Coronavirus, (Covid-19 India) Lockdown: लॉकडाउन के बीच मजबूर होकर बस किसी भी तरह घर लौट रहे गरीब कामगारों की बातें अंतरात्मा को झकझोर रही हैं। घर के लिए निकला कोई लाचार साइकिल पर सवार है, कोई ट्रेन पर, कोई बस पर तो कोई बेबस पैदल ही चल पड़ा है सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर। इस दौरान महाराष्ट्र से पैदल ही उत्तर प्रदेश लौट रहे कुछ मजबूरों की पीड़ा सुनकर पत्थर दिल कलेजा भी फट जाएगा।
जानी-मानी पत्रकार बखरा दत्त ने इन मजदूरों से उस वक्त बातचीत की जब वो खुद अपनी कार से सूरत से मुंबई लौट रही थीं। बरखा दत्त ने बताया कि ‘रात के सन्नाटे में मैं सूरत से मुंबई जा रही थी..तब ही रास्ते में मासूम बच्चे के रोने की आवाज सुनकर मैं चौक गईं। भिवंडी के पास मैंने देखा की इस अंधेरी रात में कुछ बच्चे, महिलाएं और पुरुष पैदल ही चल रहे हैं। रात के वक्त इन्हें दिशा दिखाने के लिए सिर्फ चांद की रोशनी थी। यह सभी उत्तर प्रदेश जा रहे थे।’
बरखा दत्त ने यह भी बताया है कि उस वक्त रात के करीब 1 बज रहे थे। उन्होंने पैदल सफर कर रहे इन लोगों से बातचीत भी की। बरखा दत्त ने अपने ट्विटर अकाउंट से जो वीडियो शेयर किया है कि उसमें कुछ मासूम बच्चे रोते-बिलखते नजर आ रहे हैं। इसके अलावा कुछ महिलाएं और पुरुष सिर पर अपना सामान लादे पैदल चलते नजर आ रहे हैं।
एक बड़ा सा बक्सा अपने सिर पर लादे पैदल चल रही एक महिला ने बताया कि उनका नाम सीता निषाद है। पत्रकार ने जब उनसे पूछा कि इतनी रात को वो पैदल क्यों चल रहे हैं? महिला ने तपाक से जवाब दिया कि खाने-पीने का नहीं है तो क्या करेंगे? 11 साल की अपनी बेटी को लेकर सड़क पर तेज कदमों से चलती जा रही इस महिला ने आगे कहा कि जब खाने-पीने का नहीं है तब सड़क पर यहां मरेंगे थोड़ी ना…
महिला से जब कहा गया कि ट्रेन तो शुरू हो चुकी है थोड़े दिन और इंतजार कर लेते…इसपर महिला ने कहा कि ‘नहीं मेरे चार बच्चे हैं खाने का नहीं है क्या करेंगे।’ इतना कहते-कहते महिला की आवाज भारी हो गई और फिर दिल की हूक जुबान पर आ गई। महिला ने कहा कि हमलोग गरीब आदमी हैं…हमारे पास पैसा नहीं है…हमलोग मजदूर आदमी हैं…क्या करेंगे यहां रहकर…यहां रहने से अच्छा है कि रास्ते में मर जाएं।’
दुस्वारियों से हारकर अपने लिए मौत मांग रही महिला की बातें सुनकर ऐसा लगा कि पत्रकार भी सिहर गईं। महिला ने अपनी बात आगे बढ़ाई और इस बार गुस्से का गुब्बार हूक्मरानों पर फूटा। महिला ने कहा ‘सरकार सुविधा नहीं दे रही है तो हमलोग ऐसे ही जाएंगे…महिला ने बताया कि रात को चलना मजबूरी है…कहां सोएंगे…बच्चे को कुछ होगा तो हम क्या करेंगे?
In the deathly silence of the night, as I drove from Surat to Mumbai, I was woken up by the sound of a child crying. In Bhiwandi, past one am, I met, children, women & men walking, guided only by moonshine, Headed to U.P. These images have come to define my reporting life. Watch pic.twitter.com/M4QdiqMlI1
— barkha dutt (@BDUTT) May 10, 2020
रात चुपचाप गुजर रही थी और कई मजदूर परिवार गुजरते रात के साथ सुबह की रोशनी घर पर देखने की उम्मीद लिए चला रहा था। एक युवक ने बताया कि ‘रात को जितना चल सकते हैं उतना चलेंगे…अब और ज्यादा दिन रुक नहीं सकते काफी परेशानियां झेली हैं हमने।’ बातचीत में अमूमन सभी लोगों ने कहा कि उनके पास खाने को नहीं है। अपने वजन से ज्यादा बोझ अपने सिर पर उठाई एक मासूम बच्ची ने कहा कि ‘चप्पल में जितना दिन चल पाउंगी चलूंगी।’
पत्रकार के हर सवाल के बाद पैदल चल रहे लोगों के कदम तेज हो जाते। वो इसलिए नहीं क्योंकि वो अपनी पीड़ा बताना नहीं चाहते थे। दरअसल वो इसलिए क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि यह रात ऐसे ही गुजर जाए…रात में ज्यादा से ज्यादा चलने की मजबूरी है…जब सभी रात में अपने घऱों में सोते हैं तो ये मजदूर सो नहीं सकते क्योंकि इनके पास रात बिताने का ठिकाना नहीं है…हां डर है कि अंधेरे में कोई हादसा ना हो जाए…लेकिन सुबह तपती धूप में चलना इनक लिए मुमकिन नहीं हो पाता इसलिए यह अंधेरी रात का डर भी घर पहुंचने की लालच में काफूर हो जाती है।
कोई कारपेंटर है, कोई कारखाने में काम करता है, कोई दिहाड़ी मजदूर है तो कोई रिक्शा खींचता है। किसी को सेठ ने तनख्वाह नहीं दिया तो किसी के पास कमरे का किराया देने के लिए पैसा नहीं है…
