Pune Crime Files: सुहास नादगौड़ा कहते हैं, “अंजनाबाई गावित और उनकी दो बेटियों सीमा और रेणुका की कहानी में दो महत्वपूर्ण मोड़ हैं।” वे कहते हैं, “पहला मोड़ तब था जब बहनों ने अप्रैल 1990 में पुणे के चतुरश्रृंगी मंदिर में एक श्रद्धालु का पर्स छीन लिया और दूसरा अक्टूबर 1996 में नासिक के एक बाजार में हुई उनकी एक आकस्मिक मुठभेड़ थी।”

कौन हैं पुलिस इंस्पेक्टर रहे सुहास नादगौड़ा

1990 के दशक के अंत में महाराष्ट्र क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (CID) में पुलिस इंस्पेक्टर रहे सुहास नादगौड़ा अधिकारियों की एक टीम का हिस्सा थे जिसने नौ महीने से चार साल के बीच के बच्चों के सीरियल अपहरण और हत्याओं की जांच की थी। महाराष्ट्र में सनसनी और दहशत फैला देने वाली इन खतरनाक वारदातों एक मां और उसकी दो बेटियों ने मिलकर अंजाम दिए थे। ये मां और बेटियां 1990 से 1996 तक महाराष्ट्र के पुणे, कोल्हापुर, नासिक, कल्याण और ठाणे में विभिन्न ठिकानों पर रहीं।

CCTV, फोन रिकॉर्ड या इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के बिना जांच

महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) से अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में पिछले साल मार्च में रिटायर हुए 59 वर्षीय नादगौड़ा कहते हैं, “मां, उसकी दो बेटियों और एक बेटी के पति द्वारा किए गए अमानवीय अपहरण और बर्बर हत्याओं की जांच की गई और उस समय मुकदमा चलाया गया जब सुरक्षा कैमरे के फुटेज और सेल फोन रिकॉर्ड जैसे सुराग और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य भी नहीं थे। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह श्रमसाध्य जांच और सावधानीपूर्वक अभियोजन का एक उदाहरण था। मामले की जांच का हिस्सा बनना मेरे लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ था। न सिर्फ एक पुलिस अधिकारी के रूप में बल्कि एक इंसान के रूप में मेरे लिए और जांच का हिस्सा रहे मेरे आसपास के कई लोगों के लिए भी बेहद अहम था।”

वर्तमान में यरवदा सेंट्रल जेल में बंद हैं मां और दोनों बेटियां

पुलिस के मुताबिक वर्तमान में यरवदा सेंट्रल जेल में बंद दो सौतेली बहनें 57 साल की रेणुका शिंदे और 51 साल की सीमा गावित, और उनकी दिवंगत मां अंजनाबाई आदतन चोर थीं। उस समय की जांच से पता चला कि उन्होंने विभिन्न स्थानों से बच्चों का अपहरण किया और चोरी करने और भागने से पहले या चोरी करते पकड़े जाने के बाद दया के कारण लोगों का ध्यान हटाने के लिए उनका इस्तेमाल किया। इस केस के विस्तार के कारण बाद में मले की जांच महाराष्ट्र सीआईडी ​​के अधिकारियों की एक टीम ने की थी।

आदतन अपराधी थी मां- बेटियां, बचने के लिए बच्चों का इस्तेमाल

नादगौड़ा ने कहा, “साल 1990 तक माँ और बेटी सड़क पर चोरी करने और जेब काटने की आदतन अपराधी बन चुके थे। अप्रैल 1990 में सीमा, रेणुका और रेणुका की पहली शादी का बेटा पुणे के चतुरश्रृंगी मंदिर गया। मंदिर में भारी भीड़ का फायदा उठाकर रेणुका ने एक श्रद्धालु का पर्स छीनने की कोशिश की, लेकिन पकड़ी गईं। इस मौके पर रेणुका ने अपने बच्चे को उसे पकड़ने वाले व्यक्ति के चरणों में रखा और यह कहते हुए दया की भीख माँगने लगी कि वे चोरी कर रहे थे ताकि अपने बच्चे को खिला सकें।”

खतरनाक मां-बेटियों की कहानी का पहला अहम मोड़

नादगौड़ा ने कहा, “मेरा मानना ​​है कि यह इस कहानी का पहला मोड़ था। इस खास वक्त पर आदतन अपराधी बेटियों और माँ को एहसास हुआ कि वे बच्चों को एक सेफ गार्ड के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं या पकड़े जाने के बाद दया की याचना करने के लिए उनका इस्तेमाल कर सकती हैं। अगले छह सालों तक उन्होंने कई बच्चों का अपहरण किया। उन्होंने चोरी और जेब काटने के लिए बच्चों का इस्तेमाल किया और या तो उन्हें छोड़ दिया या कुछ समय बाद जब उनकी देखभाल करना मुश्किल हो गया तो उन्हें मार डाला।”

भिखारी के डेढ़ साल के बच्चे को किया अगवा, बाद में की हत्या

एक जांच से पता चला कि जुलाई 1990 में उन्होंने कोल्हापुर बस स्टैंड पर एक महिला भिखारी के डेढ़ साल के बेटे का अपहरण कर लिया। तीनों ने महिला को नौकरी दिलाने का वादा किया और उसे कराड शहर की बस में साथ चलने को कहा और फिर यात्रा के दौरान बच्चे का अपहरण कर लिया। उन्होंने उसका नाम संतोष रखा। कई चोरी के लिए उसका इस्तेमाल करने के बाद जब लड़का घायल हो गया और लगातार रोता रहा तो उन्होंने फरवरी 1991 में किसी समय संतोष की हत्या कर दी।

अगले छह साल के लिए कई शहरों में बनाए ठिकाने, जारी रखा अपहरण

पुलिस जांच से पता चला कि अगले छह वर्षों के लिए अंजनाबाई, रेणुका, सीमा और किरण ने रेणुका के अपने बच्चों के साथ बार-बार अपना ठिकाना बदल लिया। उन्होंने दो बार एक बच्चा, एक बार दो बच्चों और कई बार लड़कों और लड़कियों का अपहरण करना जारी रखा। नादगौड़ा ने कहा, “कई मामले को एक साथ जोड़ना एक बड़ी चुनौती थी। चूंकि तीन अपहरण कोल्हापुर में किए गए थे और क्योंकि पहला मामला भी कोल्हापुर में था। इसलिए संयुक्त परीक्षण कोल्हापुर में सत्र न्यायालय में आयोजित किया गया था। इसके अलावा पुणे, नासिक, ठाणे और कल्याण सहित कई जगहों पर खतरनाक आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया गया था।”

अभियोजन पक्ष के 156 गवाहों में से एक भी पक्षद्रोही नहीं

उन्होंने कहा, ” हमें इन घटनाओं का एक पूरा क्रम बनाना था। हमने तारीख दर तारीख और गवाहों के बयानों के आधार पर इसकी पुष्टि भी की। सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के 156 गवाहों का परीक्षण किया गया और उनमें से एक भी पक्षद्रोही नहीं हुआ।” जांच से पता चला कि 1995 में मां, दो बेटियां, किरण और उनके बच्चे पुणे में चोरी के आरोप में पुलिस की निगरानी से बचने के लिए नासिक चले गए।

महज बदला लेने के लिए किया सौतेली बहन तक का अपहरण

नासिक में अगस्त या सितंबर के आसपास उन्होंने अंजनाबाई के पति मोहन गावित की दूसरी शादी से हुई बेटी क्रांति नाम की एक लड़की का अपहरण कर लिया। क्रांति का मुख्य रूप से बदला लेने के लिए अपहरण कर लिया गया था क्योंकि परिवार मोहन गावित के बारे में अंजनाबाई को दूसरी महिला के लिए छोड़ने के बारे में शिकायत कर रहा था। पुलिस के मुताबिक, क्रांति को रेणुका और सीमा अंजनाबाई से मिलवाने के बहाने स्कूल से उठा ले गए थे। उन्होंने कुछ महीने बाद कोल्हापुर के नरसोबची वाडी में उसकी हत्या कर दी।

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क्रांति की गुमशुदगी को बाद में अपहरण और हत्या माना गया

क्रांति की गुमशुदगी को शुरू में गुमशुदगी का मामला माना गया और बाद में जब यह पता चला कि सीमा और रेणुका ने उसे स्कूल से उठा लिया है तो अपहरण का मामला माना गया। इसे अक्टूबर 1996 तक अपहरण माना गया, जब तीनों महिलाओं और किरण को आखिरकार गिरफ्तार कर लिया गया। क्रांति के बाद भी बच्चों के अपहरण और हत्याओं का सिलसिला जारी रहा।

खूनी महिलाओं की आपराधिक कहानी में दूसरा अहम मोड़

नादगौडा ने कहा, “दूसरा मोड़ 20 अक्टूबर, 1996 को नासिक के एक बाजार में एक आकस्मिक मुठभेड़ था, जब मोहन गावित की पत्नी प्रतिभा ने रेणुका और सीमा को देखा। पुलिस को सूचित किया गया और रेणुका, सीमा, अंजनाबाई और किरण को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने क्रांति की हत्या की थी। उनसे पूछताछ और बाद में जांच के दौरान हत्या और अपहरण की सीरीज सामने आई। मामले के इतने साल बाद भी मेरे लिए इस कहानी को बताना अभी भी मुश्किल है, जो मुझे विश्वास है कि समय-समय पर और आने वाले वर्षों में लोगों के मन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है।”

13 बच्चों के अपहरण, नौ की हत्या और एक और बच्चे के अपहरण की कोशिश

नवंबर 1996 में अंजना, रेणुका और सीमा को रेणुका के पति किरण शिंदे के साथ गिरफ्तार किया गया था। शिंदे बाद में मामले में सरकारी गवाह बन गया। उन पर 13 बच्चों के अपहरण, उनमें से नौ की हत्या और एक और बच्चे के अपहरण का प्रयास करने का आरोप लगाया गया। सारा घटनाक्रम जून 1990 और अक्टूबर 1996 के बीच हुआ था। साल 1997 में 50 साल की अंजना जांच और पूछताछ शुरू होने से पहले कार्डियक अरेस्ट से मर गई।

दो सौतेली बहनों को मौत की सजा, राष्ट्रपति ने ठुकराई दया याचिका

वहीं, दो सौतेली बहनों को साल 2001 में कोल्हापुर की एक अदालत ने छह बच्चों के अपहरण और हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने पांच हत्याओं के लिए उनकी सजा को बरकरार रखा। साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मौत की सजा को बरकरार रखा और साल 2014 में उनकी दया याचिका को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दिया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला

कुछ साल बाद, दोनों सौतेली बहनों ने उनकी दया याचिकाओं पर निर्णय लेने और उनकी मौत की सजा के निष्पादन में ‘अत्यधिक देरी’ का हवाला देते हुए मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया। दिसंबर 2021 में सुनवाई समाप्त करने के बाद हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने जनवरी 2022 में फैसला सुनाया कि दोनों बहनों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए।