लद्दाख के गलवान रिवर फ्रंट पर भारत-चीन सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बरकरार है। कहा जा रहा है कि इस झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए जबकि 43 चीनी सैनिकों के मारे जाने की भी खबर आ रही है। कायरता से हमले करना और ताकत के अहंकार में हमेशा चूर रहना चालबाज चीन के लिए कोई बड़ी बात नहीं है। साल 1967 के बाद यह शायद पहला ऐसा मौका है जब सीमा पर दोनों देशों के बीच इतना तनाव हुआ है और इतने सैनिक मारे गए हैं।
उस वक्त भी भारत ने चीन के गुरुर को खाक में मिलाया था और इस बार भी भारतीय सैनिक चीन को उसकी औकात बताने के लिए बेताब हैं। 1967 में चीन ने एक चालबाजी से हमारे करीब 70 सैनिकों की हत्या की थी। जवाब में भारतीय फौज ने 4 दिन में 400 चीनी सैनिकों को सरहद पर मौत की नींद सुला कर देश की ताकत का स्वाद चखाया था।
दरअसल उस वक्त चीन की मंशा थी सिक्किम पर कब्जा करना। सिक्किम उस वक्त भारत का हिस्सा नहीं था लेकिन सिक्किम की हिफाजत भारतीय फौज की जिम्मेदारी थी। नाथुला सेक्टर के पास चीन भारतीय जमीन पर कब्जा करने की मंशा रखता था। चीन चाहता था कि भारत, सिक्किम से हट जाए। दरअसल यह इलाका इतना अहम है कि अगर भारत ने यहां से कदम पीछे खींच लिए तो चीन पश्चिम बंगाल से नॉर्थ ईस्ट को काट कर अलग कर सकता है।
बता दें कि नाथुला समुद्रतल से 14,200 फीट की ऊंचाई पर है। यह इकलौता ऐला इलाका है जहां भारत-चीन की सेना महज 30 कदम की दूरी पर तैनात हैं। चीन का उत्तरी इलाके पर कब्जा है जबकि भारत का दक्षिणी इलाके पर। यहां सबसे ऊंचाई पर बने सेबू ला और कैमल्स बैक पर भारतीय सेना का नियंत्रण है। यहां से चीन के अधिकार वाले क्षेत्रों पर नजर रखना आसान है। चीन इन दोनों जगहों पर भारत की मौजूदगी से जलता था।
एक दूसरी समस्या यह भी थी कि नाथुला दर्रे पर भारतीय और चीन की सेना एक दूसरे के बेहद करीब पेट्रोलिंग करती थी। पेट्रोलिंग के दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव भी होती थी। रोज-रोज के टकराव से बचने के लिए भारतीय सेना ने नाथुला औऱ सेव ला के बीच तार लगाने का फैसला किया। 11 सितंबर 1967 को भारतीय इंजीनियर इस काम में जुटे।
लेकिन चीन ने भारत के इस कदम का विरोध करना शुरू कर दिया। शुरू में तो भारत ने चीन के इस विरोध को नजरअंदाज किया लेकिन उस वक्त बैगर चेतावनी चीन ने तार बंधवाने का काम कर रहे भारतीय सैनिकों पर अपनी बंदूक की मुंहे खोल दीं। चीन ने भारी गोलबारी कि जिसमें 70-72 भारतीय सैनिक शहीद हो गए।
इस बार भारत ने फैसला कर लिया कि चीन को उसी की भाषा में जवाब देना है। सेबू ला और कैमल्स बैक पर तैनात भारतीय सैनिकों ने 13 सितंबर को जब चीनी सैनिकों पर गोलियां बरसानी शुरू कीं तो पल भर में ही चिनियों की लाशें बिछ गईं। करीब 4 दिन तक सीमा पर तनाव बरकार रहा और भारतीय जवानों ने इन चार दिनों में 400 चीनियों को हमेशा-हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया।
चीन ने उस वक्त हवाई हमले की धमकी भी दी थी। लेकिन उसकी धमकियों को दरकिनार कर भारत ने ना सिर्फ उसके सैनिकों औऱ उनके गुरुर को मिटा में मिला दिया बल्कि दुश्मन देश के कई बंकरों को तबाह कर दिया। 15 सितंबर को युद्ध विराम का ऐलान किया गया।