आज कहानी चंबल के कुख्यात डकैत मोहर सिंह की जो कभी डाकू नहीं कहलाना चाहता था। वह चाहता था कि लोग उसे बागी कहें। 60 के दशक में मोहर सिंह खौफ का दूसरा नाम कहा जाता था। मोहर सिंह के आपराधिक इतिहास में 300 से ज्यादा केस दर्ज थे। इनमें से 80 से ज्यादा मामले हत्या से जुड़े हुए थे। डकैत मोहर सिंह को अपहरण का बादशाह माना जाता था। एक बार उसने दिल्ली के एक मूर्ति तस्कर को ग्वालियर बुलाया और फिर उसका अपहरण कर लिया था।

मध्यप्रदेश के भिंड जिले के बिसूली गांव में पैदा हुआ मोहर सिंह पहलवान बनना चाहता था। मोहर सिंह गांव की जमीन पर पिता के साथ खेती में हाथ बंटाता था, लेकिन एक दिन उनके चचेरे भाइयों ने उसके जमीन का कुछ हिस्सा हड़प लिया। मोहर सिंह इस मामले में पुलिस के पास पहुंचा, जहां उसे दुत्कार मिली। फिर साल 1955 में गुस्से में आकर मोहर ने जमीन विवाद में एक शख्स की गोली मारकर हत्या कर दी।

साल 1955 में हत्या को अंजाम देने के बाद मोहर की जिंदगी बदल गई और वह बागी बनकर चंबल के बीहड़ों में जा पहुंचा। शुरुआत में वह रघुनाथ कुशवाहा, जगमोहन, प्रहलाद सिंह और माधो सिंह जैसे डाकुओं के गिरोह से जुड़ा रहा फिर बाद में फूलन देवी के साथ भी कुछ दिन रहा। इस दौरान उसने कुछ अन्य डकैतों के साथ मिलकर खुद का गिरोह तैयार किया, जिसमें शुरुआत में करीब 25 डकैत हुआ करते थे।

मोहर सिंह, फिरौती के लिए लोगों को अगवा करने में माहिर माना जाता था, जिसे स्थानीय तौर पर डकैती की जगह ‘पकड़’ कहा जाता है। एक इंटरव्यू में मोहर सिंह ने एक किस्सा साझा करते हुए बताया था कि उसने डाकू नाथ सिंह के साथ मिलकर दिल्ली के एक मूर्ति तस्कर का अपहरण किया था। इसके लिए उसने योजना के तहत तस्कर को पहले ग्वालियर बुलाया और फिर चंबल में बुलाकर बंधक बना लिया था। फिर 26 लाख की फिरौती वसूलकर उसे रिहा किया गया था।

साल 1965 में अंजाम दी गई इस घटना की चर्चा देश भर में हुई थी। 1960 से 71 के दशक के अंत में तक चंबल में सक्रिय रहने वाले मोहर सिंह के सिर पर 3 लाख रुपये का इनाम था। हालांकि, बीहड़ों से मन भर जाने के बाद उसने 1972 में सशर्त आत्मसमर्पण कर दिया। सरेंडर के वक्त मोहर सिंह ने शर्त रखी थी कि उसे मौत की सजा न दी जाए। साथ ही उन्हें खुली जेल में भी रखा जाए और जीवन चलाने हेतु कृषि भूमि दी जाए। तब सरकार ने सभी शर्तें मान ली थी।

मोहर सिंह ने आत्मसमर्पण के बाद करीब आठ साल जेल में गुजारे और फिर 1980 में रिहा हो गया। साल 1982 में एक फिल्म बनी जिसका नाम ‘चंबल के डाकू’ था। इस फिल्म में अपना किरदार खुद मोहर सिंह ने निभाया था। इस दौरान मोहर सिंह ने राजनीति का भी रुख किया और 1995 और 2000 के बीच मेहगांव नगर पंचायत अध्यक्ष भी रहा था। कई सालों तक चंबल में खौफ का नाम रहे मोहर सिंह का साल 2020 में निधन हो गया था।