एक ऐसे फरार मुजरिम को पकड़ना जो 30-35 सालों से फरार चल रहा हो, वाकई मुश्किल नहीं नामुमकिन है। लेकिन शातिर अपराधी को फायर ब्रांड IPS अनिरुद्ध सिंह ने धर दबोचा। उन्होंने उसे पकड़ने के लिए हर उस पैंतरे का इस्तेमाल किया जो फिल्मी ही लगेगा। अलबत्ता अंत भला तो सब भला की कहावत इस कहानी पर चरितार्थ हुई और एक ऐसा अपराधी पुलिस की गिरफ्त में आया जिससे अतीक भी थर्राता था।

कहानी है प्रयागराज के छोटे उर्फ छोटक की। एक जमाने में छोटे का आतंक संगम की नगरी में इस कदर तारी था कि आज के जमाने का डॉन अतीक अहमद भी उसके सामने जाने से कतराता था। हाथ में कट्टा लेकर चलना उसका शगल था। किसी भी बदमाश को पलक झपकते ही अपने सामने झुकाना उसकी फितरत थी। उसके नाम पर दो जघन्य अपराध पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज थे। एक हत्या का और एक अपनी भाभी पर तेजाब फेंकने का। कभी सड़कों पर सरेआम आतंक फैलाने वाला छोटे एक दिन लापता हो जाता है और उसका सुराग नहीं मिल पाता।

पुलिस भी उसे गुमशुदा मानकर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाती है। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट किसी मामले की सुनवाई के दौरान पुलिस को हिदायत देता है कि छोटे को पेश किया जाए। पुलिस के सामने दुविधा की स्थिति थी। ना तो उसका कोई फोटो था और ना ही उसके असली नाम का पता था। तत्कालीन आईजी ने अनिरुद्ध सिंह को उसे पकड़ने का जिम्मा सौंपा।

उसके बाद एक टीम बनाई जाती है जो ऐसे उम्रदराज लोगों को तलाश करती है जो कभी छोटे के साथी रहे थे। उनसे पता चलता है कि छोटे मुंबई चला गया था और वहां पुलिस के लिए पूर्वांचल के शातिरों की मुखबिरी करने लगा था। पुलिस टीम मुंबई पहुंचती है लेकिन छोटे का पता नहीं लग पाता। लाख हाथ पैर मारने के बाद पुलिस को केवल इतना सुराग मिल पाया कि छोटे अपनी बहन से बहुत लगाव रखता था। वह उसे हर माह खर्चे के पैसे भेजा करता था। पुलिस के लिए यह लीड काम आई। बहन के खाते को निगरानी पर रखा जाने लगा।

खाते से पता चला कि बहन को पहले मुंबई से रकम भेजी जाती थी लेकिन फिर उसे गुजरात से पैसा आने लगा। पुलिस ने गुजरात के सूरत का रुख किया। छानबीन में पता लगा कि छोटे किसी मजार पर काम करने लगा था। पुलिस ने तमाम मजारों और मस्जिदों पर निगाह रखी पर कोई सुराग नहीं लग सका। मायूस होकर पुलिस टीम लौटने की वाली थी तभी अनिरुद्ध सिंह को एक ख्याल आया। और वह था कि कभी भी कोई अपना पुराना नाम नहीं भुला पाता। इसी लीक ने काम कर दिया।

पुलिस की टीमें फिर से मजारों और मस्जिदों की तरफ गईं। वहां जाकर संदिग्ध लोगों को पीछे से जाकर इलाहाबाद वाले छोटे के नाम से आवाज लगाई गई। आईपीएस का कहना है कि मुस्लिम बने छोटे के पीछे से आवाज लगाई गई तो उसने पीछे मुड़कर देखा और पुलिस की गिरफ्त में आ गया। पुलिस उसे ट्रेन से लेकर आई और रास्ते में छोटे की दबंगाई के किस्से सुनती रही। उसे कोर्ट में पेश किया गया। लेकिन एक माह बाद ही डिप्रेशन के चलते उसकी मौत हो गई। उस दौरान वह जेल में बंद था।