बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे की एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के 20 वर्षीय आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी रद्द कर दी है। कोर्ट ने यह कदम पीड़िता के उस बयान पर उठाया है, जिसमें उसने अदालत से कहा था कि अगर प्राथमिकी रद्द कर दी जाती है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है। पीड़िता ने कहा कि वह आगे की पढ़ाई करना चाहती है, लेकिन अदालती कार्रवाई के चलते उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में वह अतीत को भुलाकर अपने बेहतर भविष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है।
इस मामले पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि यदि अभियोजन पक्ष को केस जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो शायद ही दोष सिद्ध होने की कोई संभावना हो। ऐसे में यह एक निरर्थक कवायद के अलावा और कुछ नहीं होगा। न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वरले और न्यायमूर्ति श्रीराम एम मोदक की खंडपीठ प्राथमिकी को रद्द करने की मांग करने वाली आरोपी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे साल 2019 में पुणे के पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज किया गया था।
इस मामले में आरोपी के खिलाफ 23 नवंबर, 2019 को पुणे के एक पुलिस स्टेशन में धारा 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक अपराध) और आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत दर्ज मामला दर्ज किया गया था। साल 2019 में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, आरोपी और पीड़िता दोनों एक ही इलाके में रहते थे। वह दोनों अच्छे दोस्त थे, लेकिन आरोपी ने उसे एक अज्ञात जगह ले जाकर यौन शोषण किया था।
इस घटना के बाद आरोपी ने पीड़िता को धमकी देकर कहा था कि यह बात किसी को मत बताना। हालांकि, कुछ समय बाद पीड़िता ने अपने दादा को अपनी आपबीती सुनाई, जिन्होंने उसके माता-पिता को विश्वास में लेकर पुलिस स्टेशन में जाकर प्राथमिकी दर्ज कराई थी। मामले में आरोपी की ओर से पेश अधिवक्ता नितिन गवारे पाटिल ने कहा कि भले ही उसके खिलाफ अपराध गंभीर हों, लेकिन कोर्ट को पीड़िता के बयान पर ध्यान देना चाहिए।
अधिवक्ता नितिन गवारे पाटिल ने अदालत से कहा कि वह पीड़िता के हलफनामे को देखते हुए अपने विवेक का इस्तेमाल करें, क्योंकि पीड़िता ने शांतिपूर्ण जीवन जीने और अपने भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने की इच्छा व्यक्त की है। वहीं, राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली मुख्य लोक अभियोजक अरुणा एस पाई ने कहा कि भले ही पक्ष एक समझौते और सहमति से प्राथमिकी को रद्द करने की मांग कर रहे हों, लेकिन गंभीर अपराध को देखते हुए याचिका को खारिज कर देनी चाहिए।