संविधान के मौलिक अधिकार संबंधी भाग में जो स्वतंत्रता के अधिकार दिए गए हैं, उनमें व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति प्रमुख है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार नदी की विकरालता को उस पर बांध बना कर संयमित किया जाता है उसी प्रकार संविधान भी एक सेतु का कार्य करता है। हमें याद रखना चाहिए कि वैचारिक असहमति ही भारतीय लोकतंत्र की सुंदरता है और यह हमारा संवैधानिक अधिकार भी है। इसके कारण देश की सर्वोच्च पंचायत- संसद- में किसी भी संवैधानिक विषय पर अपने वैचारिक मतभेद के चलते विभिन्न पार्टियों के सांसद संवाद के माध्यम से अपना-अपना मत प्रकट करते रहते हैं।

साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैचारिक मतभेद की संवैधानिक स्वीकृति के कारण ही निर्वाचन आयोग के अंतर्गत विभिन्न राजनीतिक दलों का पंजीकरण किया गया है। पर किसी भी राजनीतिक दल ने अपने-अपने संविधान में देश के टुकड़े-टुकड़े करने के स्वप्न को जगह नहीं दी है। व्यक्ति, दल, विचार पर वैचारिक मतभेद हो सकता है तथा लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनाने के लिए यह होना भी चाहिए, पर व्यक्ति, दल, विचार का वैचारिक मतभेद करते-करते देश का विरोध करने वालों की विचारधारा को कदापि सहन नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि देश बचा रहेगा तभी वहां पर किसी भी विचारधारा, व्यक्ति या दल का अस्तित्व संभव होगा और देश ही नहीं होगा तो सभी बातें निरर्थक हैं। इसलिए हम सबको एक स्वर में कहना चाहिए- सबसे पहले भारत।

संसार में भारत विविधताओं के लिए जाना जाता है। भारतीय संविधान निर्माताओं ने विविधता में एकता के मंत्र को स्वीकार कर देश की एकता-अखंडता को सुनिश्चित करने की बात को संविधान की प्रस्तावना में ही लिख दिया है। साथ ही हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारा कोई भी संवैधानिक अधिकार असीमित नहीं है, क्योंकि भारतीय संविधान ने सभी संवैधानिक अधिकारों को दूसरे नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों से सीमित कर दिया है। इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी असीमित नहीं है, बल्कि दूसरे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के चलते यह भी सीमित है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में प्राय: ऐसा माना जाता है कि जहां से पहले व्यक्ति की नाक शुरू होती है वहां से दूसरे व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने आप समाप्त हो जाती है। यानी यहां पर एक सीमा यह लग गई कि अगर एक व्यक्ति को उसके विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार है, तो दूसरे व्यक्ति को भी अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता है। जिस प्रकार धूम्रपान करने और अपनी मर्जी से अपने घर के भीतर रहने की छूट तो अपने घर में हैं, पर सार्वजनिक स्थलों पर यह वर्जित है। यानी एक व्यक्ति की स्वतंत्रता दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता से सीमित है। साथ ही व्यक्ति की स्वतंत्रता पर राष्ट्रहित, देश-सुरक्षा, नैतिक मूल्यों, मित्र देशों के साथ संबंधों पर विभिन्न कारणों से सीमाएं लगाई जा सकती हैं।

देश का प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अगर आज देशविरोधी नारों की वजह से चर्चा में है, तो हम सबका यह कर्तव्य है कि संसार भर में जेएनयू की छवि को खराब होने से रोका जाए, साथ ही उस वैचारिक मानसिकता पर पुनर्विचार किया जाए, जिसके कारण इस प्रकार की दुखद घटना नौ फरवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में घटित हुई, जिसमें एक कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर कई ऐसे नारे लगाए गए, जो मीडिया के जरिए सामने आए और फिर कुछ विद्यार्थियों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। हालांकि बाद में पकड़े गए तीन छात्रों को जमानत पर रिहा कर दिया गया।

सनद रहे कि नौ फरवरी को अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया गया था। जेएनयू में पिछले दो वर्षों से ही अफजल गुरु को फांसी पर लटकाने का विरोध उसकी ‘न्यायिक हत्या’ कह कर किया जाता रहा है। पर इस बार जेएनयू की घटना मीडिया के माध्यम से देश के सामने आ गई, जिसके खिलाफ देश में काफी आक्रोश देखा गया। देश के करदाताओं ने देख और सुन कर जेएनयू की उस घटना के प्रति अपना आक्रोश प्रकट किया।

जो घटनाक्रम सामने आए, उसके मुताबिक जेएनयू में उस दिन यह नारा भी लगा कि ‘कश्मीर की आजादी तक, जंग रहेगी, जंग रहेगी’। अगर कोई इस प्रकार का नारा लगाता है तो उसे पता होना चाहिए कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यह प्रस्ताव भारत की संसद ने पारित किया है। हमें याद यह भी रखना चाहिए कि भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए और अब स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अनगिनत जीवन बलिदान किए हैं और वैचारिक असहमति के नाम पर इस प्रकार की देशविरोधी घटनाओं से पाकिस्तान और चीन जैसे भारत के दुश्मनों को बल मिलता है।