जिस तरह दशकों तक मुंबई में अंडरवर्ल्ड का राज रहा, उसी तर्ज पर बेंगलुरु में भी माफिया राज (Bengaluru Underworld) कई सालों तक कायम रहा। 1970 के दशक में गैंगस्टर मुनी गौड़ा ने हफ्ता वसूली से देशी अंडरवर्ल्ड शुरू किया था। हालांकि, मुनी गौड़ा के बाद एमपी जयराज और रामचंद्र कोतवाल जैसे गैंगस्टर ही आगे चलकर बेंगलुरु अंडरवर्ल्ड के डॉन बने। इन सबके अलावा एक नाम मुथप्पा राय का भी था जो बेंगलुरु अंडरवर्ल्ड का गॉडफादर कहलाया।

कर्नाटक के पुत्तूर में अच्छे परिवार और शिक्षा के बेहतर बैकग्राउंड से आने वाले मुथप्पा राय ने शुरुआत में विजया बैंक (Vijaya Bank) में बतौर अधिकारी के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। 1980 के दशक के आखिरी कुछ सालों में उसकी संगत बेंगलुरु अंडरवर्ल्ड के लोगों से हो गई और नौकरी पीछे छूट गई। छोटे-मोटे काम करने के दौरान मुथप्पा ने तब के डॉन एमपी जयराज के कत्ल की साजिश रची, क्योंकि एमपी जयराज उसके पिता के रेस्तरां का बिजनेस हड़पना चाहता था।

जयराज को ठिकाने लगाने में मुथप्पा को साथ मिला बेंगलुरु के उन गैंगस्टर्स का जो मुंबई में डी कंपनी के लिए काम करते थे। एक केस के चलते एमपी जयराज को रोजाना पुलिस स्टेशन में हाजिरी लगानी होती थी। 21 नवंबर 1989 को थाने में हाजिरी लगाने जा रहे एमपी जयराज को दिनदहाड़े कुछ गुर्गों के साथ मुथप्पा ने मौत के घाट उतार दिया और खुद को बेंगलुरु अंडरवर्ल्ड का डॉन घोषित कर दिया।

जयराज की हत्या के बाद वह जेल चला गया। इसी मामले में पेशी के दौरान 1994 में उसे 5 गोलियां मारी गई पर वह बच गया और दो सालों तक बिस्तर पर रहा। 1996 में स्वस्थ होने के बाद मुथप्पा को दाउद के सहयोगी शरद शेट्टी (Sharad Shetty) का साथ मिला। दुबई में रहने वाले शेट्टी ने मुथप्पा को दुबई में अपने साथ रखा और उसके दवा के कारोबार को खाड़ी देशों तक फैलाया। 21 वीं सदी शुरू ही हुई थी कि दुबई में शेट्टी मार दिया गया। इधर भारत में कुछ आपराधिक मामलों के चलते मुथप्पा को 2002 में यूएई से वापस देश लाया गया।

कुछ महीनों तक जेल में रहने के बाद मुथप्पा सारे मामलों से बरी हो गया। इसके बाद उसने कारोबारी के तौर पर अपनी छवि बनानी शुरू की। भू-माफिया से दवा कारोबारी और फिर 2008 में जय कर्नाटक जैसी गैर सरकारी संस्था खोलकर वह समाजसेवी भी बन गया। कुछ ही सालों में मुथप्पा बेंगलुरु अंडरवर्ल्ड के गॉडफादर (Godfather) के साथ-साथ गरीबों के लिए रॉबिनहुड भी बन गया। हालांकि, थोड़े समय बाद बेंगलुरु में संगठित माफिया का दौर भी समाप्त हो गया।

ऐसे में जब बेंगलुरु शहर आईटी सिटी बन रहा था तो मुथप्पा भी अपना कारोबार बदल रहा था। वह कई बार कहता था कि बेंगलुरु में विदेशी कंपनी के निवेश और शहर के विकास में उसका योगदान है। हालांकि, 30 साल के लंबे समय तक माफिया के तौर राज करने वाला वह बेंगलुरु का आखिरी और अरबपति अंडरवर्ल्ड डॉन (Underworld don) रहा। वहीं, साल 2020 की मई में मुथप्पा की कैंसर जैसी बीमारी के कारण मौत हो गई।