उत्तर प्रदेश में राजनीति और वर्चस्व की जंग में कई लोगों की जान गई। इन सबके बीच हमीरपुर का एक सामूहिक हत्याकांड भी शामिल है, जिसमें पांच लोगों को भरे बाजार गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में राजनीति में मजबूत पकड़ वाले अशोक सिंह चंदेल का नाम सामने आया था। जिनकी हत्या हुई उनमें से राजेश शुक्ल, चंदेल के राजनीतिक प्रतिद्वंदी थे।

हमीरपुर जिलें में करीब 40 सालों तक राजनीति करने वाले अशोक सिंह चंदेल कानपुर देहात के नसनिया गांव के रहने वाले हैं। पहले कभी कानपुर में छात्र संघ के अध्यक्ष रहे थे लेकिन 1980 के दौर में कानपुर के किदवई नगर में राजनीति करने वाले चंदेल हमीरपुर की तरफ बढ़ गए। इसके बाद इन्होंने पहला चुनाव 1989 में निर्दलीय जीता था। 1991 में राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए, हालांकि 1993 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीत गए।

अशोक चंदेल साल 1996 में फिर से चुनाव हारे लेकिन 1999 के चुनावों में वह पहली बार जेल में रहते हुए बसपा के टिकट पर सांसद बने। फिर 2007 में सपा के टिकट पर सीट जीती। साल 2017 में, चंदेल भाजपा के टिकट पर भी चुनाव जीते लेकिन हत्या के मामले में दोषी साबित होने के बाद उन्हें भाजपा से बाहर कर दिया गया था। हालांकि, साल 1997 में हमीरपुर में हुआ हत्याकांड अशोक सिंह चंदेल के राजनीतिक सफर में काला धब्बा रहा।

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साल था 1997 और तारीख 26 जनवरी थी। यानी देश में गणतंत्र दिवस का दिन था। शाम 07:30 बजे सुभाष नगर की बाजार में चंदेल के राजनीतिक प्रतिद्वंदी राजेश शुक्ल भी अपने बेटों-भतीजों व दो और लोगों के साथ बैठे हुए थे। वहीं, अशोक चंदेल भी बाजार में अपने सहयोगी नसीम की बंदूक की दुकान में बैठे हुए थे। थोड़ी देर में राकेश के भाई राजीव गाड़ी से पहुंचे तो संकरी गली में सब्जी की गाड़ी भी मौजूद थी।

सब्जी की गाड़ी को हटाने के चक्कर में ही दोनों पक्षों के बीच कहासुनी हुई और अशोक सिंह चंदेल ने अपने साथियों के साथ फायरिंग शुरू कर दी। ताबड़तोड़ फायरिंग के बीच राकेश शुक्ल समेत तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दो अन्य को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया। 26 जनवरी के दिन सुभाष नगर की बाजार में लाशें गिर चुकी थी। घटना में राकेश के भाई और चश्मदीद गवाह राजीव ने अशोक सिंह चंदेल के अलावा 10 लोगों पर केस दर्ज कराया।

मामले में कार्रवाई हुई, एक साल तक फरार रहने के बाद 1998 में चंदेल ने आत्मसमर्पण किया पर उन्हें तत्कालीन एडीजे ने जमानत दे दी। मामले में शिकायत के बाद तत्कालीन एडीजे आरबी लाल को निलंबित कर दिया गया। फिर साल 2002 में अशोक सिंह चंदेल के साथ बाकी आरोपी आरोप मुक्त हो गए। तत्कालीन एडीजे अश्विनी कुमार ने इस हत्याकांड में एफआईआर में देरी के साथ फॉरेंसिंक रिपोर्ट को संदेहास्पद मानते हुए सभी को बरी कर दिया।

हालांकि, जब मामले ने तूल पकड़ा तो चश्मदीद गवाह राजीव हाई कोर्ट पहुंचे। राजीव ने दलील दी कि तत्कालीन एडीजे रहे अश्विनी कुमार ने कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया और बिना किसी उचित आधार के आरोपी को बरी कर दिया। 2013 में, अश्विनी कुमार को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। कई सालों तक चले इस मुकदमें में 19 अप्रैल 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट को गलत मानते हुए अशोक सिंह चंदेल सहित सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।