पटना में साल 1999 में फ्रेजर रॉड स्थित एक क्वार्टर के पास गराज में दो लाशें मिली। यह खबर शहर के साथ सियासत के गलियारों में भी फैल गई। मामला कुछ ऐसा था कि क्वार्टर का गैराज सत्ताधारी सरकार से जुड़े शख्स से संबंधित था। यहां एक लड़की और लड़के की लाशें मिली थी, हालांकि इस मौत के पीछे की कहानी कभी सामने नहीं आ पाई। दरअसल, हम बात कर रहे हैं पटना के चर्चित शिल्पी जैन और गौतम सिंह मामले की।
3 जुलाई 1999 को पटना के फ्रीजर रॉड स्थिर क्वार्टर नंबर 12 के पास गैराज में खड़ी मारुती कार में दो लाशें मिली। फुलवारी शरीफ इलाके का यह क्वार्टर सत्तानशीं पार्टी राजद के विधायक साधू यादव से संबंधित था, जिनका सरकार में सीधा दखल हुआ करता था। गैराज में लाश मिली जिनकी पहचान शहर के बड़े कपड़ा कारोबारी की बेटी शिल्पी और राजद के करीबी रहे बीएन सिंह के बेटे गौतम सिंह के तौर पर हुई।
2 जुलाई से ही गौतम और शिल्पी दोनों गायब रहे थे। फिर दोनों की लाश विधायक के क्वार्टर के गराज में मिलने के खबर आई। इस मामले में पुलिस के पहुंचने से पहले ही विधायक के समर्थकों ने खूब हंगामा किया। साथ ही पुलिस ने भी मामले में साक्ष्यों की अनदेखी करते हुए गाड़ी ड्राइव की और घटनास्थल से ले गए। जबकि ऐसे मामलों में गाड़ी को घसीट कर ले जाना चाहिए, ताकि सबूत के तौर पर फिंगरप्रिंट बरकरार रहे।
पुलिस ने शुरुआती जांच में बगैर विसरा रिपोर्ट के ही इसे आत्महत्या करार दिया। फिर विसरा रिपोर्ट में बताया गया कि दोनों के शरीर में लीथल एल्युमिनियम नमक जहर पाया गया। इस मामले में दावा यह भी था कि लड़की के बॉडी पर जूतों के निशान, लेकिन पुलिस ने इसकी पुष्टि से इंकार कर दिया। इन सबके बीच हड़बड़ी में गौतम का बिना परिजनों के स्वीकृति से अंतिम संस्कार भी कर दिया गया।
इस दौरान कहा यह भी गया कि घटना को 2 जुलाई को अंजाम दिया गया था। पुलिस के हाथ से केस बिगड़ा, फिर भारी दबाव के बीच सितंबर 1999 से सीबीआई ने जांच शुरू की। सीबीआई अधिकारियों ने जांच के दौरान विधायक से उनका डीएनए/ब्लड सैम्पल मांगा ताकि शिल्पी के डीएनए से मिलान किया जा सके। लेकिन विधायक ने सैम्पल देने से मना कर दिया।
हालांकि, शिल्पी के डीएनए रिपोर्ट और फॉरेंसिक रिपोर्ट से पता चला कि मौत से पहले उसके साथ एक से ज्यादा लोगों ने बलात्कार किया था। हालांकि, कभी भी बलात्कार से जुड़े आरोपियों के पहचान सामने नहीं आई। वहीं, सीबीआई ने भी चार साल बाद अदालत में रिपोर्ट पेश कर इस मामले को आत्महत्या बताया। इसके अलावा, लड़की के कपड़ों पर सीमन के दाग को पसीना बताया।
कई सालों बाद 2006 में शिल्पी के भाई ने भी इस केस को खुलवाने और जांच करवाने की कोशिश की लेकिन उसका अपहरण कर लिया गया। उसके बाद से कभी भी इस केस को लेकर किसी ने आवाज नहीं उठाई। ऐसे में आज तक बिहार का यह बहुचर्चित मामला अनसुलझा ही रहा और आखिरी तक इसे आत्महत्या ही करार दिया गया।