अरुणा कपूर

अति किसी भी चीज की हो, हमेशा नुकसानदेह होती है। अगर ऋतुओं की बात करें, तो ग्रीष्म ऋतु में अगर अतिशय गरमी पड़े और सूर्य की धरती पर सीधी पड़ने वाली किरणें अतिशय ऊष्मा पैदा करें तो क्या होता है? जीव-जंतु, मनुष्य, वनस्पति सभी पर कहर बरसता है। जलाशय सूख जाते हैं, पानी की आपूर्ति कम हो जाती है। पेड़-पौधे सूख जाते हैं। पक्षियों को भी बिना पानी के दम तोड़ते देखा जा सकता है। क्या गांव, क्या शहर, जल की कमी से लोगबाग परेशान हो जाते हैं।

वैसे ही अगर अतिवृष्टि होती है, तो पानी की अति की वजह से चौतरफा हाहाकार मच जाता है। जल स्थल एक समान हो जाते हैं। नदियां उफन जाती हैं। बाढ़ आती है। घरों में पानी घुस जाता है और जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है। खेत-खलिहानों में पानी भर जाने से फसलें बर्बाद हो जाती हैं। वैसे ही कभी शीतलहर ऐसी चलती है कि गरीब, साधारण जीवन जीने वाली जनता का गुजर-बसर मुश्किल हो जाता है। ठंड से बचने के अपर्याप्त साधनों की वजह से मृत्यु का ग्रास बनने वाले लोगों की खबरें अखबार में छपती हैं, तो दिल दहल उठता है।

अति किसी भी क्षेत्र में हो, मनुष्यों के लिए दुखदायी ही होती है। सावधानी बरतने की प्रक्रिया पर विचार करें तो, हर जगह सावधानी बरतना हमें बचपन से सिखाया जाता है। पर कितनी बरतनी है, यह न तो शिक्षा देने वाले तय कर पाते हैं और न तो शिक्षा ग्रहण करने वाले तय कर पाते हैं। हमारे बचपन का ही वाकया है। तब बारह-तेरह वर्ष की एक हमउम्र सहेली ने मुझसे पूछा कि ‘क्या मैं उसके साथ उसकी चाची के घर जा सकती हंू?’ उसकी चाची का घर ज्यादा दूर नहीं था; पैदल कोई दस-बारह मिनट की दूरी पर था। उसकी चाची से मेरी अच्छी जान-पहचान थी।

चाची को कोई खाद्य पदार्थ देने जाना था, जो देने लिए उसकी मम्मी उसे भेज रही थी। मैं दोपहर को अपने आंगन में बैठी हुई थी। थोड़ी ना-नुकर करने के बाद मैं उसके साथ चलने को राजी हुई। मुझे डर था कि मेरी दादी, जो मेरा बड़ा ही ध्यान रखती थीं, मेरे सहेली के साथ जाने से नाराज न हो जाएं! बीच में एक जगह सड़क भी पार करनी थी। पर मैं चली गई। वहां जाने पर सहेली की चाची ने हमें खाने के लिए चाकलेट दी और मेरी तरफ देख कर सहेली से बोली कि ‘अनु को क्यों साथ लाई? पता है, इसकी दादी कितनी सनकी है? इसे इधर से उधर देखना हो तो भी दादी कहती है, कुछ गलत न हो जाए। कोई हादसा न हो जाए। इसका वह कितना ज्यादा ध्यान रखती है, यह मैं ही जानती हूं। तुम दोनों अभी वापस घर जाओ।’

दादी के बारे में ऐसा सुन कर मुझे गुस्सा तो आया, पर मैं चुप रही और तुरंत सहेली के साथ वापस घर लौट आई। घर वापसी पर जब दादी को पता चला कि मैं सहेली साथ उसकी चाची के घर गई थी, तो उनका गुस्सा फूट पड़ा कि क्यों गई? सड़क पर कोई हादसा हो जाता तो क्या होता? बड़ी होने पर मैंने महसूस किया कि वाकई दादी को ज्यादा सख्ती नहीं बरतनी चाहिए थी।

सावधानी को ध्यान में रखते हुए आग के खतरे को लेकर, बारह वर्ष के आसपास की उम्र के बच्चे को भी रसोई में जाने न देना या काम न करने देना, गिरने का डर दिखा कर स्टूल पर चढ़ने न देना; तू गिरा देगा, कह कर बच्चे को किसी चीज को हाथ लगाने या उठाने से रोकना गलत है। बच्चे के दिमाग पर इसका विपरीत परिणाम भी हो सकता है। उसके अंदर आत्मविश्वास की कमी आ सकती है। उसे स्वतंत्रता से अपना कोई निर्णय लेने में दिक्कत का अनुभव हो सकता है। देखा गया है कि साइकिल चलाने से भी कई बच्चे इसलिए डरते हैं कि कहीं किसी ने टक्कर मार दी तो दुर्घटना हो जाएगी और हाथ या पैर टूट जाएगा। किसी से बात करने में अति-सावधानी बरतने की शिक्षा पाने वाला बच्चा, अपने आप को सामने वाले से कम आंकने की गलती कर सकता है, जो उसके लिए नुकसानदेह हो सकती है।

बड़े भी अति-सावधानी बरतने की वजह से मानसिक तौर पर बीमार हो जाते हैं। दरवाजे पर ताला लगाने के बाद भी ठीक से लगा है या नहीं, देखने के लिए बार-बार खींच कर देखना, बार-बार घर में लाइटें, पंखे चल रहे हैं या बंद हैं, इसलिए देखना कि शार्ट-सर्किट से आग न लग जाए। ये अति-सावधानी बरतने के लक्षण हैं, जो मनुष्यों को सामान्य जीवन जीने से वंचित कर देते हैं।