देश भर में इस वक्त लॉकडाउन है। लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में फंसे मजदूर अपने घर जाने के लिए बेसब्र हैं। हालांकि अब सरकार ने मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए बस और ट्रेन की व्यवस्था कराई है लेकिन जो मजदूर इन सेवाओं से वंचित रह जा रहे हैं उनका गुस्सा फूटने लगा है। राजस्थान से कुछ नाराज मजदूर साइकिल से ही बिहार के लिए निकल पड़े।
इन मजदूरों ने बताया कि उनसे कहा गया है कि उनके लिए बसों का इंतजाम नहीं है। भरतपुर के पास जब साइकिल से बिहार लौट रहे इन मजदूरों से बातचीत की गई तो इनका कहना था कि ‘हमसे बोला गया कि यूपी वालों के लिए बस है तुम्हारे लिए नहीं है, नीतीश सरकार से बात करो..तब हम लोग साइकिल से ही निकल गए…जहां बस खड़ी थी वहां बिहारियों को बस नहीं दिया गया है।’
मजबूर मजदूरों का कहना था कि घर लौटने के लिए उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है। नाराज मजदूरों ने सवाल उठाया कि ‘बिहार के पूर्णिया से सांसद उपेंद्र कुशवाहा लॉकडाउन में दिल्ली से अपनी गाड़ी से अपने घर गए और उन्हें पास दिया गया और गरीबों को पास नहीं दिया जा रहा है ऐसा क्यों? एक ही संविधान में दो तरह की बात क्यों?’
एक अन्य मजदूर ने अपने साथ हुई ज्यादती के बारे में बताते हुए कहा कि ‘बड़े-बड़े लोग गए और हम लोगों से बोला गया कि रजिस्टर कराओ…रजिस्टर कराने के बाद 15 दिन से बैठे हैं कोई फोन नहीं आया..क्या करें हम गरीब मजदूर…जयपुर से रोज जा रही है ट्रेन लेकिन गरीब आदमी के लिए कुछ भी नहीं है।’
आज एक तस्वीर उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से भी आई। दिल्ली के कई प्रवासी मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश में अपने घर जाने के लिए पैदल ही सड़क पर चल रहे थे। इस दौरान इन्हें एनएच 9 पर पुलिस ने रोक दिया। यहां मजदूरों का कहना था कि ‘हमारे पास खाने और घर का किराया देने के लिए पैसे नहीं है। हमें किसी भी तरह से घर जाने की जरुरत है। कोई ट्रेन और बस सेवा हमारे लिए नहीं शुरू की गई है।’
इधर आंध्र प्रदेश के चित्तूर में भी कई प्रवासी मजदूरों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। यह मजदूर पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से यहां कमाने के लिए आए थे। लॉकडाउन के बाद अब यह मजदूर किसी तरह अपने घर पहुंचना चाहते थे। इन मजदूरों का आरोप था कि ‘पिछले 40 दिनों में हमारे घर लौटने के लिए किसी भी तरह का इंतजाम नहीं किया गया है।’

