साल 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में एक ऐसा काला अध्याय लिखा गया जिसे यादकर लोग आज भी सन्न हो जाते हैं। दरअसल, 1986 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राम जन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश दिया। इस प्रक्रिया से पूरे देश में राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदलने लगा। इस कड़ी में कई सारी घटनाएं हुईं, जिनमें मेरठ में हुए दंगे भी एक थे।

अप्रैल 1987 में पश्चिमी यूपी के मेरठ में दंगे हुए और कई जगह दुकानों-घरों में आगजनी की गई। पूरे इलाके में लूट और आगजनी की घटनाएं होने पर तत्काल शासन-प्रशासन ने कदम उठाए। माहौल धीरे-धीरे शांत ही हो रहा था कि एक बार फिर से 19 मई में मेरठ शहर में हालात बिगड़ गए। लूट, आगजनी और झड़पों में करीब 10 लोग मारे गए जिसके चलते कर्फ्यू लगाना पड़ा।

इलाके में कर्फ्यू लगने के बाद सुरक्षाबलों ने मार्च किया लेकिन एक सिनेमाहाल के बाहर फिर से आगजनी की घटना हो गई। 20 मई 1987 में सेना, पुलिस और पीएसी ने कार्रवाई करते हुए तलाशी अभियान चलाया। इस तलाशी अभियान में लोगों को घर से बाहर निकालकर तलाशी ली गई। सेना ने तलाशी अभियान के बाद सैंकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया।

हाशिमपुरा के इलाके में पीएसी की 41वीं बटालियन तैनात थी, जिस पर आरोप था कि वह करीब 50 से ज्यादा लोगों को ट्रकों में भरकर ले गए। इनमें किशोर, युवक व बुजुर्ग सभी शामिल थे। इसके बाद रात में पीएसी ने ट्रक को दिल्ली रोड पर मुरादनगर के पास ऊपरी गंगा नहर के किनारे रोका और कथित तौर पर कुछ ग्रामीणों को मार डाला था।

फिर इन जवानों ने ट्रक को हिंडन नहर के किनारे माकनपुर की ओर मोड़ दिया और कथित तौर पर कुछ और लोगों को मारकर नहर में फेंक दिया। हालांकि, मृतकों की सही गिनती कभी नहीं हो पाई थी (क्योंकि कुछ शव नहर में फेंक दिए गए थे और कभी बरामद नहीं हुए थे) लेकिन माना जाता है कम से कम 42 लोगों की मौत हुई थी। इस हत्याकांड में कुछ लोग बच गए थे, जिन्होंने बाद में शिकायत दर्ज कराई थी।

पीड़ितों की शिकायत के बाद जब हाशिमपुरा कांड चर्चा में आया तो यूपी सरकार ने साल 1988 में मामले की सीबी-सीआईडी ​​जांच के आदेश दे दिए। इसके बाद फरवरी 1994 सीबी-सीआईडी ​​ने 60 से अधिक पीएसी और सभी रैंक के पुलिस कर्मियों को दोषी ठहराते हुए जांच रिपोर्ट सौंपी।

इसके बाद सालों के साथ नए-नए घटनाक्रम इस मामले में जुड़ते गए। हाशिमपुरा कांड की लड़ाई लंबी चली, यहां तक कि साल 2015 में इन आरोपियों को बरी भी कर दिया गया था। हालांकि, 31 साल बाद 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने 42 लोगों की हत्या के मामले में 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।