यूपी में अपराधियों की बात की जाए तो बरबस ही पूर्वांचल के बाहुबलियों और माफियाओं के नाम जुबान पर आते हैं। लेकिन कानपुर के विकास दुबे का नाम तब सामने आया, जब 2 जुलाई 2020 की आधी रात चौबेपुर के बिकरू गांव में दुबे और उसके गुर्गों ने डीएसपी, एसओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी।

यूपी के वांछित अपराधियों में से एक और 5 लाख के इनामी रहे विकास दुबे ने 90 के दशक में जुर्म की दुनिया में कदम रखा। स्थानीय नेताओं के राजनैतिक संरक्षण के चलते वह पहले मारपीट करता, छोटे-मोटे अपराध करता और रंगदारी वसूलता था। मामला बढ़ता तो पुलिस थाने ले जाती लेकिन फिर छूट जाता। इसके बाद उसने एक गैंग बनाई और गुर्गों के साथ मिलकर वारदातों को अंजाम देना शुरू किया। 1990 में गांव के ही एक व्यक्ति के कत्ल के मामले में विकास दुबे पर एफआईआर तो दर्ज हुई, लेकिन थोड़े दिनों बाद ही पीड़ित पक्ष की ओर से वापस ले ली गई।

साल 1996 के चुनाव में विकास दुबे, बसपा से विधायक हरिकिशन श्रीवास्तव के साथ था और सामने भाजपा के संतोष शुक्ला खड़े थे। रिजल्ट घोषित हुआ तो हरिकिशन ने चुनाव जीत लिया और विजयी जुलूस निकाला। इस जुलूस में संतोष शुक्ला के साथ रहे लल्लन बाजपेई से विकास की झड़प हो गई। लेकिन जब यही संतोष शुक्ला जिलाध्यक्ष और नगर पंचायत चुनावों के बाद लल्लन बाजपेई बीजेपी से चेयरमैन बन गए तो उनके समर्थकों ने इलाके में उगाही शुरू कर दी।

शिवराजपुर इलाके में वर्चस्व की जंग लड़ने के दौरान साल 2000 में ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय और फिर रामबाबू यादव नामक व्यक्ति की हत्या में भी विकास दुबे का नाम सामने आया था। लेकिन इसी साल जेल में रहते हुए विकास दुबे ने शिवराजपुर सीट से जिला पंचायत का चुनाव भी जीता था।

साल था 2001 और तारीख थी 12 अक्टूबर। विकास दुबे ने अपने गुर्गों के साथ लल्लन बाजपेई के घर पर हमला बोल दिया। लल्लन बाजपेई ने इसकी खबर तत्कालीन राज्यमंत्री संतोष शुक्ला को दी। संतोष शुक्ला ने लल्लन को कहा कि वह शिवली थाने से पुलिस फ़ोर्स को साथ लेकर आ रहे हैं। लेकिन विकास दुबे को इस बात की भनक लगी तो वह खुद शिवली थाने पहुंच गया। शिवली थाने के अंदर ही संतोष शुक्ला और दुबे के बीच बहस हो गई और इसी बीच विकास दुबे ने संतोष शुक्ला को थाने के अंदर ही गोलियों से भून दिया।

शिवली थाने के अंदर एक राज्यमंत्री की हत्या ने हड़कंप मचा दिया। राज्यमंत्री हत्याकांड के बाद भी विकास दुबे को गिरफ्तार नहीं किया गया, लेकिन भारी दबाव के चलते उसने 2002 में आत्मसमर्पण कर दिया। मामले में खास कुछ हुआ नहीं क्योंकि एक भी व्यक्ति विकास दुबे के खिलाफ गवाही देने को तैयार नहीं हुआ। यहां तक कि संतोष शुक्ला के सरकारी गनर और ड्राइवर ने भी मुंह मोड़ लिया और विकास दुबे बरी हो गया।

साल 2004 में एक केबल व्यापारी दिनेश दुबे की हत्या का आरोप भी विकास दुबे पर था और 2018 में अपने ही चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमले की साजिश में भी आरोपी दुबे ही था। विकास दुबे के ऊपर 60 से ज्यादा मुकदमें थे, 8 बार गैंगस्टर एक्ट, 6 बार गुंडा एक्ट, 1 बार रासुका (NSA)और 6 बार क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट लगा था। इतने मामलों में संलिप्त होने के बावजूद भी उस पर कोई एक्शन नहीं हुआ था। विकास दुबे जैसे अपराधी पर कार्रवाई न होने के पीछे का कारण उसे प्राप्त राजनीतिक संरक्षण और पुलिस तंत्र में गहरी पैठ थी।

बिकरू हत्याकांड के बाद विकास दुबे के साथ कुछ पुलिसकर्मियों और अधिकारियों से सामने आई करीबी भी इस बात की गवाही थी। बिकरू कांड के बाद हफ्ते भर तक फरार दुबे को उज्जैन में गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन 10 जुलाई 2020 को रास्ते में कानपुर से पहले ही पुलिस फ्लीट की गाड़ी पलटने के बाद वह हथियार छीनकर भागने लगा तो पुलिस ने उसका एनकाउंटर कर दिया गया था। यह एनकाउंटर भी काफी विवादों में रहा था, लेकिन बाद में जांच कमेटी ने यूपी पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी।