अमित सेन

हंसना एक कला है। स्वागत-कक्ष में ड्यूटी पर बैठा कोई व्यक्ति मुस्कान दिखाता है, तो कोई ठहाके लगाते हुए अपने जज्बातों को दर्शाता है। नकली हंसी हंसते लोगों को देख कर क्षोभ होता है। इससे इतर सच यह है कि दिन निकलता है तो प्रकृति भी हंसने लगती है। उजास की पहली किरण धरती के असंख्य फूलों को मानो हंसी की सौगात देती है। लेकिन यह क्रूर, व्यंग्यात्मक और वीभत्स भी हो सकती है। एक हंसी मन के आंगन में खुशियों के फूल खिलाती है तो दूसरी खिले फूलों को आंधियों के साथ उड़ा ले जाती है। हंसना-हंसाना ठीक है, लेकिन किसी की हंसी उड़ाना गलत है। एक दिन मैंने अपने खयालों के लिफाफे को खोला तो उसमें एक कागज पर लिखा था- ‘खुशमिजाज दोस्त, हंसने का वरदान प्रकृति ने मनुष्य को दिया है। हंसी तनाव, दुख-दर्द दूर करने की एक औषधि है। यह गंभीरता का विलोम भी है। हर हाल में हंसने की कामना करो और आजीवन हंसी फैलाते रहो।’

कहते हैं बुद्ध कभी नहीं हंसे। हालांकि इस बात पर मुझे भरोसा नहीं हो पाता। भगवान बुद्ध के एक शिष्य होतेई अपनी हंसी के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी हंसी के कारण ही उनका नाम ‘लाफिंग बुद्ध’ पड़ गया। उन्होंने अपने शिष्यों को ध्यान, प्रार्थना के बजाय केवल हंसना सिखाया और हंसने की एक विशेष विधि विकसित की। खैर, बेबात हंसी हमें जिंदगी की मधुरता की अनुभूति कराती है। ऐसा कहा जाता है कि जिस इंसान के अंदर आत्मविश्वास भरा होता है, वही खुद पर हंस सकता है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास कम होता है, उसे छोटी-छोटी बातें भी बुरी लग जाती हैं। ऐसे लोगों के चेहरे पर कभी-कभार हंसी देख कर अच्छा लगता है। विलियम शेक्सपियर के नाटकों में एक जोकर होता है। वह हंस कर कई बातें ऐसी बोल देता है, जो दूसरे को थोड़ा चुभती जरूर हैं, लेकिन सच होती हैं। मैंने यह अनुभव किया है कि कई लोग अपनी कम और दूसरों की ज्यादा परवाह करते हैं। जैसे अगर मैंने यह काम किया तो लोग क्या कहेंगे… मुझ पर हंसेंगे! अगर मैं खुद अपनी हार पर हंसने लगूंगा तो लोग सोचेंगे कि बड़ा अजीब आदमी है! दरअसल, यह हमारा अहं है जो हमें दूसरों से क्षमा मांगने से भी रोक देता है।

इसलिए खुद पर हंसने का दम रखना चाहिए, क्योंकि मेरी हंसी अपनी ही है। लय होगी तो हंसी होगी। सच कहूं तो जिंदगी लय का दूसरा नाम है। सांसों की लय, धड़कन की लय, हमारे काम करने की लय, चलने की लय बनी रहे तो जिंदगी में भी लय बनी रहेगी। गीता में लिखा है कि खुश रहने मात्र से बुद्धि स्थिर हो जाती है। मन का विचलन रुक जाता है। एकाग्रता बढ़ती है। इसलिए अर्जुन चिंता छोड़ो, प्रसन्नता से रहो। इसी तरह, जब युधिष्ठिर से एक बार यक्ष ने पूछा था कि ‘जीवन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण क्या है तो युधिष्ठिर ने कहा था कि निरोगी काया। स्वस्थ रहने के लिए तन का स्वस्थ रहना ही जरूरी नहीं, मन का स्वस्थ रहना भी उतना ही जरूरी है। मन की खुराक है सकारात्मक हंसी। दरअसल, हंसी एक ‘मेच्योर साइकोलॉजिकल डिफेंस’ यानी परिपक्व मनोवैज्ञानिक बचाव है, जिसके जरिए इंसान बहुत सारी परेशानियों को आसानी से संभाल सकता है। अगर हम आसपास तलाश करें तो अमूमन ऐसे लोग हर जगह मिल जाएंगे, जो कम बोलना पसंद करते हैं। वे खुल कर नहीं जीते। जिंदगी को हमेशा गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। जीवन है तो जद्दोजहद लगी ही रहेगी। हार से क्यों डरना! डर के आगे जीत है!

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta