अक्सर किसी न किसी व्यक्ति के पीछे कोई एक शख्स होता है जो मार्गदर्शक की भूमिका में होता है। वैसे ही खालिद पहलवान बच्चा वह शख्स था जो दाउद इब्राहिम का मेंटर यानी मार्गदर्शक था। खालिद पहलवान बच्चा की दिखाई राह और सीख के दम पर ही दाउद इब्राहिम ने सालों तक राज किया।
लेखक हुसैन जैदी अपनी किताब ‘दाउद मेंटर : द मैन हू मेड इंडियाज बिगेस्ट डॉन’ में लिखते हैं कि मूलतः एमपी के भोपाल का रहने वाला खालिद पहलवान बच्चा माफिया वर्ल्ड में आने से पहले पहलवानी करता था। पिता चाहते थे कि खालिद कुश्ती सीखे और नाम कमाए। पिता की बात मानते हुए खालिद ने करीबन 8 साल तक कुश्ती सीखी और छोटे-मोटे दंगलों में भाग लिया। फिर उसने 18 साल की उम्र में भोपाल की चट्टान कहे जाने वाले रामदयाल नाम के पहलवान को एक दंगल में चित्त कर दिया। रामदयाल को हराने के बाद खालिद पहलवान का नाम चर्चा में आ गया।
एमपी में धाक जमाने के बाद खालिद ने उन दिनों दिल्ली में आयोजित होने वाली प्रतियोगिता ‘भारत कुमार’ में हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता के एक मैच में उसने महाराष्ट्र के चर्चित पहलवान वरुण माने को पटक दिया। वरुण माने को जो शख्स इस प्रतियोगिता में प्रमोट कर रहा था, उसका नाम वासू दादा था। वासू खुद भी पहलवान था और मुंबई में उसकी धाक थी। इसके बाद वासू दादा ने खालिद पहलवान को मुंबई बुलाया। वासू के बुलाने के बाद मुंबई पहुंचने पर खालिद पहलवान की एक गुट से सरे बाजार में भिड़ंत हो गई।
इसी भिड़ंत के दौरान दाउद इब्राहिम की नजर खालिद पहलवान पर गई। दाउद उस वक्त मुंबई में पनपा भी नहीं था। हालांकि छोटे-मोटे अपराधों में वह किशोरावस्था से ही लिप्त था। थोड़े दिनों में ही दाउद और खालिद पहलवान की दोस्ती हो गई। हुसैन जैदी लिखते हैं कि खालिद का सपना पुलिस अफसर बनने का था और वह अर्थशास्त्र जैसे विषय में स्नातक था लेकिन वासू के बुलावे पर मुंबई आने के बाद उसकी जिंदगी ही बदल गई।
हुसैन के मुताबिक, खालिद पहलवान ही वह शख्स था जिसने डी-कंपनी की नींव रखी थी। साथ ही दाउद ने चाकूबाजी और हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी खालिद से ही ली थी। इसके बाद दोनों ने मिलकर मुंबई के कई माफियाओं को रास्ते से हटा दिया या फिर उन्हें अपने सामने झुकने पर मजबूर कर दिया। वहीं बिजनेस की अच्छी पकड़ वाले खालिद ने ही डी-कंपनी को बड़ा करने में अहम भूमिका निभाई थी।
एक समय डी-कंपनी के द्वारा की जाने वाली नशीले पदार्थो और सोने की तस्करी को खालिद पहलवान ही मैनेज करता था। खालिद के साथ मिलकर दाउद इब्राहिम ने डी-कंपनी के साथ माफिया गैंग का ऐसा नेटवर्क खड़ा किया, जिसने दशकों तक मुंबई पर राज किया था। जैदी के मुताबिक यदि एक समय खालिद पहलवान बच्चा का साथ दाउद को न मिलता तो शायद दाउद इब्राहिम का नाम गुमनामी के अंधेरे में खो जाता।