यूपी पुलिस के 17 साल पुराने एनकाउंटर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार पर सात लाख का जुर्माना लगाया है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को इस मामले में अधिकारियों के बचाव करने पर ये जुर्माना लगाया गया है।

न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में राज्य ने जिस ढिलाई से कार्यवाही की है, उससे पता चलता है कि राज्य की मशीनरी अपने उत्तर प्रदेश पुलिस अधिकारियों का बचाव कैसे कर रही थी।

बार एंड बेंच के अनुसार कोर्ट ने कहा- “याचिकाकर्ता, जो पुलिस द्वारा एक कथित मुठभेड़ में मारे गए मृतक के पिता हैं, पिछले 19 वर्षों से दर-दर भटक रहे हैं। वर्तमान मामले में राज्य ने जिस ढिलाई के साथ कार्यवाही की है, वह बताता है कि कैसे राज्य मशीनरी अपने ही पुलिस अधिकारियों का बचाव कर रही है या उनकी रक्षा कर रही है”।

इसी मामले में कोर्ट ने राज्य सरकार को कोर्ट रजिस्ट्री के साथ सात लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया, जिसे याचिकाकर्ता वापस लेने का हकदार होगा।

मामला 2002 का है जब यूपी पुलिस ने मुठभेड़ में एक व्यक्ति को मार गिराया था। इसके बाद 2005 में पुलिस द्वारा अपने ही अधिकारियों के खिलाफ आरोपों को खारिज करते हुए एक क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई। ट्रायल कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। इसके बाद भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई।

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रिट याचिकाओं और अभियुक्तों द्वारा धारा 482 याचिकाओं को खारिज करने के बाद भी यह स्थिति जारी रही। निचली अदालत ने 2018 और 2019 में आरोपी पुलिस अधिकारियों के वेतन पर भुगतान रोकने के आदेश दिए थे, लेकिन आदेश का पालन नहीं किया गया। इसके बाद, चौथा आरोपी जो फरार था, उसे 2019 में उसकी सेवानिवृत्ति पर उसके सभी बकाये का भुगतान भी कर दिया गया था।

इस मामले में 1 सितंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद दो गिरफ्तारियां हुईं और एक आरोपी ने आत्मसमर्पण कर दिया। जबकि चौथा अभी भी फरार है। एडिशनल एडवोकेट गरिमा प्रसाद ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि राज्य सरकार यह पता लगाएगी कि इतने सालों तक इस मामले में कदम क्यों नहीं उठाए गए। मामले की अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को होगी।