Review petition against CJI Justice DY Chandrachud: दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में जस्टिस संजीव सचदेव और विकास महाजन की पीठ ने 16 जनवरी को जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) को देश का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice Of India) बनाए जाने के विरोध में दायर एक रिव्यू पिटीशन खारिज (Review petition rejected) कर दी। साथ ही, याचिकाकर्ता पर लगाया गया एक लाख रुपए का हर्जाना भी बरकरार रखा।
याचिकाकर्ता (Petitioner) की दलील
याचिकाकर्ता (Petitioner) संजीव कुमार तिवारी ने दलील दी कि नवंबर 2022 में जो कोर्ट का फैसला आया उसकी हिंदी प्रति (Hindi Copy) उन्हें मुहैया नहीं कराई गई। उन्होंने कहा- यह आदेश असंवैधानिक है। मुझे ऑर्डर की हिंदी प्रति नहीं दी गई।’ तिवारी का कहना था- बेंच मुझसे अंग्रेजी में बात कर रही थी। क्या अदालत मुझे अंग्रेजी सीखने (Learn English) के लिए बाध्य करेगी। भारत आजाद मुल्क है।
बेंच (Bench) का जवाब
बेंच ने कहा- हिंदी (Hindi) में आदेश नहीं दिए जाने की कोई वजह है। यह संविधान (Constitution) में लिखा भी है। कितनी सारी भाषाएं हैं? जो लोग हिंदी नहीं बोलते, उनसे आप कैसे बात करेंगे? तिवारी ने कहा- जी, हिंदी। भारत की सारी भाषाओं का मूल संस्कृत (Sanskrit) है। इस पर बेंच ने सवाल किया- तो क्या आप सबको संस्कृत सिखाना चाहते हैं? अगर हां, तो सिखाएगा कौन? सरकार?
किस आधार पर खारिज हुई Review Petition
हाई कोर्ट की पीठ ने फैसले में कहा कि मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के 11 नवंबर के आदेश की समीक्षा का कोई आधार याचिका में नहीं है। कोर्ट ने पूछा कि याचिका के जरिए आप क्या चाहते हैं? आदेश की समीक्षा तभी हो सकती है जब उसमें कोई चूक (Error) हुई हो। याचिका में या आपकी दलील में इसको लेकर कोई तथ्य नहीं है। इसलिए मामले की दोबारा सुनवाई की मंशा के साथ समीक्षा याचिका मंजूर नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपील कर सकता है।
क्या था पूरा मामला
ग्राम उदय फाउंडेशन नाम की एक संस्था के प्रमुख संजीव कुमार तिवारी ने देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ (CJI Justice DY Chandrachud) की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की थी। दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJ) जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने 11 नवंबर को इसे खारिज कर दिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
Supreme Court भी खारिज कर चुका है ऐसी ही याचिका
हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि इसी तरह की एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। इसलिए, याचिकाकर्ता ने “उसी मुद्दे को एक नए कारण के रूप में छिपाते हुए” हाई कोर्ट में आने का विकल्प चुना, जो उसकी मंशा को दर्शाता है। यह याचिका याचिकाकर्ता के छुपे मकसद और संदिग्ध साख को उजागर करता है।” कोर्ट ने कहा था कि यह “बिना किसी कारण के कार्रवाई का क्लासिक मामला है, जो अनुमानों और काल्पनिक सोच से भरा है।”
Delhi HC की दूसरी पीठ ने खारिज की समीक्षा याचिका
इसके बाद याचिकाकर्ता ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में ही समीक्षा याचिका दायर की थी। 13 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJ) जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने इसकी सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। क्योंकि याचिका खारिज करने का फैसला इसी बेंच ने किया था। अब सोमवार 16 जनवरी को जस्टिस संजीव सचदेव और विकास महाजन की पीठ ने सुनवाई करते हुए इस समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता पर लगा एक लाख का हर्जाना भी बरकरार रखा।