुके हैं। मैंने पूछा कि क्या तुम भी शामिल थे उनमें, तो वह बुरा मान गया और बोला- ‘मैं भला एक शो-मैन की सभा में क्यों शामिल होता! और तुम मुझे जानते हो, फिर भी तुमने ऐसा बेहूदा सवाल क्यों किया!’ मैंने उसे यह कह कर संतुष्ट किया कि तुम सभा में जाकर अधिकतर हिंदूवादी भारतीय अमेरिकियों की मोदी के बारे में राय जान सकते थे। उसने बताया कि विश्व हिंदू परिषद अमेरिका में बहुत सक्रिय है और उसने भी मोदी की सभा को सफल बनाने के लिए बहुत मेहनत की थी।

मित्र के बच्चे स्कूल जाते थे। मैंने पूछा कि यहां स्कूलों में कैसी शिक्षा दी जा रही है। उसने बताया कि वह बच्चों को तालीम उन स्कूलों में दिलवा रहा है जहां ईसाइयत का प्रभाव नहीं है। आमतौर पर ईसाई मिशनरी स्कूलों में धर्म पर जोर दिया जाता है। ऐसे स्कूलों में फीस कम है और अधिकतर तथाकथित ‘हिंदूवादी’ भारतीय भी वहीं अपने बच्चों को प्रवेश दिलवाते हैं। मित्र ने कहा कि मेरे दोनों बच्चे तुम पर गए हैं और नास्तिक हैं। क्रिसमस के आसपास उसके लड़के की टीचर ने उसे बताया कि जो बच्चा अच्छा काम करेगा, सांता क्लॉज उसके दुख-दर्द दूर कर देगा। लड़के की एक मित्र सायना वील-चेयर पर स्कूल आती है। लड़के ने टीचर से पूछा कि सायना ने कभी कोई गलत काम नहीं किया। इसलिए क्या सांता क्लॉज इस क्रिसमस पर उसकी टांगें ठीक कर देगा और क्या वह उसके साथ खेल सकेगी! जाहिर है, उसकी टीचर लड़के को संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकी। मित्र ने बड़े गर्व से ऐसी कई बातें बतार्इं, जिनसे उसने मुझे आश्वस्त करने की कोशिश की कि वह अभी भी प्रगतिशील विचारों से स्पंदित है।

बहरहाल, न्यूयॉर्क में हमने ‘पीके’ फिल्म साथ देखी। मित्र को फिल्म से सिर्फ यह आपत्ति थी कि अनुष्का शर्मा एक पाकिस्तानी लड़के से प्रेम करती है और लड़की के धार्मिक पिता आमिर खान के तर्कों से प्रभावित होकर उनकी शादी के लिए राजी हो जाते हैं। मित्र ने कहा- ‘पाकिस्तान न केवल आतंकवादी देश है, बल्कि वहां हिंसा का पाठ स्कूलों में पढ़ाया जाता है। छोटे-छोटे बच्चों को बकरे को काटने के लिए उत्साहित किया जाता है। अनेक वेबसाइट हैं जहां आप खुद यह देख सकते हैं।’ मैं जानता था कि विश्व हिंदू परिषद के कई अमेरिकी सदस्यों ने पाकिस्तान और मुसलमानों के विरुद्ध ढेर सारी सामग्री इंटरनेट पर डाली है और बहुत से लोग इसका शिकार हो चुके हैं। मित्र अपवाद नहीं था। शायद इसीलिए उसने मुझसे पूछा था कि बहू कहीं पाकिस्तानी तो नहीं! मित्र को दूसरी शिकायत थी कि इसमें केवल हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया गया है। मैंने जब उन कई दृश्यों का जिक्र किया जिनमें आमिर खान मस्जिद, गुरद्वारे और चर्च में जाते हैं तो मित्र का जवाब था कि आमिर खान के ‘लापता’ भगवानों के पोस्टर में कोई भी गैर-हिंदू धर्म का नहीं है। मैंने कहा कि अन्य धर्मों में किसी देवी-देवता का चित्र नहीं है और फिल्म एक तरह से यह संदेश देती है कि इंसानों को भगवान भरोसे नहीं, आपस में मिल-जुल कर अपने दुखों का निवारण करना चाहिए। पर मित्र संतुष्ट नहीं हुए।

अब विदेश से लौट आने के बाद उस गुमराह मित्र की याद आ रही है। मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और हर अन्य क्षेत्र में हिंदुओं से कई गुना पीछे होते हुए भी यह प्रचारित किया जाता है कि हिंदुओं को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए, ताकि मुसलमानों से पीछे न रह जाएं। ‘एक झूठ को सौ बार बोलने से वह सच हो जाता है’ की नीति अपनाते हुए हिंदुत्ववादी ताकतों की सफलता यह है कि एक साधारण हिंदू को भ्रम है कि हिंदुओं के साथ नाइंसाफी होती है और मुसलमानों को डरा-धमका कर रखना जरूरी है। मोदी सरकार से सबसे बड़ा खतरा यही है कि जब भी उसके अस्तित्व पर संकट आएगा तो वह एक साधारण हिंदू के भ्रमों को भुनाने में पीछे नहीं हटेगी।

 

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